Monday, 10 April 2017

उम्मीद का दीया

जेहन की पगडंडियों पर चलकर
साँझ की थकी किरणों को चुनती
बुझते आसमां के फीके रंग समेट
दिल के दरवाजे पे दस्तक देती है
तन्हाई का हाथ थामें खड़ी मिलती
खामोश नम यादें आँखों में,
टूटते मोतियों को स्याह शाम के
बहाने से चेहरे पर दुपट्टा बिछाकर
करीने से हरएक मोती पोंछ लेती
फिर बुझते शाम के गलियारे में
रौशन टिमटिमाते यादों के हर लम्हे
सहेजकर ,समेटकर ,तहकर
वापस रख देती है सँभालकर फिर से,
चिराग दिल में उम्मीद का तेल भर देती
ताकि रौशन रहे दर तेरी यादों का
इस आस में कि कभी इस गली
भूले से आ जाए वक्त चलकर
दोहराने हर बात शबनमी शामों की
और वापस न लौट जाए कहीं
दर पे अँधेरा देखकर।
 
     #श्वेता🍁

7 comments:

  1. दोहराने हर बात शबनमी शामों की
    और वापस न लौट जाए कहीं
    दर पे अँधेरा देखकर।
    बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आदरणीया मैम , बहुत ही सुंदर प्यारी सी प्रेम कविता, प्रतीक्षा व आशा का भाव लिए हुए मन को आनंदित करती है ।
    सदा की तरह सुंदर व शांतिदायक। हृदय से आभार व आपको प्रणाम।

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  4. वाह!श्वेता ,लाजवाब !

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, श्वेता दी।

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  6. लाजवाब रचना

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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