Thursday 29 August 2024

इख़्तियार में कुछ बचा नहीं




नज़्म
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चेहरे पे कितने भी चेहरे लगाइए,
दुनिया जो जानती वो हमसे छुपाइए।

माना; अब आपके दिल में नहीं हैं हम,
शिद्दत से अजनबीयत का रिस्ता निभाइए।

हम ख़ुद ही मुँह फेर लेंगे आहट पे आपकी,
आँखें चुराने की आप न ज़हमत उठाइए ।

जी-हज़ूरी ख़्वाहिशों की करते नहीं अब हम,
जा ही रहे हैं, साथ सारे एहसान ले जाइए।

दर्द है भी या नहीं कोई एहसास न रहा,
बना दिया है बुत, सज्दे में सर तो झुकाइए।

दुआओं के सिवा,इख़्तियार में कुछ बचा नहीं, 
अब शौक से हिज्र की रस्में निभाइए।

#श्वेता

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 31 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. वाह ! इश्क़ के इंतहा को बयान करती बेहतरीन ग़ज़ल

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  3. प्रिय श्वेता जी,आपकी लेखनी से निकले ये भाव हृदय की गहराई को छू लेते हैं, बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना सादर

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  4. विसंगतियों को बखूबी सामने रखा है .

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  5. ये तो सफर-ए-नज़्म है,
    मुक्कमल गजल हो,
    जो आप यूं ही खुद को आजमाइए!

    मैं बायाँ नहीं करना चाहता की मुझे कितनी खुशी हो रही है, बहुत दिनों से ऐक्टिव हिन्दी ब्लॉगगर्स को खोज रहा था!

    अपनी दुआ तो मकम्मल हो गई!

    लिखते रहिए!

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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