Monday 23 July 2018

बरखा


                   

श्यामल नभ पर अंखुआये 
कारे-कारे बदरीे गाँव
फूट रही है धार रसीली
सुरभित है बरखा की छाँव

डोले पात-पात,बोले दादुर
मोर,पपीहरा व्याकुल आतुर
छुम-छुम,छम-छम नर्तन 
झाँझर झनकाती बूँद की पाँव

किलकी नदियाँ लहरें बहकी
जलतरंग जल पर चहकी
इतराती बलखाती धारा में
गुनगुन गाती मतवारी नाव

गीले नैना भर-भर आये
गीला मौसम गीली धरती
न हरषाये न बौराये 
बरखा बड़ी उदास सखी

आवारा ये पवन झकोरे
अलक उलझ डाले है डोरे
धानी चुनरी चुभ रही तन को
मन संन्यासी आज सखी 

 बैरागी का चोला ओढ़े
गंध प्रीत न एक पल छोड़े
अंतस उमड़े भाव तरल
फुहार व्यथा अनुराग सखी

 --श्वेता सिन्हा


33 comments:

  1. बहुत सुंदर
    सच है बारिश में मन हर्षित हो जाता है, साथ ही विरह की वेदना भी तीव्र हो जाती है

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  2. अति आभार आपका लोकेश जी।
    सही कहा आपने...।
    हृदयतल से शुक्रिया।

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  3. बहुत सुंदर शब्द शिल्प....बारिश इस कविता में और भी खूबसूरत हो गई है....

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    1. अति आभार आपका दी,आपके स्नेहिल शब्द यन तृप्त कर देते है।
      हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

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  4. ...फूट रही है धार रसीली
    सुरभित है बरखा की छाँव...
    अद्भुत सृजन श्वेता जी, मन हर्षित हो गया, वाह वाह बहुत बढ़िया👌👌👌👏👏👏

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    1. सादर आभार अमित जी।
      तहेदिल से बेहद शुक्रिया आपके उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।

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  5. किलकी नदियाँ लहरें बहकी
    जलतरंग जल पर चहकी
    इतराती बलखाती धारा में
    गुनगुन गाती मतवारी नाव वाह बहुत ही बेहतरीन रचना

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    1. सादर आभार आपका अनुराधा जी।
      बूहद शुक्रिया आपका।

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  6. हर्षित मन बरखा में आतुर मचल जाता है ...
    प्रेम महक जाता है और विरह की अवस्था हो तो बैराग जाग जाता है ... लाजवाब रचना है ...

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    1. जी,सादर आभार आपका।
      तहेदिल से बेहद शुक्रिया।

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  7. बूंदों की झांझर ऐसी झनकी
    मन की विरहा बोल गई
    बांध रखा था जिस दिल को
    बरखा बैरन खोल गई।

    मनोहारी बरखा का मनोरम वर्णन साथ मे विरह की पीड़ा सुंदरता से उरेका है श्वेता आपने।
    बहुत प्यारी रचना।

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    1. वाहह दी बहुत सुंदर पंक्तियाँ...👌
      रचना का मर्म समझा आपने...सादर आभार दी।
      तहेदिल से बेहद शुक्रिया।

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  8. आवारा पवन,उदास बरखा,रसीली लहरे,बलखाती धारा,नायिका का सन्यासी मन और उसके भावों को समेटती अनुप्रासिक शब्द योजना का लालित्य ....वाह!बहुरंगी परिधानों में खिलती रचना! बधाई और आभार!!!

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    1. रचना के शब्द विन्यास पर मनमोहक प्रतिक्रिया दे कर आपने रचना का मान बढ़ा दिया है। आपकी प्रतिक्रिया सदैव ऊर्जा से भर जाती है। कृपया स्नेह बनाये रखे।
      सादर आभार, हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।

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  9. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सादर आभार पम्मी जी। तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।

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  10. बहुत सुंदर रचना श्वेता। बरखा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं तुमने।

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    1. सादर आभार दी। बहुत शुक्रिया।

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  11. वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत शब्दों से सजी रचना ...।

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    1. सादर आभार दी। बेहद शुक्रिया।

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  12. शब्दों को सजाने में आप का जवाब नही सखी
    रचना में दर्द भले ही हो पर आप उसे भी खूबसूरत बना देती हैं
    लाजवाब कल्पना शक्ति का उदाहरण है आप की रचना 👌👌👌

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    1. अति आभार आपका नीतू।आपकी स्नेहासिक्त सराहना ने हृदय प्रफुल्लित कर दिया।
      तहेदिल से बहुत शुक्रिया।

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  13. "बैरागी का चोला ओढ़े
    गंध प्रीत न एक पल छोड़े
    अंतस उमड़े भाव तरल
    फुहार व्यथा अनुराग सखी"

    वाह आदरणीय दीदी जी बेहद खूबसूरत रचना
    सुंदर शब्द को पिरो कर लाजवाब प्रस्तुति दी आपने
    वाह मनभावन 👌

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    1. अति आभार आपका आँचल,हृदयतल से बहुत शुक्रिया आपका।

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  14. गीले नैना भर-भर आये
    गीला मौसम गीली धरती
    न हरषाये न बौराये
    बरखा बड़ी उदास सखी
    ....बरखा का मनोरम वर्णन

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    1. अति आभार आपका संजय जी। बहुत शुक्रिया आपका।

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  15. सुन्दर शब्द और भावों की बारिश से मन भीग गया ... बहुत खूब श्वेता जी

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    1. अति आभार आपका वंदना जी,हृदयतल से शुक्रिया।

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  16. वाह !!!!! सुंदर सलोनी बरखा और कोमल मनमोहक शब्दावली !!!!!!!! बरखा सी रिमझिम रचना प्रिय श्वेता | कोई गा दे तो मधुर गीत बन जाये |

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    1. सादर आभार दी:)
      आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदैव रचना को.विशेष बना जाती है।

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  17. वाह ! क्या बात है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  18. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  19. यहाँ गर्मी से झुलसते हुए ये बरखा अच्छी लगी । शारीरिक नहीं तो मानसिक रूप से ज़रूर भीग गए ।
    वैसे इस रचना में 3 बंध अलग मोड पर खत्म हो रहे हैं और बाकी तीन अलग ..... ऐसा क्यों ?

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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