Thursday 25 June 2020

वह उदास औरत

चित्र : मनस्वी प्राजंल

अंधेरे मुँह 
बेआवाज़ उठकर
ठंडी बालकनी में
पाँव सिकोड़े मूढ़े पर बुत-सी बैठी
दूर तक पसरी नीरवता,
गहन अंधकार में स्वयं को 
एकाकार करती
पश्चिम की
नीम की डालियों से 
धीरे-धीरे फिसलकर स्याह मकान के
आँगन में उतरते चाँद को
एकटुक निहारती
वह उदास औरत...।

उत्साहीन,अलसाई
मशीन की भाँति
काम-काज निबटाती
अनमनी-सी,सोच में ग़ुम
ओस से भीगी 
खिड़की के शीशे पर
आड़ी-तिरछी लकीरें खींचती
कोई नाम लिखती-मिटाती
भीगी हथेलियों से 
रह-रहकर छूती आँखें
वह उदास औरत...।

इष्टदेव के समक्ष
डबडबायी आँखों से
निर्निमेष ताकती
अधजली माचिस की तीलियों
बुझी बातियों से खेलती
बेध्यानी में,
मंत्रहीन,निःशब्द
तुलसी  सींचती
दीये की जलती लौ में
देर तक बनाती कोई छवि
वह उदास औरत...।

चूल्हे पर से उबलकर
बहा दूध देखकर 
खीझे बिना  
देर तक स्लैब पोंछती
किसी व्यंजन में
नमक,मिर्च,मसालों के
ज्यादा-कम पड़ने की परवाह
किये बिना 
ठंडी पड़ चुकी चाय 
के घूँट भरती 
रोटियाँ सेंकने में जली उँगलियों
को भींचकर जोर से बरतन रगड़ती
बच्चों की पुकार अनसुनी कर
रसोई की खिड़की से बाहर
सूखी आँखों से चिड़ियों,
बादलों के बहाने 
शून्य में घंटों तैरती
वह उदास औरत....।

बिना सँवारे बालों का बेढ़ंगा-सा जूड़ा लपेटे
तुड़ी-मुड़ी सलवार कमीज में
बिना मेल का दुपट्टा ओढ़े कपड़े सुखाती
पड़ोसियों के जोर से टोकने पर 
हौले से मुसकाती
बिना कुछ कहे व्यस्तता के बहाने 
दरवाज़ा लगाकर
कमरे के एक कोने में अधलेटी 
मकड़ी को जाले बुनती देखती
बे-वजह ही भर आती
पनियायी आँखों में काज़ल नहीं लगाती
वह उदास औरत...।

कोई फ़र्क नहीं पड़ता 
सूरज,चंदा,तारे
बादल,फूल,पेड़,तितली,पक्षी,झरने
भोर,दोपहर,साँझ रात...
दीवार,छत,कमरे
या साथ रहने वालों की
दिनचर्या मेंं
किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता
उसकी उदासी से...

किसी उपेक्षित कोने-सी
स्वयं का अवलोकन करती
अपने जीवन का सामान्य अर्थ
स्वयं के उदास मनोभावों को 
फुसलाने में प्रयासरत 
घर आये मेहमानों से
अपने परिवार और बच्चों के
सुखों की अनगिनत कहानियाँ सुनाती
अपने अस्तित्व की परिभाषा 
मिटाकर उसकी जगह लिखकर
अपनों की खुशियाँ 
अक़्सर सुख का
चेहरा ओढ़े मुस्कुराती दिखती है
वह उदास औरत...।

#श्वेता सिन्हा


21 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

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  2. बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
    आपका स्नेह है।
    सादर।

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  3. बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
    आपका स्नेह मिला बहुत अच्छा लगा।
    सादर शुक्रिया दी।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति... भावपूर्ण, सरस, और विम्बों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है आपने... बहुत सुन्दर रचना.

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  5. कितना कुछ लिखा होता है एक औरत के भाग्य में
    मर्म स्पर्शी प्रस्तुति

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  6. बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी।

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  7. Sweta sinha जी

    हम्म्म



    हम सभी ने ये सब अकसर महसूस किया है, ऊपरी तेह को किसी तरह संवार के रख लेती हैं हम सब मगर असलियत के धरातल में हम सब ने ये सब खुद के साथ गुज़रते देखा है
    ये उदासी हम सब की सांझी हैं मगर झेलना हर एक को अकेले अकेले पढ़ता है


    श्वेता जी। .बहुत साहस भरी रचना लिखी है आपने , हर पंक्ति सजीव होती जाती है पढ़ते पढ़ते,
    बहुत बहुत बधाई इतनी सार्थक और उस उदासी का इतना सटीक चित्रण करने के लिए
    शुभकामनों सहित सदर नमन

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  8. ...।

    इष्टदेव के समक्ष
    डबडबायी आँखों से
    निर्निमेष ताकती
    अधजली माचिस की तीलियों
    बुझी बातियों से खेलती
    बेध्यानी में,
    मंत्रहीन,निःशब्द
    तुलसी सींचती
    दीये की जलती लौ में
    देर तक बनाती कोई छवि
    वह उदास औरत...।
    लाजवाब ,बहुत ही सुंदर
    आँचल में है दूध ,आँखों मे है पानी ,अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ,नारी कष्ट का दूसरा नाम है ।

    छिपा दर्द किस मुस्कान में है
    मोम किस चट्टान में
    कोई न जाने आधे फसाने
    आधी हकीकत का हैं ये उजाला
    जीवन फेरा कैसा ये घेरा
    कभी उजाला कभी अंधेरा काला
    पंछी है पिंजरे में फंसे
    कहते है मर्यादा उसे
    पंख कटे है
    तो भी हँसे हैं
    ये अर्थ हमने कैसा निकाला
    जल जाये सब अरमान क्यू
    हर सांस में तूफान क्यूँ
    है रौशनी के तले अंधेरा ।

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  9. उदासी जैसे सजीव हो उतर आई हो

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  10. अपने अस्तित्व की परिभाषा .… गहन चिंतन
    सार्थक सृजन

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  11. आपके शब्दों से चित्रमय प्रवाह होता है.

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  12. बहुत सुंदर कविता...

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  13. बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  14. हर किसी की यही कहानी है,उदासी में जीना बहुत ही सार्थक रचना

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  15. वाह!श्वेता , दिल को अंदर तक छू गई आपकी कविता । उदासी में जीती वह मुखौटा लगाए मुस्कान का ...।

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  16. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  17. बहुत बढ़िया रचना

    महेन्द्र देवांगन माटी

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  18. बहुत खुबसूरत

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  19. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 11 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  20. अपने अस्तित्व की परिभाषा
    मिटाकर उसकी जगह लिखकर
    अपनों की खुशियाँ
    अक़्सर सुख का
    चेहरा ओढ़े मुस्कुराती दिखती है
    वह उदास औरत...। बहुत सुंदर और सार्थक सृजन।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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