धरती के
मानचित्र पर खींची गयी
सूक्ष्म रेखाओं के
उलझे महीन जाल,
मूक और निर्जीव प्रतीत होती
अदृश्य रूप से उपस्थित
मूक और निर्जीव प्रतीत होती
अदृश्य रूप से उपस्थित
जटिल भौगोलिक सीमाएं
अपने जीवित होने का
भयावह प्रमाण
अपने जीवित होने का
भयावह प्रमाण
देती रहती हैं।
सोचती हूँ अक्सर
सरहदों की
बंजर,बर्फीली,रेतीली,
उबड़-खाबड़,
निर्जन ज़मीनों पर
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
रोपी जा सकती हैं नफ़रत?
लगता है मानो
सरहदों को लगी
होती है आदम भूख...
या शायद अपनी जीवंतता
बनाये रखने के लिए
लेती है समय-समय पर बलि
शूरवीरों की...।
पर सच तो यह है कि....
इंसानों की बस्ती के
बुद्धिमान,स्वार्थी,
महत्वाकांक्षी नुमाइंदे
वर्चस्व की मंडी के
सर्वश्रेष्ठ व्यापारी होने की होड़ में
सरहद के पहरेदारों के
रक्त से क्रूरता का
इतिहास लिखकर
खींची सरहद लकीरों को ज्यादा
गहरा करके महानता
का पदक पहनते और
स्वयं को शांति का
पुरोधा बताते है!!
©श्वेता सिन्हा
२९जून २०२०
वर्ितमान परिपेक्ष्य में सटीक सृजन।
ReplyDeleteजब से इंसान के साथ पूर्ण विकसित दिमाग़ जुड़ा है ऐसी कितनी ही बातों के उत्तर नहीं मिलते ... हवा पंछी जानवर किसी के लिए कोई सीमा कहाँ है पर इंसान के क्या कहने ... बहुत भावपूर्ण रचना है श्वेता जी ...
ReplyDeleteपदकधारियों पर गहरा कटाक्ष।
ReplyDeleteवर्तमान समय के उपयुक्त सुन्दर रचना प्रिय श्वेता जी।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteलगता है मानो
ReplyDeleteसरहदों को लगी
होती है आदम भूख...
या शायद अपनी जीवंतता
बनाये रखने के लिए
लेती है समय-समय पर बलि
शूरवीरों की...।
कभी कभी मन विचलित सा होता हैं ,परमात्मा की धरा को क्यों सरहदों में बाँट दिया इंसानो ने,और छोटे से जमीन के टुकड़े के लिए कितनो की बलि चढ़ाते है। अंतर्मन को झकझोरता मार्मिक सृजन श्वेता जी,सादर नमन
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
पनपते हैं विषाणु
ReplyDeleteइंसान के 'सर' में.
करती हैं पार 'हदों' को
हरकतें हैवानियत की.
फिर उगते हैं कैक्टस
नफरतों की.
'सरहदों' पर! ...... सार्थक और समसामयिक रचना!
धरती के
ReplyDeleteमानचित्र पर खींची गयी
सूक्ष्म रेखाओं के
उलझे महीन जाल,
मूक और निर्जीव प्रतीत होती
अदृश्य रूप से उपस्थित
जटिल भौगोलिक सीमाएं
अपने जीवित होने का
भयावह प्रमाण
देती रहती हैं...हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय दीदी शायद इंसान की मंशा हमेशा बँटवारा ही रहा है.परिणाम समय ने तय किया.गहन चिंतन है आपके सृजन में .
सादर
वर्तमान परिपेक्ष्य के हालातों पर सशक्त भावाभिव्यक्ति । बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी सृजन,भाव पक्ष सफल झंकझोरता।
ReplyDeleteसरहद तो बेजुबान होती है ,मानव के सर्वार्थ, लोलुपता और महत्त्वाकांक्षा ने न जाने कब सरहद के रूप में शोणितबीज रोप दिए।
यथार्थ पर संवेदनाओं से भरपूर अभिव्यक्ति।
लगता है मानो
ReplyDeleteसरहदों को लगी
होती है आदम भूख...
या शायद अपनी जीवंतता
बनाये रखने के लिए
लेती है समय-समय पर बलि
शूरवीरों की...।
रक्त रंजित सरहदों के मर्मान्तक और भयावह सच की सशक्त अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता |
कुछ सवालों के जबाब नहीं मिलते
ReplyDeleteसराहनीय भावाभिव्यक्ति
वर्चस्व की मंडी के
ReplyDeleteसर्वश्रेष्ठ व्यापारी होने की होड़ में
सरहद के पहरेदारों के
रक्त से क्रूरता का
इतिहास लिखकर
खींची सरहद लकीरों को ज्यादा
गहरा करके महानता
का पदक पहनते और
स्वयं को शांति का
पुरोधा बताते है!! बहुत ही हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति श्वेता जी
कटु यथार्थ ! सरहदें आदमी ने बनायी हैं, ये आवश्यक बुराई हैं, एक देश की हद में रहने वालों को सुकून देती हैं यही सरहदें, यदि देश आपस में मिलजुल कर रहें तो अभिशाप नहीं वरदान बन सकती हैं ये
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteमैं आज आपसे पहली बार जुड़ रही हूँ।
आपके ब्लॉग का नाम गूगल पर देखा। आपकी रचनाएँ पढ़ कर मन बहुत आनंदित भी हुआ और सोंचने पर विवश भी।
मेरी अब तक की आपकी प्रिय रचनायें सैनिक मेरे देश के, सरहद, शोक गीत और क्या विशेष हो तुम।
यह सभी रचनाएँ युवा को प्रेरित करने वाली और अंतरात्मा को झकझोरने वाली हैं।
मैं स्वयं एक विद्यार्थी हूँ और कहानियां व कविताएं लिखती हूँ। मैं ने अभी अभी ही एक ब्लॉग खोला है। kavya tarangini.blogspot.com. क्या आप उस पर जाकर मेरी कविताएं पढ़ने का अनुग्रह करेंगी। मैं आभारी रहूँगी। आपसे जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं अबसे नियमित रूप से आपके ब्लॉग पर आती रहूंगी। धन्यवाद।
www.kavyatarangini.blogspot.com
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरपूर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय श्वेता जी
सुंदर कविता
ReplyDeleteकुछ देशों के ध्रुवीकरण के कारण भारत भी पिस रहा है पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के कारण वसुधेव कुटुंबकम् की भावना को चोट पहुंचती है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
बहुत सुंदर और सटीक चित्रण। संवेदना से परिपूर्ण ,भावपूर्ण लेखन।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 06 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसोचती हूँ अक्सर
ReplyDeleteसरहदों की
बंजर,बर्फीली,रेतीली,
उबड़-खाबड़,
निर्जन ज़मीनों पर
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
रोपी जा सकती हैं नफ़रत?
सच में ऐसी जगहों पर आधिपत्य जताने का क्या मकसद।अपनी सीमा सुरक्षित रखकर सौहार्दपूर्ण व्यवहार क्यों नहीं।
बहुत ही विचारणीय, लाजवाब सृजन।
आपकी रचनाएं बहुत सुंदर है ,बहुत आनंद मयी है,
ReplyDeleteहाल ही में मैंने एक ब्लॉगर ज्वाइन किया है जिसमें मैंने कुछ स्वलिखित कविता पोस्ट की है ,आपसे निवेदन है कि आप उन्हें पढ़े aour मुझे साड़ी दिशा नर्देश दे
आपका बहुत आभार होगा
मेरे पोस्ट की लिंक
https://shrikrishna444.blogspot.com/2020/07/blog-post_14.html