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Sunday, 28 June 2020

सरहद


धरती के 
मानचित्र पर खींची गयी
सूक्ष्म रेखाओं के 
उलझे महीन जाल,
मूक और निर्जीव प्रतीत होती
अदृश्य रूप से उपस्थित  
जटिल भौगोलिक सीमाएं 
अपने जीवित होने का 
भयावह प्रमाण
देती रहती हैं। 

सोचती हूँ अक्सर 
सरहदों की
बंजर,बर्फीली,रेतीली,
उबड़-खाबड़,
निर्जन ज़मीनों पर
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
रोपी जा सकती हैं नफ़रत?

लगता है मानो
सरहदों को लगी
होती है आदम भूख...
या शायद अपनी जीवंतता
बनाये रखने के लिए 
लेती है समय-समय पर बलि
शूरवीरों की...।

पर सच तो यह है कि....
इंसानों की बस्ती के 
बुद्धिमान,स्वार्थी,
महत्वाकांक्षी नुमाइंदे
वर्चस्व की मंडी के
सर्वश्रेष्ठ व्यापारी होने की होड़ में
सरहद के पहरेदारों के
रक्त से क्रूरता का 
इतिहास लिखकर
खींची सरहद लकीरों को ज्यादा
गहरा करके महानता 
का पदक पहनते और
स्वयं को शांति का
पुरोधा बताते है!!

©श्वेता सिन्हा
२९जून २०२०

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