मुझे डर नहीं लगता
त्रासदी के घावों से
कराहती,ढुलमुलाती
चुपचाप निगलती
समय की
खौफ़नाक भूख से।
मुझे डर नहीं लगता
कफ़न लेकर
चल रही हवाओं के
दस्तक से खड़खड़ाते
साँकल के
भयावह पैगाम से।
मुझे डर नहीं लगता
आग को
उजाला समझकर
भ्रमित सुबह की
उम्मीद के लिए
टकटकी बाँधे
निरंतर जागती
जिजीविषा से।
मुझे डर नहीं लगता
क्योंकि
अंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना
मज़लूमों की सिसकियों को
परे धकियाना
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।
पर जाने क्यों
बहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
✍️ श्वेता सिन्हा
डर के आगे जीत है।
ReplyDeleteजी सर,
Deleteडर को हराने का प्रयास ही जीवन है।
बहुत आभार सर।
प्रणाम।
सादर।
नफ़रत और उन्माद
ReplyDeleteका रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
वाकई..
सादर..
बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteआपका स्नेह है।
सादर।
बात-बात पर चुप्पी साधना
ReplyDeleteमज़लूमों की सिसकियों को
परे धकियाना
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।
लेकिन इस तरह की निडरता को कायरता ही कहा जाएगा। रचना में तीखा व्यंग्य स्पष्ट है, यही इस रचना की विशेषता है। सस्नेह।
अब कलम को रुकने मत दीजिएगा, विचारों की नदी को बहने दो।
ReplyDelete"बहता पानी निर्मला, पड्या गंदीला होय।"
स्नेहसिक्त आग्रह है मेरा।
आप मेरी प्रिय कवयित्री हैं दी,
Deleteआपकी स्नेहमयी,विश्लेषात्मक प्रतिक्रिया सदैव चाहिए मुझे।
सादर।
बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteसादर।
नफ़रत और उन्माद
Deleteका रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
सुन्दर
बहुत बहुत आभारी हूँ प्रिय सधु जी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपके स्नेह के लिए सस्नेह शुक्रिया दी।
Deleteसादर।
पर जाने क्यों
ReplyDeleteबहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
बहुत ही सटिक अभिव्यक्ति, श्वेता दी।
बहुत बहुत आभारी हूँँ आदरणीया ज्योति दी।
Deleteसादर।
मुझे डर नहीं लगता
ReplyDeleteआग को
उजाला समझकर
भ्रमित सुबह की
उम्मीद के लिए
टकटकी बाँधे
निरंतर जागती
जिजीविषा से....
हौसला बढ़ाती बहुत सुंदर रचना !!!
हार्दिक बधाई!!!
बहुत बहुत स्वागत है आपका
Deleteअनेकोनेक आभार
आदरणीया शरद जी।
सादर।
पर जाने क्यों
ReplyDeleteबहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से। प्रभावशाली लेखन - - सुन्दर सृजन।
आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय सर।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई
बहुत बहुत आभार सर।
सादर।
बेहतरीन लेखन, सुंदर भाव संयोजन, कल्पना न होकर इक सत्य।
ReplyDeleteअनेकों शुभकामनाएँ आदरणीया श्वेता जी।
बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
आज के असुरक्षित और अव्यवस्थित माहौल में तटस्थ हो रहे आमजन की आशंकित मानसिकता को बड़ी सहजता से प्रभावी बिंबों द्वारा उकेरती रचना। नफ़रत और उन्माद ने इंसान को इतना डरा दिया है जितना प्राकृतिक आपदाओं ने भी नहीं डराया। सशक्त रचना के साथ ब्लॉग पर वापसी के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और हार्दिक स्नेह।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteआपका स्नेह है।
सादर शुक्रिया।
आज के असुरक्षित और अव्यवस्थित माहौल में तटस्थ हो रहे आमजन की आशंकित मानसिकता को बड़ी सहजता से प्रभावी बिंबों द्वारा उकेरती रचना। नफ़रत और उन्माद ने इंसान को इतना डरा दिया है जितना प्राकृतिक आपदाओं ने भी नहीं डराया। सशक्त रचना के साथ ब्लॉग पर वापसी के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और हार्दिक स्नेह प्रिय श्वेता।
ReplyDeleteReply
बहुत-बहुत आभारी हूँ प्रिय दी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया और उत्साहवर्धन
आपका स्नेहाशीष है।
सादर
शुक्रिया।
क्योंकि
ReplyDeleteअंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना
मज़लूमों की सिसकियों को
परे धकियाना
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।- बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बेहद शुक्रिया आभार जिज्ञासा जी।
Deleteसादर।
पर जाने क्यों
ReplyDeleteबहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
ये डर लाजिमी है और लाजिमी रहना चाहिए इस डर से तटस्थता ठीक नहीं... इस डर का समाना कर समाधान तक पहुँचना होगा।
चिंतनपरक लाजवाब सृजन।
रचना का सार स्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु
Deleteबहुत बहुत आभारी हूँ प्रिय सुधा जी।
सस्नेह शुक्रिया।