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Thursday, 26 November 2020

डर

मुझे डर नहीं लगता
त्रासदी के घावों से
कराहती,ढुलमुलाती
चुपचाप निगलती
समय की
खौफ़नाक भूख से।


मुझे डर नहीं लगता
कफ़न लेकर
चल रही हवाओं के
दस्तक से खड़खड़ाते
साँकल के
भयावह पैगाम से।


मुझे डर नहीं लगता
आग को
उजाला समझकर
भ्रमित सुबह की
उम्मीद के लिए 
टकटकी बाँधे
निरंतर जागती 
जिजीविषा से।


मुझे डर नहीं लगता
क्योंकि 
अंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना
मज़लूमों की सिसकियों को
परे धकियाना
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।


पर जाने क्यों
बहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।

✍️ श्वेता सिन्हा



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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...