भूख के नाम पर,
हर दिन तमाशा देखिये।
पेट की लकीरों का
चीथड़ी तकदीरों का,
दानवीरों की तहरीरों में
शब्दों का शनाशा देखिये।
उनके दर्द औ' अश्क़ पर
दरियादिली के मुश्क पर,
चमकते कैमरों के सामने
बातों का बताशा देखिये।
सपनों भरा पतीला लेकर
घोषणाओं का ख़लीता देकर,
ख़बरों में ख़बर होने की
होड़ बेतहाशा देखिये।
बिकते तैल चित्र अनमोल
उधड़े बदन,हड्डियों को तोल,
जीवित राष्ट्रीय प्रदर्शनी में
चिरपरिचित निराशा देखिये।
मेंढकों की आज़माइश है
दयालुता बनी नुमाइश है,
सिसकियों के इश्तिहार से,
बन रहे हैं पाशा देखिये।
भूख के नाम पर,
हर दिन तमाशा देखिये।
©श्वेता सिन्हा
१८अप्रैल२०२०
१८अप्रैल२०२०
शब्दार्थ:
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शनाशा- जान-परिचय
मुश्क - बाँह,भुजा
ख़लीता- थैला
पाशा - तुर्किस्तान में बड़े बड़े अधिकारियों और सरदारों को दी जानेवाली उपाधि।