सिवा ख़ुद के
कुछ भी न पाओगे
आँखों में मेरी
भरी पलकें
झुका लूँ मैं वरना
तुम रो दोगे
आदत बुरी
पाल ली है दिल ने
बातों की तेरी
उठी लहर
छू कर किनारे को
भिगो जायेगी
आरियाँ है या
हवाओं के हाथ है
तोड़ते पत्ते
कसमसाती
शाम की हर साँस
उदास लगी
बनाने लगी
छवि तेरी बदरी
कूची है तारे
नीम फुनगी
ठुड्डी टिकाकर के
ताके है चंदा
चाँदनी फीकी
या नम है बादल
आँखें ही जाने
आसमां ताल
तारों के फूल खिले
रात मुस्कायी
बिन तेरे है
ख़ामोश हर लम्हा
थमा हुआ सा
#श्वेता🍁