Friday, 24 August 2018

अनछुआ मन


जीवन-यात्रा में
बूँद भर तृप्ति की चाह लिये
रेगिस्तान-सी मरीचिका
में भटकता है मन,
छटपटाहटाता
व्याकुल
गर्म रेत के अंगारें को
अमृत बूँद समझकर
अधरों पर रखता है
प्यासे कंठ की तृषा मिटाने को
झुलसता है,
तन की वेदना में,
मौन दुपहरी की तपती
पगलाई गर्म रेत की अंधड़
से घबराया मन छौना
छिप जाना चाहता है
बबूल की परछाई की ओट में
घनी छाँह का 
भ्रम लिये,
बारिश की आस में
क्षितिज के शुष्क किनारों को
रह-रहकर
ताकती मासूम आँखें
 नभ पर छाये
मंडराते बादलों को देखकर  
आहृलादित होती है,
स्वप्न बुनता है मन
भुरभुरी रेत से 
इंद्रधनुषी घरौंदें बनाने का,
बारिश की बूँदें
देह से लिपटकर,
देह को भींगाकर,
देह को सींचकर
देह के भावों को 
जीवित करती है
देह की कोंपल पर लगे
पुष्प की सुगंध के 
आकर्षण में
भ्रमित हुआ मन 
भूल जाता है
सम्मोहन में
पलभर को सर्वस्व ,
देह की अभेद्य
दीवार के भीतर
पानी की तलाश में
सूखी रेत पर रगड़ाता
अनछुआ मन
मरीचिका के भ्रम में उलझ
तड़पता रहता है
परविहीन पाखी-सा
आजीवन।

-श्वेता सिन्हा

19 comments:

  1. बहुत ही शानदार।भावपूर्ण प्रवाहपूर्ण रचना।एक ही बार में प्रारम्भ से अंत तक पड़ता चला गया।बांध से लिये इन शब्दों ने।अच्छा लेखन।बधाई आभार आपको।

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  2. विरोधाभासी संकल्पनाओं से गुज़रती मन की यात्रा अभीष्ट प्राप्त होने तक ज़ारी रहती है.
    सुन्दर रचना.
    बधाई.

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना 👌👌

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  4. विदग्ध, असि धार सा मृग की अबोल तृषा सा दुर्निवार मन की गति का बहुत सांगोपांग वर्णन अप्रतिम अद्भुत।

    तृषित मन यूं झुला जाय जैसे
    रेगिस्तान में आग की फाग।
    वाह!!!

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  5. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना आदरणीया श्वेता जी बधाई

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  7. बबूल की परछाई की ओट में
    घनी छाँह का
    भ्रम लिये,


    स्वप्न बुनता है मन
    भुरभुरी रेत से
    इंद्रधनुषी घरौंदें बनाने का,

    केवल आप और आप ही ऐसा विस्मयकारी काम कर सकते हैं। मैं निःशब्द हो गया। इस तरह का सृजन करने वाला, आपके समकक्ष दिखने वाला, आज तक कोई अन्य रचनाकार देखने मे नहीं आया। पूरी की पूरी रचना बेहतरीन। बेमिसाल। wahhh

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  8. अतिउत्तम.. भावपूर्ण रचना।

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  9. वाह सखी लाजवाब लिखा

    छोटा से मन को कैसे समझायें
    जितना सोचें उलझते ही जायें

    बहुत बहुत बधाई इस शानदार रचना के लिये

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  10. देह की कोंपल पर लगे
    पुष्प की सुगंध के
    आकर्षण में
    भ्रमित हुआ मन
    भूल जाता है
    सम्मोहन में
    पलभर को सर्वस्व
    वा...व्व....श्वेता, बहुत ही शानदार रचना।

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  11. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  12. बहुत अच्छी रचना

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  13. पानी की तलाश में
    सूखी रेत पर रगड़ाता
    अनछुआ मन
    मरीचिका के भ्रम में उलझ
    तड़पता रहता है
    परविहीन पाखी-सा
    आजीवन।... बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना श्वेता जी , बधाई

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  14. बहुत सुंदर श्वेता जी ! जागी आँखों के ख़्वाब टूटते तो बहुत हैं पर उन्हें देखना कैसे छोड़ दें?
    हर नई ठोकर नया, इक हौसला बन जाएगी,
    और नाक़ामी मुझे मंज़िल तलक पहुंचाएगी,
    है अगर सेहरा, मेरी किस्मत, न कोई है गिला,
    ये घटा बरसे कहीं भी, प्यास ख़ुद बुझ जाएगी.

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  15. oh..i m spellbound...bahut sunder rachna

    Do visit my blog https://successayurveda.blogspot.com/

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  16. मृगमरीचिका में फँसकर तड़पते रहने से बचना है तो एक ही उपाय है। भावनाओं को खेल समझो। खेलो, मजे करो और अंत में 'आत्मार्थे पृथ्वी तज्येत्' कहकर छुटकारा पा लो.....
    भ्रमित हुआ मन
    भूल जाता है
    सम्मोहन में
    पलभर को सर्वस्व ,
    देह की अभेद्य
    दीवार के भीतर
    पानी की तलाश में
    सूखी रेत पर रगड़ाता
    अनछुआ मन
    मरीचिका के भ्रम में उलझ
    तड़पता रहता है
    परविहीन पाखी-सा
    आजीवन।
    दर्द का खूबसूरती से चित्रण। सुंदर शब्दाभिव्यक्ति !!!

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  17. मन की अधूरेपन का बहुत ही मर्मस्पर्शी शब्दांकन प्रिय श्वेता | आपके चिर परिचित अंदाज से वेदना भी विशेष हो जाती है | सस्नेह --

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  18. behtareen rachna sweta ji...
    prashantkipoetry.blogspot.com

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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