Thursday 30 August 2018

जागृति


असहमति और विरोध पर,
एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है।
हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे,
बहुरुपियों के हाथ में आरी है।

कोई नहीं वंचित और पीड़ित!
सपनों की दुनिया ही प्यारी है
हुनर सीखो मुखौटा लगाने का
यही तो असली अय्यारी है।

उड़नखटोला हवा की सैर पर,
आतंकित बुद्धिजीवी सवारी है।
महाभारत इसे कैसे कहना?
कौरवों की कौरवों से मारा-मारी है।

जलाकर ख़ुद को रौशनी करे,
कहाँ अब ऐसी कोई चिंगारी है।
सिंहासन पाने की प्रतियोगिता में,
निर्लज्जता ही सब पर भारी है।

ईमानदारी-बेईमानी,सच-झूठ,
सब एक कीमत की तरकारी है।
कोई क्या खायें और किसे पूजे,
यही लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी है!

कितना भी खुरचो मिटती नहीं,
वैचारिकी फफूँँद बड़ी बीमारी है।
आज़ाद देश के गुलाम साथियों,
चमन में बहेलिये की पहरेदारी है।

कृष्ण और राम ले चुके अवतार,
अब क़लमकार ही शस्त्रधारी है।
रो-धोकर हालात नहीं बदलते,
उठो,अब जागृति की बारी है।


-श्वेता सिन्हा



14 comments:

  1. कृष्ण और राम ले चुके अवतार,
    अब क़लमकार ही शस्त्रधारी है।
    रो-धोकर हालात नहीं बदलते,
    उठो,अब जागृति की बारी है।
    सही कहा श्वेता कि रो-धोकर हालात नहीं बदलने वाले। अब हमें ही कुछ करना होगा। सुंदर प्रस्तूति।

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  2. बहुत सुन्दर रचना

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  3. वाह!!श्वेता ,बहुत खूब !!सही कहा आपने रोने धोने से कुछ नहीं होगा ....हमें जागना होगा ..।

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  4. कृष्ण और राम ले चुके अवतार,
    अब क़लमकार ही शस्त्रधारी है।
    रो-धोकर हालात नहीं बदलते,
    उठो,अब जागृति की बारी है। वाह बेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी

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  5. जागरण का आह्वान करती ओज पूर्ण रचना 🙏 बहुत ही सुन्दर

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  6. करारा कटाक्ष करती बेहतरीन कविता

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  7. देश के हालात पर सिर्फ आंसू न बहावो ना आहें भरो ऐ कलम कारों अपनी तूलिका से एक आह्वान कर के मूर्दो में भी जान फूंक दो।
    टके सेर भाजी और टके सेर खाजा होने लगे तो यानी बेईमानी इमान एक साथ तुलने लगे तो समझो अंधेर नगरी में तलवार से नही कलम से युद्ध लडना होगा ।
    बहुत शानदार रचना सामायिक हालतों पर सीधा प्रहार करती।

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  8. प्रतिरोध का तीखा स्वर विस्फोट की तरह निकला है. धरातल पर सक्रिय होने का आह्वान करती ओजपूर्ण रचना.... समसामयिक प्रस्तुति.
    बधाई एवं शुभकामनायें.

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  9. महाभारत इसे कैसे कहना?
    कौरवों की कौरवों से मारा-मारी है।
    .
    ईमानदारी-बेईमानी,सच-झूठ,
    सब एक कीमत की तरकारी है।
    कोई क्या खायें और किसे पूजे,
    यही लोकतांत्रिक ज़िम्मेदारी है!
    .
    कितना भी खुरचो मिटती नहीं,
    वैचारिकी फफूँँद बड़ी बीमारी है।
    आज़ाद देश के गुलाम साथियों,
    चमन में बहेलिये की पहरेदारी है।

    कृष्ण और राम ले चुके अवतार,
    अब क़लमकार ही शस्त्रधारी है।
    रो-धोकर हालात नहीं बदलते,
    उठो,अब जागृति की बारी है।
    .
    वाह वाह वाह और वाह अति उत्कृष्ट... करारा वार। बहुत सुंदर रचना मैम

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  10. बच्चन जी की याद दिला दी
    'शेरों की मांद में
    आया आज स्यार
    जागो!
    फिर एक बार!!!

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  11. True picture. true words.real pearls of words. Appreciates your writing, its require lots of concentration and cool mind. Proud to be from KANDRA.

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  12. जो भी उठकर कुंडी खोलेगा, उसी के पिटने की बारी है,
    मुंह अगर खोला तो समझो, गर्दन पर आरी चलने की तैयारी है.
    ऐसा लोकतंत्र तो, हिटलर की तानाशाही पर भी भारी है,
    जा के खुद सो रहूँ मरघट में, यहाँ तो बहुत ही मारा-मारी है.

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  13. So realistic and beautiful.

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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