Saturday 18 August 2018

भावों का ज्वार


गहराती ,
ढलती शाम
और ये तन्हाई
बादलों से चू कर
 नमी पलकों में भर आई।

गीला मौसम,
गीला आँगन,
गीला मन मतवारा
संझा-बाती,
रोयी पीली,
बहती अविरल धारा।

भावों का ज्वार,
उफनता,
निरर्थक है आवेश,
पारा प्रेम का,
ढुलमुलाता,
नियंत्रित सीमा प्रदेश।

तम वाहिनी साँझ,
मार्गदर्शक 
चमकीला तारा
भावनाओं के नागपाश
 उलझा बटोही पंथ हारा।

नभ की झील,
निर्जन तट पर,
स्वयं का साक्षात्कार
छाया विहीन देह,
 तम में विलीन निराकार।

मौन की शिराओं में,
बस अर्थपूर्ण 
मौन शेष,
आत्मा के कंधे पर,
ढो रहा तन छद्म वेष।

-श्वेता सिन्हा





19 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना आदरणीया श्वेता जी

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  2. बेहद खूबसूरत रचना

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  3. मौन की शिराओं में,
    बस अर्थपूर्ण
    मौन शेष,
    आत्मा के कंधे पर,
    ढो रहा तन छद्म वेष--
    वाह! प्रिय श्वेता बहुत ही सुंदर प्रतीक आपकी रचना का श्रृंगार होते हैं |भावों से भरे मन की विकलता को बहुत ही मनमोहकता से उजागर किया आपने | सस्नेह --

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  4. अर्थ भला क्या मौन का!
    जब भाव हो निःशेष!
    मृतप्राय मन हो प्रिये जब
    निस्सार तन गणवेश!
    छद्म हूँ मैं, और छद्म तूं
    छद्म सब परिवेश!
    अब लौट चल
    बाबुल की बगिया
    छोड़ कर यह देश!!!....... भावों को निराकार और निर्गुण आकृति पहनाती कविता!!! सुन्दर!!!

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  5. बेहतरीन मार्मिक रचना

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  6. नभ की झील,
    निर्जन तट पर,
    स्वयं का साक्षात्कार
    छाया विहीन देह,
    तम में विलीन निराकार।

    आखिर झांक कर देख ही लिया आप ने खुद के अंदर।

    "एक निराकर और एक कफ़स" अब बड़े आराम से हो कि नहीं आप?

    बेहद उम्दा
    खूबसूरती के साथ बयाँ किया।

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  7. भावपूर्ण रचना

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  8. नभ की झील,
    निर्जन तट पर,
    स्वयं का साक्षात्कार
    छाया विहीन देह,
    तम में विलीन निराकार।
    उम्दा, बेहतरीन रचना, हरेक पंक्ति प्रशंसनीय👌👌👌👏👏👏

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  9. वाह!
    भावों की तूलिका चली
    सुंदर शब्दों का आधार
    कोई तारा पथ छोड़ आया
    करने कविता का श्रृंगार ।

    विलक्षण प्रिय श्वेता ।
    सूफियाना भाव ।

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  10. दिल को छूती बहुत भावपूर्ण रचना, श्वेता।

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  11. ये बिल्कुल अलग कविता
    बहुत ही सुंदर

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  12. तम वाहिनी साँझ,
    मार्गदर्शक
    चमकीला तारा
    भावनाओं के नागपाश
    उलझा बटोही पंथ हारा ,,,
    पंथ हारना मुमकिन है अगर लक्ष्य निश्चित नही है ... भावनाएं आती है जो डराती भिहैन तो ताकत भी देतिहैन ... दिशा पर नियंत्रण ... लक्ष्य पे दृष्टि निरंतर है तो मार्ग दीखता है ...
    हर छंद लाजवाब है आपकी इस रचना का ...

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  13. बेहतरीन रचना श्ववेता जी,बेहतरीन पंक्तियाँ।

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  14. बहुत खूब।
    कितनी सरलता से अपने रचना को सार्थकता दी हैं कविता बेहद गहरे भाव लिए हैं।

    मौन की शिराओं में,
    बस अर्थपूर्ण
    मौन शेष,
    आत्मा के कंधे पर,
    ढो रहा तन छद्म वेष।


    खासकर ये लाइन्स दिल को छू गयी।

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  15. बेहतरीन रचना श्वेता जी ... बधाई

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  16. मौन की शिराओं में,
    बस अर्थपूर्ण
    मौन शेष,
    आत्मा के कंधे पर,
    ढो रहा तन छद्म वेष।
    इन पंक्तियों को पढ़ने के बार मौन चिंतन करना ही सही होगा। आपकी प्रतिभाशाली लेखनी को सराहने के लिए शब्द ही नहीं बचे।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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