मौन हृदय की घाटी में
दिवा सांझ की पाटी में
बेकल मन बौराया तुम बिन
पल-पल दृग है आज सजल
मन के भावों को भींचता
पग पीव छालों को सींचता
कैसे अनदेखा कर दूँ बोलो?
तेरा सम्मोहन,हिय को खींचता
साँसों की सिहरन भाव भरे
मन-मंथन गहरे घाव करे
पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
पल-पल दृग है आज सजल
भंवर नयन गह्वर में उलझी
प्रश्न पहेली कभी न सुलझी
क्यों दुखता है पाटल उर का?
मौन तुम्हारा हरपल चुभता
प्राणों का कर दिया समर्पण
झर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल
--श्वेता सिन्हा
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत-बहुत आभार दी।
Deleteसादर।
जिसने घाव को सींच कर दुख को जिया हो
ReplyDeleteवो ऐसा लिख सकता है
बहुत शानदार शब्दावली
हृदयस्पर्शी भाव।
मेरे ब्लॉग पर स्वागत रहेगा।
हृदययल से अति आभार आपका रोहित जी।
Deleteसादर
स्मृतियों के पांव पखारू
ReplyDeleteपल-पल दृग हैं आज सजल
बहुत ही मर्मस्पर्शी व भावपूर्ण रचना
सादर
सादर आभार अभिलाषा जी।
Deleteहृदययल से बेहद शुक्रिया।
मौन हृदय की घाटी में
ReplyDeleteदिवा सांझ की पाटी में....
शुरूआत ही इतनी शानदार !
भावों से भरे हृदय की रचना...बेहतरीन शब्दावली, लयबद्ध, छंदबद्ध सुंदर गीत !
मीना दी,
Deleteआपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया पाकर हम फूले नहीं समा रहे..स्नेह बनये रखें दी। लिखने का हौसला बना रहता है।
सादर आभार दी।
श्वेता आप किसी भी भाव को चाहे वो चाहत का हो चाहे समर्पण का चाहे एहसासों की अदायगी का चरम पर ले जाने मे इतनी सक्षम हो कि उसे एक ही शब्द मै कहूं तो बैजोड़!!! सिर्फ बैजोड़।
ReplyDeleteअप्रतिम अद्भुत रचना।
मेरी प्यारी दी,
Deleteआपके स्नेह पर हम क्या कहें...पर यह अतिशयोक्ति है☺
आपका आशीष बना रहे यही प्रार्थना है।
सादर आभार दी...हृदययल से बेहद शुक्रिया।
बहुत सुंदर भाव और शब्दावली।
ReplyDeleteवाह!!सिर्फ वाह!
सादर आभार आपका।.स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई।
Deleteवाह!!श्वेता ,दिल को भा गए भाव तुम्हारे
ReplyDelete.... . कितने सुंदर शब्दों से संजोए ।
सादर आभार आपका शुभा दी।
Deleteभंवर नयन गह्वर में उलझी
ReplyDeleteप्रश्न पहेली कभी न सुलझी
क्यों दुखता है पाटल उर का?
मौन तुम्हारा हरपल चुभता..
बेहतरीन। बेमिसाल। लाज़वाब। नमन आपके काव्य कौशल को..
आपका हार्दिक अभिनंदन अमित जी।
Deleteबहुत दिनों के बाद आपकी प्रतिक्रिया पाकर आनंदित हूँ।
हृदययल से अति आभार आपका।
सादर।
आपकी इस रचना के विषय मे कुछ भी कहना सूरज को दीप दिखाने समान होगा
ReplyDeleteपर फिर भी इतना अवश्य कहूंगा "अतुलनीय"
आपकी इतनी सराहना पर निःशब्द है कृपया स्नेह बनाये रखें।
Deleteहृदयतल से अति आभार आपका।
बहुत बहुत सुंदर बिटिया स्वेता सिन्हा
ReplyDeleteप्रणाण चाचाजी,
Deleteआपके आशीष का आभार।
ReplyDeleteसाँसों की सिहरन भाव भरे
मन-मंथन गहरे घाव करे
पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
पल-पल दृग है आज सजल बेहद खूबसूरत रचना
सादर आभार अनुराधा जी।
Deleteबहुत अच्छा लिखा आपने
ReplyDeleteसादर आभार कुलदीप जी।
Deleteअनुराग की भाव गंगा का निश्छल प्रवाह!!!बेहतरीन रचना। सादर।
ReplyDeleteहृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।
Deleteआपका आशीष सदैव विशेष है।
बहुत मार्मिक रचना। बहुत अच्छे से लिखा लेखनी ने।
ReplyDeleteवाकई सुन्दर ,शानदार रचना
बेहद आभारी है प्रिय नीतू।
Deleteस्नेह बनाये रखिए।
मन के भाव को सहज सार्थक शब्द और उचित बंधन में बांधना आसान नहीं होता पर आपने बहुत ही कोमल और भावपूर्ण शाब्दिक चयन से सीधे मन की बात मन तक उतार दी ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteआपके सराहनीय आशीष का हृदयतल से बेहद आभार नासवा जी।
Deleteबहुत सुंदर शब्दावली के साथ भावपूर्ण रचना, श्वेता।
ReplyDeleteसादर आभार ज्योति दी।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया।
प्राणों का कर दिया समर्पण
ReplyDeleteझर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल... वाह ,शब्द और भाव का सुंदर संयोजन
सादर आभार हृदयतल से बहुत शुक्रिया वंदना जी।
Deleteवाह वाह अप्रतिम प्रिय श्वेता ...अद्भुत शब्द रस वर्षण
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय इन्दिरा जी।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया।
प्राणों का कर दिया समर्पण
ReplyDeleteझर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल-
अनुरागी मन का दर्द शब्द शब्द झरता निर्झर सा बह रहा है | अत्यंत सुंदर रचना |पीड पगे मन की विरह कथा | सधी रचना के लिए मेरा प्यार |
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