Sunday 12 August 2018

दृग है आज सजल


मौन हृदय की घाटी में
दिवा सांझ की पाटी में
बेकल मन बौराया तुम बिन
पल-पल दृग है आज सजल

मन के भावों को भींचता
पग पीव छालों को सींचता
कैसे अनदेखा कर दूँ बोलो?
तेरा सम्मोहन,हिय को खींचता

साँसों की सिहरन भाव भरे
मन-मंथन गहरे घाव करे
पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
पल-पल दृग है आज सजल

भंवर नयन गह्वर में उलझी
प्रश्न पहेली कभी न सुलझी
क्यों दुखता है पाटल उर का?
मौन तुम्हारा हरपल चुभता

प्राणों का कर दिया समर्पण
झर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल

--श्वेता सिन्हा

43 comments:

  1. Replies
    1. बहुत-बहुत आभार दी।
      सादर।

      Delete
  2. जिसने घाव को सींच कर दुख को जिया हो
    वो ऐसा लिख सकता है
    बहुत शानदार शब्दावली
    हृदयस्पर्शी भाव।


    मेरे ब्लॉग पर स्वागत रहेगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदययल से अति आभार आपका रोहित जी।
      सादर

      Delete
  3. स्मृतियों के पांव पखारू
    पल-पल दृग हैं आज सजल
    बहुत ही मर्मस्पर्शी व भावपूर्ण रचना
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अभिलाषा जी।
      हृदययल से बेहद शुक्रिया।

      Delete
  4. मौन हृदय की घाटी में
    दिवा सांझ की पाटी में....
    शुरूआत ही इतनी शानदार !
    भावों से भरे हृदय की रचना...बेहतरीन शब्दावली, लयबद्ध, छंदबद्ध सुंदर गीत !

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना दी,
      आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया पाकर हम फूले नहीं समा रहे..स्नेह बनये रखें दी। लिखने का हौसला बना रहता है।
      सादर आभार दी।

      Delete
  5. श्वेता आप किसी भी भाव को चाहे वो चाहत का हो चाहे समर्पण का चाहे एहसासों की अदायगी का चरम पर ले जाने मे इतनी सक्षम हो कि उसे एक ही शब्द मै कहूं तो बैजोड़!!! सिर्फ बैजोड़।
    अप्रतिम अद्भुत रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी प्यारी दी,
      आपके स्नेह पर हम क्या कहें...पर यह अतिशयोक्ति है☺
      आपका आशीष बना रहे यही प्रार्थना है।
      सादर आभार दी...हृदययल से बेहद शुक्रिया।

      Delete
  6. बहुत सुंदर भाव और शब्दावली।
    वाह!!सिर्फ वाह!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आपका।.स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई।

      Delete
  7. वाह!!श्वेता ,दिल को भा गए भाव तुम्हारे
    .... . कितने सुंदर शब्दों से संजोए ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आपका शुभा दी।

      Delete
  8. भंवर नयन गह्वर में उलझी
    प्रश्न पहेली कभी न सुलझी
    क्यों दुखता है पाटल उर का?
    मौन तुम्हारा हरपल चुभता..

    बेहतरीन। बेमिसाल। लाज़वाब। नमन आपके काव्य कौशल को..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक अभिनंदन अमित जी।
      बहुत दिनों के बाद आपकी प्रतिक्रिया पाकर आनंदित हूँ।
      हृदययल से अति आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  9. आपकी इस रचना के विषय मे कुछ भी कहना सूरज को दीप दिखाने समान होगा
    पर फिर भी इतना अवश्य कहूंगा "अतुलनीय"

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी इतनी सराहना पर निःशब्द है कृपया स्नेह बनाये रखें।
      हृदयतल से अति आभार आपका।

      Delete
  10. बहुत बहुत सुंदर बिटिया स्वेता सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रणाण चाचाजी,
      आपके आशीष का आभार।

      Delete

  11. साँसों की सिहरन भाव भरे
    मन-मंथन गहरे घाव करे
    पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
    पल-पल दृग है आज सजल बेहद खूबसूरत रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अनुराधा जी।

      Delete
  12. बहुत अच्छा लिखा आपने

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार कुलदीप जी।

      Delete
  13. अनुराग की भाव गंगा का निश्छल प्रवाह!!!बेहतरीन रचना। सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदयतल से बेहद शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।
      आपका आशीष सदैव विशेष है।

      Delete
  14. बहुत मार्मिक रचना। बहुत अच्छे से लिखा लेखनी ने।
    वाकई सुन्दर ,शानदार रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बेहद आभारी है प्रिय नीतू।
      स्नेह बनाये रखिए।

      Delete
  15. मन के भाव को सहज सार्थक शब्द और उचित बंधन में बांधना आसान नहीं होता पर आपने बहुत ही कोमल और भावपूर्ण शाब्दिक चयन से सीधे मन की बात मन तक उतार दी ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके सराहनीय आशीष का हृदयतल से बेहद आभार नासवा जी।

      Delete
  16. बहुत सुंदर शब्दावली के साथ भावपूर्ण रचना, श्वेता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार ज्योति दी।
      हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

      Delete
  17. प्राणों का कर दिया समर्पण
    झर-झर झरते आँसू अपर्ण
    स्मृतियों के पाँव पखारुँ
    पल-पल दृग है आज सजल... वाह ,शब्द और भाव का सुंदर संयोजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार हृदयतल से बहुत शुक्रिया वंदना जी।

      Delete
  18. वाह वाह अप्रतिम प्रिय श्वेता ...अद्भुत शब्द रस वर्षण

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीय इन्दिरा जी।
      हृदयतल से बहुत शुक्रिया।

      Delete
  19. प्राणों का कर दिया समर्पण
    झर-झर झरते आँसू अपर्ण
    स्मृतियों के पाँव पखारुँ
    पल-पल दृग है आज सजल-
    अनुरागी मन का दर्द शब्द शब्द झरता निर्झर सा बह रहा है | अत्यंत सुंदर रचना |पीड पगे मन की विरह कथा | सधी रचना के लिए मेरा प्यार |

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...