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Sunday, 12 August 2018

दृग है आज सजल


मौन हृदय की घाटी में
दिवा सांझ की पाटी में
बेकल मन बौराया तुम बिन
पल-पल दृग है आज सजल

मन के भावों को भींचता
पग पीव छालों को सींचता
कैसे अनदेखा कर दूँ बोलो?
तेरा सम्मोहन,हिय को खींचता

साँसों की सिहरन भाव भरे
मन-मंथन गहरे घाव करे
पिंजरबंद्ध अकुलाये पाखी
पल-पल दृग है आज सजल

भंवर नयन गह्वर में उलझी
प्रश्न पहेली कभी न सुलझी
क्यों दुखता है पाटल उर का?
मौन तुम्हारा हरपल चुभता

प्राणों का कर दिया समर्पण
झर-झर झरते आँसू अपर्ण
स्मृतियों के पाँव पखारुँ
पल-पल दृग है आज सजल

--श्वेता सिन्हा

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मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...