Tuesday, 14 August 2018

आज़ादी

अभी मैं कैसे जश्न मनाऊँ,कहाँ आज़ादी पूरी है,
शब्द स्वप्न है बड़ा सुखद, सच को जीना मजबूरी है।

आज़ादी यह बेशकीमती, भेंट किया हमें वीरों ने,

सत्तावन से सैंतालीस तक ,शीश लिया शमशीरों ने।

साल बहत्तर उमर हो रही,अभी भी चलना सीख  रहा,

दृष्टिभ्रम विकास नाम का,छल जन-मन को दीख रहा।

जाति,धर्म का राग अलाप,भीड़ नियोजित बर्बरता,

नहीं बेटियाँ कहीं सुरक्षित,बस नारों में गूँजित समता।

भूखों मरते लोग आज भी,शर्म कहाँ तुम्हें आती है?

आतंकी की गोली माँ के लाल को कफ़न पिन्हाती है।

आज़ादी क्या होती है पूछो ,कश्मीर के पत्थरबाजों से,

ईमान जहाँ बिकते डर के , कुछ जेहादी शहजादों से।

मन कैसे हो उल्लासित, बंद कमरों में सिमटे त्योहार,

वाक् युद्ध अब नहीं चुनावी, मैले दिल बदले व्यवहार।

आँखें मेरी सपना बुनती, एक नयी सुबह मुस्कायेगी,

शिक्षा की किरण तम को हर कर,भय,भूख से मुक्ति दिलायेंगी

हम सीखेंगे मनुष्यता और मानवता के पुष्प खिलायेंगे।

स्वयं के अहं से ऊपर उठकर भारतवासी कहलायेंगे।

भूल विषमता व्यक्तित्व परे,सब मिलकर अलख जगायेंगे।

कन्या से कश्मीर तक स्वरबद्ध जन-मन-गण दोहरायेंगे।

---श्वेता सिन्हा

sweta sinha जी बधाई हो!,


आपका लेख - (आज़ादी) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

22 comments:

  1. हम सीखेंगे मनुष्यता और मानवता के पुष्प खिलायेंगे।
    स्वयं के अहं से ऊपर उठकर भारतवासी कहलायेंगे।
    बहुत खूबसूरत भाव श्वेता जी । स्वतन्त्रता दिवस की अग्रिम बधाई ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत-बहुत आभारी है हम आपके मीना जी।
      आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏

      Delete
  2. भूल विषमता व्यक्तित्व परे,सब मिलकर अलख जगायेंगे।
    कन्या से कश्मीर तक स्वरबद्ध जन-मन-गण दोहरायेंगे।.... देश प्रेम से भरी कर्तव्य के प्रति आगाह करती सुंदर रचना श्वेता जी ... स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना का मर्म समझकर प्रतिक्रिया करने के लिए हृदययल से खूब आभार आपका वंदना जी।

      आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
      सादर।

      Delete
  3. सुंदर रचना श्वेता जी ... 👌👌👌
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...🙏🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार प्रिय नीतू।
      आपको भी स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं🙏

      Delete
  4. श्वेता जी,

    बहुत सुंदर और भाव प्रधान रचना.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीय सर।

      आपके आशीष से मन प्रसन्न हुआ।

      Delete
  5. वआह....
    बेहतरीन
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदययल से अति आभार दी।
      आपका आशीष मिला मन प्रसन्न हुआ।
      स्नेह बनाये रखिये दी।
      सादर।

      Delete
  6. वाहह!! कर्तव्यों और देशप्रेम की भाव से वशीभूत रचना।

    ReplyDelete
  7. भूल विषमता व्यक्तित्व परे,सब मिलकर अलख जगायेंगे।
    कन्या से कश्मीर तक स्वरबद्ध जन-मन-गण दोहरायेंगे।
    बहुत सुंदर रचना 👌 जय हिन्द वन्दे मातरम्

    ReplyDelete
  8. सार्थक और सामयिक लिखा है ... सच है कि अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है पर शुरुआत हो तो सफलता भी मिलेगी ...
    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई ...

    ReplyDelete
  9. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 16 अगस्त 2018 को प्रकाशनार्थ 1126 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

    ReplyDelete
  10. बहुत उम्दा श्वेता जी सही चित्रण किया है आपने आज़ादी पाना जितना मुश्किल था उतना ही वर्तमान समय मे मानवता लाना और सबको निष्पक्षता समानता का पाठ समझाना, उम्मीद है जल्द ही हमारा भारत इन सबसे मुक्त होकर प्रगतिपथ पर शांतिदूत बनकर अग्रसर होगा

    ReplyDelete
  11. आज़ादी क्या होती है पूछो ,कश्मीर के पत्थरबाजों से,
    ईमान जहाँ बिकते डर के , कुछ जेहादी शहजादों से।......वाह!!! समकालीन परिदृश्य की विडम्बना का कितनी साफगोई से अपने शब्दों में चित्रांकन किया आपने!!! अत्यंत सार्थक और सोद्देश्य कविता रचनाधर्मिता का निर्वाह करती हुई. बधाई और आभार!!!

    ReplyDelete
  12. अप्रतिम रचना, वर्तमान पर करारी चोट
    जय भारत

    ReplyDelete
  13. कैसे लिख लेती हैं आप इतना अच्छा।

    भाव तो उमड़ घुमड़ के बरस बड़े
    समकालीन दृश्य पर कटाक्ष, गौरव गाथा, आशा, उम्मीद,दर्द सब एक ही जगह इकठ्ठे।

    ReplyDelete
  14. भूखों मरते लोग आज भी,शर्म कहाँ तुम्हें आती है?
    आतंकी की गोली माँ के लाल को कफ़न पिन्हाती है।
    आज़ादी क्या होती है पूछो ,कश्मीर के पत्थरबाजों से,
    ईमान जहाँ बिकते डर के , कुछ जेहादी शहजादों से

    बहुत खूब प्रिय श्वेता | देशप्रेम से लबरेज औरएकता और देश के प्रति कर्तव्यो का आह्वान करती ओजपूर्ण रचना की जितनी प्रशंसा करूं कम है | बधाई के साथ मेरा प्यार |

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...