मानसून के शुरुआत में चंद छींटे और बौछार, उसके बाद तो
पूरा अषाढ़ बीत गया बरखा रानी हमारे शहर
बरसना भूल गयी है।
घटायें छाती हैं उम्मीद बँधती है कि बारिश होगी पर, बेरहम हवायें बादलोंं को उड़ाकर जाने कहाँ ले जाती हैं, एक भी टुकड़ा नहीं दिखता बादल का, सूना आसमान मुँह चिढ़ाता है और मन उदासी से भर जाता हैंं।
बहुत चिंतित हूँ,
सब कह रहे अभी सावन बीता नहीं है देखना न इतनी बारिश होगी कि परेशान हो जाना। मैं अब बेसब्री से बारिश प्रतीक्षा कर रही हूँ,
खूब झमाझम बरसात हो यही दुआ कर रही हूँ,
प्रकृति का कण-कण तृप्त हो जाये।
सावन बारिश का मौसम ही नहीं हैं
सावन उम्मीद है,सपना है,खुशी है,त्योहार-उत्सव है,उमंग-तरंग है,राग-रंग है,सुर-संगीत है,प्रेम-गीत है।
मेरी स्मृतियों में सावन
सावन
----
टप-टपाती मादक बूँदों की
रुनझुनी खनक,
मेंहदी की
खुशबू से भींगा दिन,
पीपल की बाहों में
झूमते हिंडोले,
पेड़ों के पत्तों,
छत के किनारी से
टूटती
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ
आसमान के
माथे पर बिखरी
शिव की घनघोर जटाओं से
निसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
हरकर सारा विष ताप का
अमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
#श्वेता सिन्हा
पूरा अषाढ़ बीत गया बरखा रानी हमारे शहर
बरसना भूल गयी है।
घटायें छाती हैं उम्मीद बँधती है कि बारिश होगी पर, बेरहम हवायें बादलोंं को उड़ाकर जाने कहाँ ले जाती हैं, एक भी टुकड़ा नहीं दिखता बादल का, सूना आसमान मुँह चिढ़ाता है और मन उदासी से भर जाता हैंं।
बहुत चिंतित हूँ,
सब कह रहे अभी सावन बीता नहीं है देखना न इतनी बारिश होगी कि परेशान हो जाना। मैं अब बेसब्री से बारिश प्रतीक्षा कर रही हूँ,
खूब झमाझम बरसात हो यही दुआ कर रही हूँ,
प्रकृति का कण-कण तृप्त हो जाये।
सावन बारिश का मौसम ही नहीं हैं
सावन उम्मीद है,सपना है,खुशी है,त्योहार-उत्सव है,उमंग-तरंग है,राग-रंग है,सुर-संगीत है,प्रेम-गीत है।
मेरी स्मृतियों में सावन
सावन
----
टप-टपाती मादक बूँदों की
रुनझुनी खनक,
मेंहदी की
खुशबू से भींगा दिन,
पीपल की बाहों में
झूमते हिंडोले,
पेड़ों के पत्तों,
छत के किनारी से
टूटती
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ
आसमान के
माथे पर बिखरी
शिव की घनघोर जटाओं से
निसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
हरकर सारा विष ताप का
अमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
#श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 16, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-07-2019) को "बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है" (चर्चा अंक- 3398) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ/
ReplyDeleteशिव की घनघोर जटाओं से/
प्रकृति के पोर-पोर में/
प्राणदायिनी रस/
अद्भुत-अतुल्य बिम्ब ... बरसात ना होने की उलाहना प्रकृति से ... तथाकथित शिव का बिम्ब लेते हुए ...बेहतरीन और उम्दा ...गर्मी से परेशान आमजन लोगो के मन की वेदना -व्यथा का उदगार ..
वैसे आपके कल-कारखाने वाले शहर में बरसात ना भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता, कम से कम खेतों वाले भूभाग में तो होनी ही चाहिए।
वैसे ये बात बस यूँ ही कह रहा ... बरसात तो उस शहर में भी होनी ही चाहिए जहाँ कल-कारखाने और तथाकथित सूर्य देवता की कॉकटेल वाली गर्मी से आमजन निजात पा सके ... आमजन .. क्योंकि AC वालों को तो यूँ भी असर नहीं पड़ता ...
शिव की घनघोर जटाओं से
ReplyDeleteनिसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब... सावन के खूबसूरत विम्ब...
वैसे अब सावन ऐसा कहाँ रहा ...अब तो कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा ।
बूँदें जीवन बन के आती हैं ... फ़ैल जाती हैं उपवन में आशा का सन्देश ले कर ... अच्छी रचना है ...
ReplyDeleteवाह ! बेहतरीन सृजन प्रिय सखी
ReplyDeleteसादर
वर्षा के आगमन पर उल्लसित होती प्रकृति का सुंदर चित्रण
ReplyDeleteशिव की घनघोर जटाओं से
ReplyDeleteनिसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
बहुत सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने जज्बात को
बहुत सुन्दर श्वेता. हमारे बचपन में मौसम की पहली बारिश का हम लोग भरपूर स्वागत करते थे. लाल मखमली बीर-बहूटियाँ तो आज कहीं दिखाई ही नहीं देती हैं. आम और जामुन की बहार होती थी और बारिश की अकेली एक फुहार सैकड़ों ए. सी का मज़ा देती थी. और फिर सावन के गीत ! मीठी कजरी ! झूला-गीत ! जाने कहाँ गए वो दिन !
ReplyDeleteसावन के नाम बहुत सुंदर सृजन प्रिय श्वेता ! नए प्रतीक रचना को नये अर्थ प्रदान कर रहे हैं |खासकर --- शिव की घनघोर जटाओं से निसृत
ReplyDeleteगंगा-सी पवित्र धरा से बूंदों की तुलना बहुत मनमोहक है | सस्नेह शुभकामनायें इस भावपूर्ण रचना के लिए |
दूधिया धाराएँ