रश्मि पुंज निस्तेज है
मुखौटों का तेज है
सुन सको तो सुनो
चेहरा पढ़ने में असमर्थ
आँखों का मूक आर्तनाद।
झुलस रही है तिथियाँ
श्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।
विलाप की विवेचना
शव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न है।
धूल-धूसरित,मलबे
छितराये हुए अवशेष
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।
अफ़रा तफ़री उत्सवी
मृत्यु शोक मज़हबी
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
एकमात्र विकल्प है।
-श्वेता सिन्हा
१०फरवरी२०२२
good poem
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (११ -०२ -२०२२ ) को
'मन है बहुत उदास'(चर्चा अंक-४३३७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वर्तमान परिपेक्ष्य की सटीक बात
जवाब देंहटाएंनैराश्य के घोर तिमिर में क्रंदन-सा अहसास! अतिरंजित अवसाद भाव!
जवाब देंहटाएंअफ़रा तफ़री उत्सवी
जवाब देंहटाएंमृत्यु शोक मज़हबी
निरपेक्ष राष्ट्र की
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
एकमात्र विकल्प है।/////
मरती मानवीय संवेदनाओं की पड़ताल करती सार्थक रचना प्रिय श्वेता हार्दिक शुभकामनाएं।
अद्भुत!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगहरे, मन को झंझोड़ते भाव ...
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है ...
हाहाकारी अभिव्यक्ति! आरियाँ चलाती हुई....
जवाब देंहटाएंश्वेता जी,
जवाब देंहटाएंकलम की पैनी धार शब्दों की नुकीली कटार
दो टूक कसैली टेढ़ी बात नश्तर-सी चुभ गई.
अभिनन्दन.नमस्ते.
उफ़्फ़,
जवाब देंहटाएंदेखो ये विकल्प कब तलक स्किप किया जा सकता है इन ज़बरन-बने-बनाये-ज्ञानी महामूर्खों के द्वारा।
मानवता को अपने स्वार्थ की ख़ातिर तार तार किये जा रहे हैं रोज।
ये बेबाक सच्ची कविता हुई... वाह।
नई पोस्ट- CYCLAMEN COUM : ख़ूबसूरती की बला
"झुलस रही है तिथियाँ
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।"
बेहद खूबसूरत !!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
रश्मि पुंज निस्तेज है
जवाब देंहटाएंमुखौटों का तेज है
सुन्दर सृजन
अधिकतर नकारात्मकता अवसाद का आधार
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के संग सस्नेहाशीष
मानवीय संवेदनाओं का विवेचन करती बहुत सुंदर रचना,स्वेता दी।
जवाब देंहटाएंमानवीय संवेदनाएँ आखिर ढूँढती क्यों हो ? सौहार्द की भावना दम तोड़ चुकी है । धर्म मन में ज़हर भर रहा है कहीं भी कुछ बोला तो विरोध के लिए एक फौज खड़ी है । किसी के पक्ष ,विपक्ष में न राह कर बस निर्विकार भाव रखो । आज के समय में मौन सबसे बड़ा हथियार है । बाकी विकल्प जीवन से पलायन है ।
जवाब देंहटाएंरचना तुम्हारे मन में उठने वाले उद्वेग को कह रही है । विचारणीय अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंवाह!श्वेता ,बहुत खुब !
जवाब देंहटाएंधार दार तंज श्वेता !
जवाब देंहटाएंसंप्रदायों की आत्महत्या, शानदार व्यंजना भावों का गहन आलोड़न ।
बहुत सुंदर सृजन।
बढियां बहुत खूब
जवाब देंहटाएंविलाप की विवेचना
जवाब देंहटाएंशव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न
समसामयिकी पर धारदार कटाक्ष
प्राणरक्षा के लिए
संप्रदायों का आत्महत्या करना
सटीक एवन अद्भुत
लाजवाब सृजन।
धूल-धूसरित,मलबे
जवाब देंहटाएंछितराये हुए अवशेष
विघटन की प्रक्रिया में
हर खंडहर हड़प्पा नहीं
जीवित मनुष्यों का उत्खनन है।.. गूढ़ चिंतना का संप्रेषण । उत्कृष्ट रचना ।