Wednesday 26 July 2023

संवेदना


 तेजी से बदलते परिदृश्य
एक के ऊपर लदे घटनाक्रमों से
भ्रमित पथराई स्मृतियों को
पीठ पर टाँगकर
बीहड़ रास्तों पर दौड़ती,मीलों हाँफती
लहुलुहान पीड़ा
चंद शब्दों के मरहम की उम्मीद लिए
संवेदनहीन नुकीले पत्थरों के 
संकरे गलियारों में
असहाय सर पटक-पटककर 
दम तोड़ देती है...।

जाने ये कौन सा दौर है
नरमुंडों के ढेर पर बैठी
रक्त की पगडंडियों पर चलकर
उन्माद में डूबी भीड़
काँच के मर्तबानों में बंद
तड़पती रंगीन गूँगी मछलियों की 
की चीखों पर
कानों पर उंगली रखकर
तमाशबीन बनकर
ढोंग करती हैं
घड़ियाली संवेदना का
क्या सचमुच बुझ सकेगा
धधकता दावानल
कृत्रिम आँसुओं के छींटे से?
कोई क्यों नहीं समझता
रिमोट में बंद संवेदना से
नहीं मिट सकता
मन का अंर्तदाह...।
--------
-श्वेता

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 जुलाई 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. घड़ियाली संवेदना का
    क्या सचमुच बुझ सकेगा
    धधकता दावानल
    कृत्रिम आँसुओं के छींटे से?
    कोई क्यों नहीं समझता
    रिमोट में बंद संवेदना से
    नहीं मिट सकता
    मन का अंर्तदाह...।

    आपकी रचना यथार्थ को प्रस्तुत कर रही है।
    सुंदर प्रतीकों और बिंबों से सजी अप्रतिम रचना सादर

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  3. संवेदना घड़ियाली ही है जो तमाशबीन बनकर ढोंग करती है। और यही तथ्य समग्र समस्याओं के मूल में अवस्थित है। संवेदना यदि सच्ची हो तो प्रत्येक समस्या का समाधान निकल आए, प्रत्येक पीड़ादायी घाव को मलहम मिल जाए।

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  4. क्या सचमुच बुझ सकेगा
    धधकता दावानल
    कृत्रिम आँसुओं के छींटे से?
    कोई क्यों नहीं समझता
    रिमोट में बंद संवेदना से
    नहीं मिट सकता
    मन का अंर्तदाह...।
    आज किसी के मन के अंतर्दाह को मिटाना चाहता कौन है ? घाव में नमक मिर्च डाल तड़पती छटपटाती आत्मा का वीड़ियो बनाकर बेचना और फिर घड़ियाली संवेदना को मात्र शब्दों से उड़ेलना , बस देखना और दिखाना ! यही तो बचा है मानवता के नाम....।
    बहुत सटीक एवं लाजवाब।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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