(१)
सत्तर वर्षों से
ठिठुरता गणतंत्र
पदचापों की
गरमाहट से
जागकर
कोहरे में लिपटा
राजपथ
पर कुनमुनाता है।
गवाह
प्राचीर लालकिला
देश की सुख-समृद्धि
वैभवपूर्ण,संपूर्ण
शौर्य गाथा
अतिथियों की
करतल ध्वनियों पर
गर्व से लहराता तिरंगा
राजा दर्प से
और इतराता है।
झाँकियाँ रंगबिरंगी
प्रदेशों और विभागों की
सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
गिनवाती
नाचते-गाते
आदमकद पुतले,
कठपुतली सरीखे
पात्रों के साथ
मिलकर रचाते है
मनोरंजक नाटक
समझदार दर्शक
समय समाप्ति की
प्रतीक्षा में अधीर
कृत्रिम मुसकान
चिपकाये अलसाता है।
हमारा समृद्ध,गौरवशाली
पारंपरिक गणतंत्र
ऐसे ही मनाया जाता है।
(२)
सोच रही हू्ँ
एक दिवस और;
उत्साह और उमंग से
परिपूर्ण
राजपथ पर
सजना चाहिये
जनतंत्र दिवस के नाम
झूठी,शान बघारती,
उपलब्धियाँ
महज आँकड़े
गिनवाने की भीड़
की नहीं
प्रादेशिक,आँचलिक
सामाजिक कुरीतियों,
कमियों की,
जन हितों की
अनदेखी की
सच्ची झाँकियाँ,
आत्ममंथन,
कार्यावलोकन को
प्रेरित करती,
कराहते पीड़ित,वंचितों
के लिए खुशियाँ मनाने का
कोई एक दिन तो हो
महज
आशाओं के पंख
पर सवार
दिवास्वप्न मात्र नहीं
औपचारिकता,कृत्रिमता
से परे
जन के मन का
राष्ट्र का सत्य से
साक्षात्कार का दिवस
एक त्योहार
ऐसा भी होना ही चाहिए।
#श्वेता सिन्हा