बचपन से जाना है हिंदी
भारत के भाल पर बिंदी
राष्ट्र की खास पहचान
हिंदी भाषी अपना नाम
गोरो ने जो छोड़ी धरोहर
उसके आगे हुई है चिंदी
हिंदी भाषी अपना नाम
गोरो ने जो छोड़ी धरोहर
उसके आगे हुई है चिंदी
हिंदी भाषा नहीं भाव है
संस्कृति हमारी चाव है
सबको एक सूत्र में जोड़े
कश्मीरी हो या हो सिंधी
संस्कृति हमारी चाव है
सबको एक सूत्र में जोड़े
कश्मीरी हो या हो सिंधी
न रोटी में न मान है मिलता
शर्म से शीश नवाये छिपता
सभ्य असभ्य के बीच दीवार
खींच दे रेखा अपनी हिंदी
शर्म से शीश नवाये छिपता
सभ्य असभ्य के बीच दीवार
खींच दे रेखा अपनी हिंदी
बूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी
न जाने अंग्रेज़ी तो अपमान है
देश में हिंदी की कैसी शान है
न लौटेंगे दिन वो सुनहरे फिर
जब कभी गर्व से कह पाये हम
हिंदी भारत के माथे की बिंदी
#श्वेता🍁
देश में हिंदी की कैसी शान है
न लौटेंगे दिन वो सुनहरे फिर
जब कभी गर्व से कह पाये हम
हिंदी भारत के माथे की बिंदी
#श्वेता🍁
बहुत बहुत सुंदर रचना श्वेता जी। बहुत खूब।
ReplyDeleteबूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी।
सुंदर कटाक्ष।।
आभार आभार अति आभार आपका अमित जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 14 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया दी।
Deleteबहुत सुंदर रचना श्वेता जी, हिंदी की गरिमा हिंदी भाषी ही भूल रहे हैं. सवाल ये है कि हमे ये हिंदी दिवस या उसके आस पास के दिनो में ही याद आता है.
ReplyDeleteसही कहा आपने बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका अपर्णा जी।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत सुंदर रचना श्वेता जी, हिंदी की गरिमा हिंदी भाषी ही भूल रहे हैं. सवाल ये है कि हमे ये हिंदी दिवस या उसके आस पास के दिनो में ही याद आता है.
ReplyDeleteश्वैता जी,
ReplyDeleteसब बढिया. गुस्ताखी माफ.. हिंदी न कभी राष्ट्रभाषा रही न अभी है. आवश्यक.समझें तो सुधार लें हिंदी राजभाषा मात्र है.
रंगराज जी,
Deleteसंवैधनिक तौर पर हिंदी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया क्योंकि यह देश के अधिकांश भागों में बोली और समझी जाती है।
अति आभार आपका।
श्वेता जी, समय मिलने पर पुनः जाँच लें. हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है. संविधान में यह शब्द है ही नहीं.
Deleteतकलीफ हेतु क्षमाप्रार्थी.
कभी इस विशेष पर अलग से विस्तृत चर्चा करेंगे. आपकी रचना को ज्यादा खराब न करें तो बेहतर होगा न. धन्यवाद
Deleteन जाने अंग्रेजी तो अपमान है
ReplyDeleteदेश में हिंदी की कैसी शान है
न लौटेगें दिन वो सुनहरे फिर
जब कभी गर्व से कह पाये हम
हिंदी भारत के भाल की बिंदी है
वाह!!!
सटीक.... आजकल अंग्रेज़ी भाषी न होने पर वाकई अपमानित महसूस करते है...
हिन्दी हीनभावना बन रही है...अपनी हिंदी की ऐसी दुर्दशा.... बहुत ही लाजवाब...
जी,सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया आपकी सुंदर सुलझी प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteहिंदी-दिवस की पूर्व संध्या पर सुंदर,विचारणीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteयह कटाक्ष मातृभाषा के प्रति हमारी उथली सोच पर प्रहार करता है।
निस्संदेह भारत की संपर्क भाषा हिंदी है फिर भी राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्ज़ा हासिल करने में अब तक विफल क्यों है?
भाषा से हमारा भावनात्मक लगाव होता है जोकि उसके संवर्धन और संरक्षण के लिए हमें सदैव सजग रखता है।
अन्य भाषाओं के साथ तालमेल और नवीनतम शब्दावली की ग्राह्ता ज़रूरी है किसी भी भाषा के समृद्ध होने के लिए।
आपको बधाई एवं शुभकामनाऐं हिंदी-दिवस (14 सितम्बर) के मद्देनज़र विचारशील रचना प्रस्तुत करने के लिए।
बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteआपके सुंदर सारगर्भित मंतव्य के लिए आभारी है हम।
आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदयतल से आभार।
आदरणीय रंगराज जी,
ReplyDeleteव्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर हिंदी भाषी लोग हिंदी को ही राष्ट्र भाषा मानते है।भले ही यह संवैधानिक तौर पर लागू न हो अब तक।
स्वतंत्रता के बाद किये गये प्रावधानों में यह लिखा जाना कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी राजभाषा (संपर्क भाषा) के रूप में चलती रहेगी और इसके बाद हिंदी को पूर्णतः राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया जाएगा। महज इसलिए प्रावधान स्वरूप रखा गया ताकि 15 वर्षों में अहिंदी भाषा क्षेत्र के लोग हिंदी सीख ले, पर ऐसा नहीं हुआ, और हम आज भी अपनी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा का सम्मानजनक स्थान नहीं दिला पाए। हमारी राष्ट्रभाषा समिति में शामिल हमारे देश के कर्णधारों ने एक और बंटाधार संविधान के अनुच्छेद 343 (3) में कर दिया और यह उल्लेखित और कलमबद्ध कर दिया गया कि उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात भी संसदविधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ऐसे प्रयोजनों के लिए कर सकेगी, जैसा की विधि में उल्लेखित हो।
किंतु हम प्रबुद्ध जनों का यह दायित्व बनता है कि हम हम अपनी संपर्क भाषा के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते है।हिंदी तो ठीक से राजभाषा भी नहीं बन पायी है,अगर अपनी मातृभाषा के सम्मान.में हम हिंदी राष्ट्र भाषा क संबोधन देते है तो क्या बुरा है,आपकी बातों से सहमत होते हुये भी व्यक्तिगत तौर पर ये मेरा मानना है कि हिंदी राष्ट्र भाषा है।
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Deletehttp://www.hindikunj.com/2017/09/national-language-hindi.html?m=1
Deleteआदरणीय अयंगर जी आपके हिंदी संबंधी ज्ञान का मैं मुरीद हूँ। हिंदी-भाषियों को जानने और समझने योग्य जानकारी से भरा आपका बेबाकी दर्शाता सारगर्भित आलेख मुझे बहुत पसंद आया। एक अहिन्दी भाषी लेखक का प्रामाणिक हिंदी पर उल्लेखनीय असर हमें बार-बार सोचने पर विवश करता है कि देश में अहिन्दी भाषी तो हिंदी सीखते हैं किन्तु हिंदी भाषियों ने कितनी अन्य भारतीय भाषाओँ को सीखा ? आपने अपने लेख में विस्तार से हिंदी के संवैधानिक दर्ज़े पर चर्चा की है। भावनात्मक रूप से हिंदी भाषी हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं किन्तु उसे अब तक क़ानूनी दर्ज़ा नहीं मिल पाया है जोकि संविधान द्वारा प्रदान किया जायेगा। अतः हिंदी बेशक अब तक राजभाषा ही है। बहुत धन्यवाद इस विचारणीय श्रम के लिए।
Deleteआदरणीय श्वेता सिन्हा जी के अपनी रचना "हिंदी"( मन के पाखी पर 13 -09 -2017) में हिंदी को राष्ट्रभाषा कहे जाने के भावनात्मक रुझान को आपने तथ्यपरक तर्कों से स्पष्ट किया है।
बहुत खूब रचना आपकी
ReplyDeleteबहुत बहुत स्वागत है गायत्री जी आपका ब्लॉग पर।आभार आपका।
DeleteGoron ki angrejiyat ko ek din hindi chunauti degi
ReplyDeletehar hindustani k mastak par hai aur wahin rahegi.
khubsurat udgar vyakt kiye sadhuwad!
बहुत बहुत आभार आपका अभि जी।
Deleteबेहद खूबसूरत .......,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteबहुत सुंदर,विचारणीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से.शुक्रिया पम्मी जी।
Deleteआदरणीय श्वेता जी ----- मर्मान्तक शब्दों में उपेक्षित हिंदी की दशा को आपने कह डाला |
ReplyDeleteन जाने अंग्रेजी तो अपमान है
देश में हिंदी की कैसी शान है
न लौटेगें दिन वो सुनहरे फिर
जब कभी गर्व से कह पाये हम
हिंदी भारत के भाल की बिंदी है।
-------- बहुत ही बढ़िया !!!!!!!!!!
आदरणीय रेणु जी,
Deleteआपकी सुंदर ऊर्जावान पंक्तियाँ के लिए तहेदिल से बहुत बहुत आभार।नेह बनाए रखें कृपया।
हम सबसे जितना बन पड़ेगा हम करेंगे श्वेता जी। आखिर हिंदी हमारे प्राणों में बहती है । आपने तो मेरे मन की पीड़ा को शब्द दे दिए....
ReplyDeleteबूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी !
मीना जी,आपके हृदय के सच्चे उद्गार आपके शब्दों में झलक रही है।बहुत बहुत आभार सस्नेह शुक्रिया आपका।
Deleteआज भी संवैधानिक तौर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न भी मिला हो लेकिन यह आज जन-जन की भाषा हैं और आने वाले दिनों में इंटर्नेट के माध्यम से इसका और प्रचार संभावित ही हैं। ऐसे में एक न एक दिन जरुर ये संवैधानिक तौर पर राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल करेंगी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति स्वेता!
जी,ज्योति जी सही कहा आपने,बहुत आभार आपका आपके विचार बहुत स्पष्ट है।तहेदिल से शुक्रिया जी।
Deleteहिन्दी की व्यथा को दर्शाती खूबसूरत रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteअति आभार आपका सर।तहेदिल से बहुत शुक्रिया।
Delete