नभ के दालान से
पहाड़ी के
कोहान पर फिसलकर
कोहान पर फिसलकर
क्षितिज की बाहों में समाता
सिंदुरिया सूरज,
सिंदुरिया सूरज,
किरणों के गुलाबी गुच्छे
टकटकी बाँधें
पेड़ों के पीछे उलझकर
पेड़ों के पीछे उलझकर
अनायास ही गुम हो जाते हैंं,
गगन के स्लेटी कोने से
उतरकर
उतरकर
मन में धीरे-धीरे समाता
विराट मौन
विराट मौन
अपनी धड़कन की पदचाप
से चिंहुकती
से चिंहुकती
अपनी पलकों के
झपकने के लय में गुम
झपकने के लय में गुम
महसूस करती हूँ
एकांत का संगीत
एकांत का संगीत
चुपके से नयनों को ढापती
स्मृतियों की उंगली थामे
मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ
एक पल स्वच्छंद हो
निर्भीक उड़कर
सारा सुख पा लेती हूँ,
नभमंडल पर विचरती
चंचल पंख फैलाये
चंचल पंख फैलाये
भूलकर सीमाएँ
कल्पवृक्ष पर लगे
मधुर पल चखती
मधुर पल चखती
भटकती
अमृत-घट की
एक बूँद की लालसा में
एक बूँद की लालसा में
तपती मरुभूमि में अनवरत,
दिव्य-गान हृदय के
भावों का सुनती
भावों का सुनती
विभोर सुधी बिसराये
घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
एकाकार हो जाती हूँ
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
सोमरस के मधुर घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।
----श्वेता सिन्हा
बहुत सुंदर लिखा है आपने
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteजी अति आभार आपका निश्छल जी,
ReplyDeleteरचना के भावों को विस्तार देती आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हुआ।
आपकी शुभकामनाओं के हार्दिक आभार।
सादर।🙏🙏
चाहती हूँ अपने
ReplyDeleteएकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।
बहुत खूबसूरत कविता
प्रिय श्वेता -- प्रणय की मधुर स्मृतियों में आकंठ डूबे मन के रेशमी भावों से गुंथी गयी अनुपम रचना के लिए क्या कहूं ? -
ReplyDeleteस्मृतियों की उंगली थामे
मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ-
अति सुंदर !!!!!!
और मन सुधियों में विचरता , सुधी बिसराता चांदनी के साथ एकाकार हो जाए तो प्रेम की उस पराकाष्ठा के क्या कहने ?
तपती मरुभूमि में अनवरत,
दिव्य-गान हृदय के भावों का सुनती
विभोर सुधी बिसराये
घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
एकाकार हो जाती हूँ
उसी प्रेम को समर्पित हर पंक्ति दिव्य प्रेम का स्तुति गान है |
इस दिव्य रचना की सराहना नही बस मेरा प्यार -- बहुत अनुपम है ये एकांत का उत्सव !!!!!!
क्या बात है प्रिय श्वेता ......
ReplyDeleteशब्दों पर नक्काशी कर नव अर्थ बनाकर
भाव काव्य स्थापित करना
गहरे हो अहसास निरंतर
तारतम्य लिखते जाना
दिव्य प्रेम को स्वर संगम का
जामा पहना कर प्रगट किया
क्या कहूँ क्या छोड़ दूँ
तुमने लेखन से मन तृप्त किया !
साधु साधु ..🙏🙏
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
ReplyDeleteसोमरस के मधुर घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।
बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता
बहुत बढिया रचना वास्तव में आपने मन की अथाह गहराइयों में बसे अनूभूत सत्य को प्रकट किया है। मन ही हमें इस विस्तृत भावसंसार का परिचय कराता
ReplyDeleteहै, आपने सबके मन की कह दी है।
अद्भुत सौंदर्य से छलकता विरह गान, मन का एकाकीपन हर शै मे कुछ अपनी ही बनाई मरीचिका मे उलझा सा ।
ReplyDeleteनूर की बूंद
उसकी रहमत
खुशी का अदृश्य
आभामंडल
छुपा कहीं
तेरे मेरे अंदर
बस मन की
आंखों से पीलो
अमृत का कतरा कतरा
और भर लो मन गागर मे
ये वो नियामत है जो
अंदर और अंदर खोजनी है
पा गये तो बस आनंद का
सागर ही सागर है
चिर आत्मा का स्पंदन।
मन में धीरे-धीरे समाता
ReplyDeleteविराट मौन
अपनी धड़कन की पदचाप
से चिंहुकती
अपनी पलकों के
झपकने के लय में गुम
महसूस करती हूँ
एकांत का संगीत.... बहुत सुंदर रचना
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न
ReplyDeleteसोमरस के मधुर घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन ...
प्रेम के अलोकिक रूप का दर्शन रचना को एक नए संसार में ले ला रहा है ... जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही प्रमुख है बाकी सब गौण है ... स्मृतियों का मधुर संसार केवल एकांत में ही अनुभव किया जा सकता है ... बहुत लाजवाब रचना है ...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह!श्वेता ,एकांत उत्सव का लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteस्मृतियों को सहेजने में एकांत ज़रूरी और एकांत में तुम्हारी यादें हृदय के स्पंदन को महसूस करा जाती हैं । प्रकृति से तुम्हारा विशेष स्नेह है ऐसा तुम्हारी रचनाओं को पढ़ कर लगा ।भोर की लाली का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है । शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteकड़वे क्षणों को विस्मृत कर
ReplyDeleteचाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।
एकांतवास कभी-कभी बड़ा सुकून दे जाता है
मन के भावों को सुंदर शब्दों में पिरोती लाज़बाब सृजन श्वेता जी,सादर नमन आपको
अद्भुत!!!!
ReplyDeleteलाजवाब..एकांत में मन की खूबसूरती का समागम और वैभव..
ReplyDeleteएकांत व साधना का मिश्रण क्या न करवा दे।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार
प्रकृति को सहेजना कविता में उसके स्वयं के अद्भुत रूपों से भी अभिनव बाना पहनाना कोई आपसे सीखे।
ReplyDeleteअभिराम।
आदरणीया मैम ,
ReplyDeleteएकांत- लाभ और प्रकृति की निकटता को दर्शाती सुंदर अनुभूतियों से भरी हुई रचना। आपकी यह रचना मन को असीम शांति और आनंद की अनुभूति कराती है।
प्रकृति के निकट एकांत में रहने का एक अद्भुत आनंद होता है।
हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
जाने कितनी बार पढ़ी आज भी नयी सी लगी।
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