दुःख,व्यथा,क्षोभ ही नहीं भरा
बस विरह, क्रोध ही नहीं धरा
मकरंद मधुर उर भीत सुनो
जीवन का छम-छम गीत सुनो
ज्वाला में जल मिट जाओगे
गत मरीचिका आज लुटाओगे
बनकर मधुप चख लो पराग
कुछ क्षण का सुरभित रंग-राग
अंबर से झरता स्नेहप्रीत सुनो
कल-कल प्रकृति का गीत सुनो
क्यूँ उर इतना अवसाद भरा?
क्यूँ तम का गहरा गाद भरा?
लाली उषा की,पवन का शोर
छलके स्वप्न दृग अंजन कोर
घन घूँघट चाँदनी शीत सुनो
टिम-टिम तारों का गीत सुनो
इस सुंदर जीवन से विरक्ति क्यों?
कड़वी इतनी अभिव्यक्ति क्यों?
मन अवगुंठन,हिय पट खोलो तुम
खग,तितली,भँवर संग बोलो तुम
न मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
प्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो
--श्वेता सिन्हा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3015 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
जी अति आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह!!श्वेता ,बहुत मधुर गीत सुनाया आपनें । लाजवाब रचना!
ReplyDeleteअति आभार दी:)
Deleteआपका स्नेहाशीष मिलता रहे तो ऐसा गीत और भी रचेगें।
हृदय से बहुत आभार दी।
बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteइस सुंदर जीवन से विरक्ति क्यों?
कड़वी इतनी अभिव्यक्ति क्यों?
मन अवगुंठन,हिय पट खोलो तुम
खग,भँवर,तितली संग बोलो तुम
न मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
प्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो
बहुत सारा शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteआपके निरंतर सहयोग के लिए सदैव आभारी है।
बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteअति आभार आपका अनुराधा जी।
Deleteसादर।
मायूसियों में घिरे और आक्रोश में जीते व्यक्ति को सकारात्मकता की राह की ओर खींचती एक प्रेरक रचना. शब्द और भाव पीड़ा से घायल हृदय पर मरहम लगाते प्रतीत होते हैं. सुन्दर सार्थक सरस सृजन. लिखते रहिये. बधाई एवं शुभकामनायें.
ReplyDeleteआदरणीय रवींद्र जी,
Deleteआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पाकर रचना अनुगृहित हुई।
रचना का भाव समझकर कीमती समय देकर सुंदर प्रतिक्रिया लिखने के लिए हृदय से बहुत आभारी हूँ।
सादर।
मन के तार झंकृत हो उठे सखी श्वेता जी । जीवन तो अति सुन्दर है, पर कभी-कभी सांसारिक परिस्थितियों को देख मन उद्वेलित हो उठता है। सुंदर अभिव्यक्ति🙏🙏
ReplyDeleteअति सुंदर, मधुर गीत सुनाया आपने । व्यथा में भी प्रकृति का संगीत व्यक्ति को जीवन में निराशा के भंवर से बाहर निकल लाता है।
ReplyDeleteसादर
श्वेता जी ,
ReplyDeleteआप तो साहित्यिक लेखन करने लगी . वाह !!!
आपकी शब्द संपदा को सलाम.
बधाईयाँ स्वीकारें.
वाह मन को झंकृत करता आशा का एक सुमधुर गीत ।
ReplyDeleteमाना जीवन सुमनों की सैज नही
पर बियावान कांटों का जंगल भी नही
अपने हिस्से की कलियां चुन लो
जीवन सिर्फ़ हार नही जीत का सेहरा गूंथ लो।
इस सुंदर जीवन से विरक्ति क्यों?
ReplyDeleteकड़वी इतनी अभिव्यक्ति क्यों?
मन अवगुंठन,हिय पट खोलो तुम
खग,तितली,भँवर संग बोलो तुम
न मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
प्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो
बहुत सुंदर ... सुंदर जीवन को खुले नेत्र से देख सको तो इसके प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाएगा दिर अभिव्यक्ति भी कटु नहि होगी ... इसीलिए मन की मधुर वीना को सुना जाए तो जीवन की रुनझुन सुनी जा सकती है ...
बेहतरीन सृजन श्वेता जी ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteक्यूँ उर इतना अवसाद भरा?
ReplyDeleteक्यूँ तम का गहरा गाद भरा?
लाली उषा की,पवन का शोर
छलके स्वप्न दृग अंजन कोर
घन घूँघट चाँदनी शीत सुनो
टिम-टिम तारों का गीत सुनो... सुंदर रचना
बहुत सुंदर माधुर्य राग अनुराग से सजी रचना..
ReplyDeleteबधाई।
ज्वाला में जल मिट जाओगे
ReplyDeleteगत मरीचिका आज लुटाओगे
बनकर मधुप चख लो पराग
कुछ क्षण का सुरभित रंग-राग
अंबर से झरता स्नेहप्रीत सुनो
कल-कल प्रकृति का गीत सुनो...श्वेता जी की रचना बहुत ही अद्भुत है...एक नायाब सा आह्वान...
न मुरझाओ, मनवीणा मनमीत सुनो
ReplyDeleteप्रेमिल रून-झुन इक गीत सुनो....
धनात्मक ऊर्जा देती सौन्दर कविता👌👌👌👌