Showing posts with label एकांत का उत्सव....प्रेम कविता... Show all posts
Showing posts with label एकांत का उत्सव....प्रेम कविता... Show all posts

Monday 25 June 2018

एकांत का उत्सव

नभ के दालान से
पहाड़ी के 
कोहान पर फिसलकर
क्षितिज की बाहों में समाता
 सिंदुरिया सूरज,
किरणों के गुलाबी गुच्छे
टकटकी बाँधें
पेड़ों के पीछे उलझकर
अनायास ही गुम हो जाते हैंं,
गगन के स्लेटी कोने से 
उतरकर
मन में धीरे-धीरे समाता
 विराट मौन
अपनी धड़कन की पदचाप 
से चिंहुकती
अपनी पलकों के 
झपकने के लय में गुम
महसूस करती हूँ 
एकांत का संगीत
चुपके से नयनों को ढापती
स्मृतियों की उंगली थामे
मैं स्वयं स्मृति हो जाती हूँ
एक पल स्वच्छंद हो 
निर्भीक उड़कर 
सारा सुख पा लेती हूँ,
नभमंडल पर विचरती 
चंचल पंख फैलाये
भूलकर सीमाएँ
कल्पवृक्ष पर लगे 
मधुर पल चखती
भटकती
अमृत-घट की 
एक बूँद की लालसा में
तपती मरुभूमि में अनवरत,
दिव्य-गान हृदय के 
भावों का सुनती
विभोर सुधी बिसराये
घुलकर चाँदनी की रजत रश्मियों में
एकाकार हो जाती हूँ
तन-मन के बंधनों से मुक्त निमग्न 
सोमरस के मधुर घूँट पी
कड़वे क्षणों को विस्मृत कर
चाहती हूँ अपने
एकांत के इस उत्सव में
तुम्हारी स्मृतियों का
चिर स्पंदन।

----श्वेता सिन्हा






मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...