क़लम के सिपाही,
जाने कहाँ तुम खो गये?
है ढूँढती लाचार आँख़ें
सपने तुम जो बो गये
अन्नदाता अन्न को तरसे
मरते कर्ज और भूख से
कौन बाँटे दर्द बोलो
हृदय के सब भाव सूखे
कृषक जीवन के चितरे
जाने कहाँ तुम खो गये?
जो कहे बदली है सूरत
आईना उनको दिखाते
पेट की गिनकर लकीरें
चीख़कर मरहम लगाते
पोतकर स्याही कलम की
जयगान सब लिखने लगे
जली प्रतियाँ लेकर गुम हुए
जाने कहाँ तुम खो गये?
वो नहीं अभिशप्त केवल
देह,मन उसका स्वतंत्र है
नारी तुम्हारी लेखनी से
शुचि सतत पूजन मंत्र हैं
रो रही, बेटियाँ तेरी याद में
लगा है, बाज़ार अब तो प्रेम का
सौंदर्य मन का पूछता तेरा पता
जाने कहाँ तुम खो गये?
जाति,धर्म की तलवार से
बँट के रह गयी लेखनी
प्रेम और सौहार्द्र स्वप्न हैं
स्याही क़लम अब फेंकनी
जन-मन कथा सम्राट तुम
जीवन का कटु यथार्थ तुम
साहित्य की साँसों को लेकर
जाने कहाँ तुम खो गये?
--श्वेता सिन्हा
अति सुन्दर सृजन श्वेता जी ।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी
ReplyDeleteवाह!!प्रिय श्वेता ,बहुत सुंदर रचना!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना श्वेता जी 🙏🙏🙏
ReplyDeleteअद्भुत अप्रतिम अविस्मरणीय
ReplyDeleteकलम के सिपाही को सार्थक और ह्रदयस्पर्शी श्रद्धांजली!!
ReplyDeleteउपन्यास सम्राट को नमन। आपको बधाई इस सार्थक सृजन हेतु।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावांजलि
ReplyDeleteउपन्यास सम्राट और कलम के सिपाही को ह्रदयस्पर्शी श्रद्धांजली :)
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति, श्वेता।
ReplyDeleteकलम के सिपाही प्रेम चंद जी ने लिखा है इतने बरस पहले वो आज भी उतना ही सार्थक है ...
ReplyDeleteसमाज को आइना दिखाती उनकी हर कहानी उपन्यास जैसे आज को देख कर ही लिखे गए हों ...
नमन है मेरा उनकी लेखनी को ...
अभूत ही सुन्दर ..
ReplyDeleteकहा से उठा कर कहा तक ले जाती हैं कविता
शानदार
जन-मन कथा सम्राट तुम
ReplyDeleteजीवन का कटु यथार्थ तुम
साहित्य की साँसों को लेकर
जाने कहाँ तुम खो गये?.... प्रेमचंद्र जी का साहित्य अमर है , नाम है उनकी रचनाधर्मिता को , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति श्वेता जी
बहुत मार्मिक और करुना भरा उद्बोधन साहित्य सम्राट को प्रिय श्वेता |--
ReplyDeleteजन-मन कथा सम्राट तुम
जीवन का कटु यथार्थ तुम
साहित्य की साँसों को लेकर
जाने कहाँ तुम खो गये?--
सचमुच साहित्य की सांसों में ऐसे साहित्यकारों से ही स्पंदन था जो अब मृत प्राय हो चली है | सस्नेह --
खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीया ! कलम के सिपाही को शत शत नमन !
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