Thursday, 9 May 2019

प्रतीक्षा



बैशाख की बेचैन दुपहरी
दग्ध धरा की अकुलाहट,
सुनसान सड़कों पर
चिलचिलाती धूप 
बरगद के पत्तों से छनकती
चितकबरी-सी
तन को भस्म करने को लिपटती
गरम थपेड़़ों की बर्बरता,
खिड़की-दरवाज़े को
जबरन धकेलकर
जलाने को आतुर
लू की दादागीरी,
और हृदय की
अकुलाहट बढ़ाता
बाहर के नाराज़
मौसम की तरह
तुम्हारा मौन,
उदास निढाल पड़ा मन
मौन का लबादा उतारते
साँझ की प्रतीक्षा में
जब सूरज थककर
अंबर की गोद में
सो जायेगा,
तुम आओगे फिर
रजनीगंधा से महकते
बातों की सौगात लिए,
जिसके कोमल स्पर्श
को ओढ़कर मुस्कुराती
भूल जाऊँगी झुलसाती दुपहरी
तुम बरसा जाना कुछ बूँदें नेह की,
और मैं समा लूँगी हर एक शब्द
अंतर्मन में ,
प्यासी धरा-सी।


 #श्वेता सिन्हा

19 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना

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    1. आभारी हूँ अनुराधा जी..शुक्रिया।

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  2. वाह!!श्वेता ,बहुत खूब!!👌

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    1. आभारी हूँ दी..शुक्रिया।

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    1. आभारी हूँ प्रिय अनु....शुक्रिया।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आभार सर..हृदयतल से शुक्रिया आपके आशीष का।🙏

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  5. वाह 👏 👏 खूबसूरत

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    1. जी आभारी हूँ दी...शुक्रिया।

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  6. बेहतरीन रचना श्वेता जी

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  7. मौसम की प्रचंडता और मन के भावों का सुंदर प्रवाह लिये असाधारण भावाभिव्यक्ति और बदले मौसम की तरह मन भी समयानुरूप बदलता है
    बहुत सुंदर

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  8. खूबसूरत से शब्द कमाल कर देते हैं न ... फिर चाहे वो लू की दादागिरी हो या रजनीगन्धा की खुशबू .. सब का आसन डोल ही जाता है ... बहुत बहुत अच्छा लिखा श्वेता आपने ...

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  9. बेहतरीन सृजन श्वेता जी ।

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  10. "तुम बरसा जाना कुछ बूँदें नेह की,
    और मैं समा लूँगी हर एक शब्द
    अंतर्मन में ,
    प्यासी धरा-सी"।....प्रेम-प्यास की सजीव उत्कृष्ट शब्द-चित्रण मानो एक-एक बिम्ब जिया गया हो और अनुभव के शब्दकोश से शब्द-संयोजन किये गए हों ... हर बार की तरह बिम्ब और जीवंतता की पैनी धार श्वेता जी.....

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  11. बाहर के नाराज़
    मौसम की तरह
    तुम्हारा मौन,
    उदास निढाल पड़ा मन
    बहुत खूब प्रिय श्वेता | विकल मन की मार्मिक पुकार और भावपूर्ण उद्बोधन किसी प्रिय के लिए | हर बार की तरह सराहनीय बिम्ब विधानं | शुभकामनायें और प्यार सुंदर सृजन के लिए |

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  12. शब्दों की कमाल कारीगरी....बेहतरीन रचना..

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  13. भूल जाऊँगी झुलसाती दुपहरी
    तुम बरसा जाना कुछ बूँदें नेह की,
    और मैं समा लूँगी हर एक शब्द
    अंतर्मन में ,
    प्यासी धरा-सी।
    बहुत सुंदर... रचना ,सादर स्नेह

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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