मातृ दिवस का कितना औचित्य है पता नहीं..।
माँ तो हमेशा से किसी भी बच्चे के लिए उसके व्यक्तित्व का अस्तित्व का हिस्सा है न...फिर एक दिन क्यों निर्धारित किया जाये..?
आज सबको अपनी के लिए कुछ न कुछ लिखते,कहते देखकर हम सोचने लगे कि हम आज तक कभी भी "माँ" के लिए लिख नहीं पाये..।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है माँ का नाम आते ही मन के भाव शब्दों पर प्रभावी हो जाते हैं और फिर कुछ भी लिखना संभव नहीं हो पाता मुझसे।
माँ तुम मेरी "सुपर वुमन"हो हम तो यही कहते रहे जीवनभर। आज बिना प्रयास कुछ मन की बातें
जो तुमसे हमेशा से तुमसे कहना चाहते है हम..।
सुनो न माँ..
★★★★
कैसे कहूँ,किस सरिता में बहूँ
ममता तेरी,भावों में बाँध नहीं पाती हूँ
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
चाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ
समय की चाक पर बैठे तुमको
सबकी खुशियाँ गढ़ते देखा
गला-गलाकर माटी-सा ख़ुद को
पात्र प्रेम का भरते देखा
माँ तुम जैसा कारीगर तिलिस्मी
जगभर में दूजा कमाल नहीं पाती हूँ
तेरे पाँव की पावन रुनझुन से
घर-आँगन मंदिर लगता है
तेरी चूड़ियों की खन-खन सुन
सूरज भी ताल में चलता है
माँ तू खुशबू में भीगा उपवन
त्रिलोक में ऐसा पुष्पमाल नहीं पाती हूँ
तुम्हारी उंगलियों का पवित्र स्पर्श पा
चिंता की लकीरें सिकुड़ जाती है
देवी-देवताओं की मनौतियाँ करती
तू बड़ की जड़-सा अड़ जाती है
मेरे जीवन की कठिन चुनौतियों में
माँ तुम-सा कोई ढाल नहीं पाती हूँ
तेरे तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
मेरी खुशियों की दुआ करती है
तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
मेरी मुस्कान बनकर झरती है
तेरे आशीष के जायदाद की वारिस
तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
चाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
#श्वेता सिन्हा
११/५/२०१९
चाहकर भी,
ReplyDeleteशब्दों में
प्रतिक्रिया देने में
अपने आप को
असमर्थ पाता हूँ
सादर...
तेरे तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
ReplyDeleteमेरी खुशियों की दुआ करती है
तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
मेरी मुस्कान बनकर झरती है
तेरे आशीष के जायदाद की वारिस
तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
अत्यंत स्नेहिल उदगार माँ केलिए प्रिय श्वेता | माँ के लिए जो लिखो वो कम कम है पर एक कवियित्री बेटी अपना स्नेह जताना बखूबी जानती है | समस्त मातृ शक्ति को नमन है | सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें और प्यार |
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
ReplyDeleteचाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति श्वेता जी
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
ReplyDeleteचाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
सब कुछ तो साध लिया श्वेता जी ! माँ का वात्सल्य, माँ का व्यक्तित्व और घर-संसार में माँ की महत्ता ।अत्यंत सुन्दर सृजन ।
सच कहा श्वेता दी माँ को शब्दों में बांधना नामुमकिन है। बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteनि:शब्द!
ReplyDeleteअसाधारण हृदय उद्गगार ¡
ReplyDeleteलेखनी पर मन खुद बैठ गया और अनुभूतियां पिघल पिघल स्याही में ढ़ल गई।
निशब्द और कुछ कहने को क्या रहा जो मै कह पाऊं।
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सस्नेह ।
तेरे तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
ReplyDeleteमेरी खुशियों की दुआ करती है
तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
मेरी मुस्कान बनकर झरती है
तेरे आशीष के जायदाद की वारिस
तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
माँ "सुपर वुमन"....सटीक....
माँ के लिये कैसे लिखे हर शब्द उन्ही से मिला उनसे आगे कहाँ सीख पाये अब तक...सही कहा आपने माँ को शब्दों में साध नहीं पाती....
बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब अभिव्यक्ति
मातृदिवस की शुभकामनाएं श्वेता जी !
मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वेता जी
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-05-2019) को
" परोपकार की शक्ति "(चर्चा अंक- 3334) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
ऐसा लग रहा है कहने को कुछ बचा नही
ReplyDeleteअप्रतिम रचना
मातृ-दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
🙏🙏🙏
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार १५ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना श्वेता !
ReplyDeleteलेकिन अभी कोई भी इतना बड़ा नहीं हो सका है कि वो माँ की ममता को शब्दों में साध सके.
माँ तो जीवन का ऐसा किरदार है जिसको सिमित किया ही नहीं जा सकता ... आदि से अनंत का भाव माँ से ही आता है ... असंभव है उसके भाव, प्रेम, आकाश और जीवन को बांधना ... गहरी रचना ...
ReplyDeleteवाह। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteमाँ को और उसकी ममता को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता, उन्हें तो सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है.
ईश्वर और माँ को शब्दों में समेटना मुमकिन नहीं फिर भी आपकी लेखनी बहुत कुछ कह गई ,सादर
ReplyDeleteएक माँ ही सुनती है.जब तक है.
ReplyDeleteफिर तो सुनना ही सुनना है.
कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
ReplyDeleteचाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
सच हैं ,माँ की महिमा को समेटना मुश्किल हैं ,आपकी ये रचना पहले भी पढ़ी हैं मैंने श्वेता जी सादर नमस्कार
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteमाँ हीं जीवन, माँ हीं दर्पण,
ReplyDeleteमाँ से हीं संसार है..
माँ से उत्तम ना शब्द कोई,
ना स्पर्श बड़ा ना प्यार है..
बहुत सुन्दर रचना।
मातृ दिवस पर अनुपम रचना, शुभकामनाएँ !
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