अनगिनत चिडियाँ
भोर की पलकें खुरचने लगीं
कुछ मँडराती रही
पेडों के ईर्द-गिर्द
कुछ खटखटाती रही दरवाज़ा
बादलों का...।
कुछ
हवाओं संग थिरकती हुई
गाने लगी गीत
धूल में नहाई और
बारिश के संग
बोने लगी जंगल...।
कुछ चिड़ियों ने
तितलियों को चूमा
मदहोश तितलियाँ
मलने लगी
फूलों पर अपना रंग
अँखुआने लगा
कल्पनाओं का संसार...।
कुछ चिड़ियों के
टूटे पंखों से लिखे गये
प्रेम पत्रों की
खुशबू से
बदलता रहा ऋतुओं की
किताब का पृष्ठ...।
हवाओं की ताल पर
कुछ
उड़ती चिड़ियों की
चोंच में दबी
सूरज की किरणें
सोयी धरती के माथे को
पुचकारकर कहती हैं
उठो अब जग भी जाओ
सपनों में भरना है रंग।
चिड़ियाँ सृष्टि की
प्रथम संदेशवाहक है
जो धरती की
तलुओं में रगड़कर धूप
भरती है महीन शिराओं में
चेतना का स्पंदन।
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-श्वेता सिन्हा
१० अगस्त २०२२
हवाओं की ताल पर
जवाब देंहटाएंकुछ
उड़ती चिड़ियों की
चोंच में दबी
सूरज की किरणें
सोयी धरती के माथे को
पुचकारकर कहती हैं
उठो अब जग भी जाओ
सपनों में भरना है रंग।
व्वाहहहहहह
चिड़ियाँ सृष्टि की
जवाब देंहटाएंप्रथम संदेशवाहक है
जो धरती की
तलुओं में रगड़कर धूप
भरती है महीन शिराओं में
चेतना का स्पंदन।
चिड़िया के माध्यम से प्रकृति की सुगबुगाहट को साकार कर रही है आपकी लेखनी । रचनात्मकता का संदेश लिए अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
प्रकृति के संदेश चिड़ियों के माध्यम से जन जन तक पहुँचें ...... लेकिन किसी को कहाँ फ़ुरसत कि सपनों में रंग भरने की बात भी समझ पाएँ । उनींदे से लोग कानों को बंद किये बैठे हैं , कैसे सुने इस संदेशवाहक चिड़िया की बातें ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन ।।
चिड़ियों की चहचहाहट चहूं ओर फिजाओं में गूंजती है। सपनों में रंग भरने का संदेश देती है।
जवाब देंहटाएंपर ये संदेश कहां पहुंचती उन कानों तक,
जिनमें आजकल इयरफोन का पहरा है।
बहुत सुंदर भावविभोर पंक्तियां।
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.8.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4518 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 11 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
वाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंचिड़ियों के माध्यम से प्रकृति और जीवन के रहस्यों का सुंदर चित्रण !! चिड़ियों को यूँ ही उड़ते-फुदकते देखकर किसका मन खिल नहीं जाता होगा, वैसे संगीता जी ने सही कहा है इंसान अपने में इतना गुम हो गया है कि कलरव उसके कानों के निकट से गुजर जाता है, भीतर प्रवेश नहीं करता
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत सुंदर। कुछ कॉमेंट भी बहुत अच्छे लगे।आपको बहुत-बहुत बधाई श्वेता जी। सादर।
जवाब देंहटाएंस्वेता दी, यदि किसी दिन कुछ कारणवश चिड़ियों को दाना डालने देरी हो जाए तो चिड़ियों को बार बार उस जगह आते देख कर जल्द ही याद आ जाता है कि आज दाना नही डाला। अफसोस होता है कि चीडिया राह देख रही होगी...सच उनको दाना चुगते देखना दिलनको अलग ही सुकून दे जाता है।
जवाब देंहटाएंचिड़ियों के माध्यम से आपने प्रकृति का बहुत ही सुंदर सन्देश दिया है।
चिड़ियाँ सृष्टि की
जवाब देंहटाएंप्रथम संदेशवाहक है
जो धरती की
तलुओं में रगड़कर धूप
भरती है महीन शिराओं में
चेतना का स्पंदन।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।चिडियाँ हर दिल अज़ीज़ हैं।अपने स्वछन्द विचरण से वे जीवन में जीने की नयी उम्मीद जगाती हैं।उनसे बढ़कर प्रेम की आशा का कोई संदेशवाहक नहीं है।एक सुंदर रचना के लिए बधाई और स्नेह।
सुंदर अभिव्यक्ति है आपकी। मैंने और मेरे परिवार ने वर्षों से प्रातः चिड़ियों, कबूतरों, तोतों, मोरों आदि (जो भी पक्षी घर की छत अथवा घर के आंगन में आ जाएं) को दाना खिलाने एवं जल पिलाने का नियम बना रखा है। बहुत संतोष एवं आनंद प्राप्त होता है इससे हमें।
जवाब देंहटाएंचिड़ियाँ सृष्टि की
जवाब देंहटाएंप्रथम संदेशवाहक है
जो धरती की
तलुओं में रगड़कर धूप
भरती है महीन शिराओं में
चेतना का स्पंदन।
वाह!!!
प्रकृति और प्रकृति प्रदत्त विषय पर आप की रचनाओं को साथ मन बंध सा जाता है...
कुछ चिड़ियों ने
तितलियों को चूमा
मदहोश तितलियाँ
मलने लगी
फूलों पर अपना रंग
अँखुआने लगा
कल्पनाओं का संसार...।
अद्भुत एवं लाजवाब ।
चिड़ियाँ सृष्टि की
जवाब देंहटाएंप्रथम संदेशवाहक है
जो धरती की
तलुओं में रगड़कर धूप
भरती है महीन शिराओं में
चेतना का स्पंदन।...सृष्टि की इस सुंदर रचना खग विहगो के लिए बहुत सुंदर और उत्कृष्ट भाव ।
इस सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई श्वेता जी ।
भावनाओं की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। पाठकों को प्रकृति और पर्यावरण से जुड़ने की प्रेरणा देती है यह कविता। हार्दिक बधाई।।
जवाब देंहटाएंसार्थक, सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकुछ
जवाब देंहटाएंउड़ती चिड़ियों की
चोंच में दबी
सूरज की किरणें
सोयी धरती के माथे को
पुचकारकर कहती हैं
हमेशा की तरह आपकी रचना और अंदाज़ बहुत ही निराला है बहुत सूक्ष्मता से व्यक्त किया है अपने सुबह की बेला को।
प्रणाम