तुम्हारे जन्म के पहले से
जब तुम कोख में थी मेरे
तबसे नन्हीं-नन्ही
अनगिनत रंगीन शीशियाँ
सहेज रही हूँ
तुम्हारी स्मृतियों के
इत्र में भीगी।
प्रत्येक वर्ष
तुम्हारे जन्मदिन पर
दिन-भर की भाग-दौड़ से
थमने के बाद चुपचाप
अंतरिक्ष की स्याह स्लेट पर
तुम्हारे भविष्य की तस्वीर
उकेरती हूँ
नक्षत्रों से बातें करती हूँँ
नम आँखों में तुम्हारे स्वप्न लिए
आँचल फैलाकर
दुआएँ माँगती हूँ।
और अब...
इस उम्र में
जब देह और मन के अंतर्द्वन्द्व
समझने का प्रयास करती
तुम्हारे मन की कोमल चिड़िया
अपनी नाजुक चोंच से
नभ का सबसे चमकीला तारा
उठाना चाहती है।
अपने भीतर बसाये
कल्पनाओं के गुलाबी दुनिया में
अपना नाम टाँकना चाहती है।
मैं धैर्य और साहस बनकर
तुम्हारे स्वप्नों का
एक सिरा थामकर अदृश्य रूप से
तुम्हारे साथ-साथ चलना चाहती हूँ।
सुनो बिटुआ;
क्षिति, जल,पावक,गगन,समीर
पुष्प,वृक्ष,पर्वत या पाखी,
बिना किसी प्रयास के प्राप्त
प्रकृति के सुंदरतम
उपहारों की तरह
तुम कभी न बनना
क्योंकि
सहजता से प्राप्त को
संसार गंभीरता से नहीं लेता...।
तुम इंद्रधनुष के
इकतारे पर अपने जीवन का
संगीत लिखो,
जब भी थक जाओ
जीवन की जटिलताओं से
मेरी शुभकामनाओं को
ओढ़ कर मेरे चुबंन का तकिया बनाकर
सुस्ता लेना मेरी प्रार्थनाओं के
बिछावन पर...
मैं ही तो हूँ जो
निःस्वार्थ, निष्काम
तुम्हारी आत्मा की परछाई
जो आजीवन हर मौसम में
तुमसे सच्चा प्रेम करेगी।
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-श्वेता
१८ जुलाई २०२५
वात्सल्य भाव से सृजित भावपूर्ण कृति , बिटिया के जन्मदिन की हार्दिक मंगलकामनाएँ श्वेता जी !स्नेहिल नमस्कार !
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