Showing posts with label शब्द प्रभाव.... छंदमुक्त कविता # जीवन दर्शन#. Show all posts
Showing posts with label शब्द प्रभाव.... छंदमुक्त कविता # जीवन दर्शन#. Show all posts

Sunday 15 May 2022

शब्द प्रभाव

चित्र:मनस्वी

खौलते शब्दों के छींटे
देह पर गिरते ही
भाप बनकर 
मन में समा जाते हैं...
असहनीय वेदना से
छटपटाता,व्याकुल
भीतर ही भीतर सीझता मन
मरहम के फाहे के लिए
उन्हीं शब्दों के 
ठंडा होने की
प्रतीक्षा करता है।

जलते शब्दों के अमिट निशान
चिपक जाते हैं उम्रभर के लिए
मन के अदृश्य सतह पर
अनुपयोगी 
बर्थमार्क की तरह,
जिसे खुरचकर हटाया नहीं
नहीं जा सकता आजीवन
पर वक़्त के साथ 
देह पर पनपे अनचाहे, अन्य
निशानों की तरह ही
स्वीकार कर लिया जाता है।

मछलियों की तरह 
शब्दों के लहरों में तैरता 'मन'
भावनाओं को स्पर्श
करने के क्रम में
खिंचता चला जाता है अवश
भँवर की अतल गहराईयों में
पर...
मन के सारे रंग
निचोड़कर फेंक देता है भँवर
निर्जीव-सी देह को,
जो हल्की होकर बहने लगती है
धाराओं के अनुकूल,
संसार की नदी में
कठोर पत्थरों और
रेतीले किनारों से रगड़ाती हुई
अस्तित्व के विलुप्त होने तक,
उस भँवर की मरीचिका में
मन भटकता रहता है,
उलझता  रहता है
तृप्ति -अतृप्ति की
अंतहीन यात्राओं में...।

-श्वेता सिन्हा
१५ मई २०२२

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...