Showing posts with label स्त्रियों ने जिलाए रखा है...स्त्री विमर्श# छंदमुक्त कविता. Show all posts
Showing posts with label स्त्रियों ने जिलाए रखा है...स्त्री विमर्श# छंदमुक्त कविता. Show all posts

Wednesday 29 September 2021

स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है

संवेदना से भरी
साधारण स्त्रियाँ   
अपनी भावनाओं को ज्ञानेंद्रियों
से ज्यादा महसूसती है
स्नेहिल रिश्तों को
नाजुक डोर की
पक्की गाँठ से बाँधकर
स्वजनों के अहित,उनसे बिछोह की
कल्पनाओं के भय को
व्रत,उपवास के तप में गलाकर
अपनी आत्मा के शुद्ध स्पर्श से 
नियति को विनम्रता से
साधने रखने का उपक्रम करती हैं
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
सृष्टि में ईश्वर का अस्तित्व।
 
तुलसी पूजती हैं
आँवला, पीपल,बड़ के तने पर
कच्चे सूत बाँधती हैं
जौ रोपती हैं
करम की डाल आँगन में रोपकर
पति,बच्चों,भाई के लिए
मंगलकामना करती है
नदियों को पूजती हैं
पत्थरों को पूजती हैं
सूरज, चाँद और सितारे पूजती है
वृक्ष, फल,फूल,नदियाँ,
खेत,माटी,पशु,पक्षी,पत्थर पूजती हैं
सृष्टि के स्रष्टा के समक्ष नतमस्तक
अपनी भावनाओं की परिधि 

में संजोए दुनिया की सुरक्षा के लिए
अपनी दिनचर्या में
प्रकृति की सच्ची साधिकाएँ
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
प्रकृति की सार्थकता।

बुद्धि और तर्क से रिक्त

समानता के अधिकारों से विरक्त
अंधविश्वास और अंधपरंपराओं के
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तटस्थ
पति और बच्चों में
एकाकार होकर
खुशियाँ मनाती हैं
नाचती,गाती पकवान बनाती हैं
सजती हैं, सजाती है
शुष्क जीवन को रंगों से भर देती हैं 
पुरातन काल से आधुनिक 
इतिहास की यात्रा में
सूचीबद्ध स्त्रियोंं और पुरुषों की
अनगिनत असहमतियों और असमानताओं की
क्रूर और असभ्य कहानियों के बावजूद
पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में
संस्कृतियों से भरे संदूक की
चाभियाँ सौंपती
साधारण स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है
 लोकपरंपराओं  का अस्तित्व।
 ------
-श्वेता सिन्हा
२९ सितंबर २०२१


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...