संवेदना से भरी
साधारण स्त्रियाँ
अपनी भावनाओं को ज्ञानेंद्रियों
से ज्यादा महसूसती है
स्नेहिल रिश्तों को
नाजुक डोर की
पक्की गाँठ से बाँधकर
स्वजनों के अहित,उनसे बिछोह की
कल्पनाओं के भय को
व्रत,उपवास के तप में गलाकर
अपनी आत्मा के शुद्ध स्पर्श से
नियति को विनम्रता से
साधने रखने का उपक्रम करती हैं
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
सृष्टि में ईश्वर का अस्तित्व।
तुलसी पूजती हैं
आँवला, पीपल,बड़ के तने पर
कच्चे सूत बाँधती हैं
जौ रोपती हैं
करम की डाल आँगन में रोपकर
पति,बच्चों,भाई के लिए
मंगलकामना करती है
नदियों को पूजती हैं
साधारण स्त्रियाँ
अपनी भावनाओं को ज्ञानेंद्रियों
से ज्यादा महसूसती है
स्नेहिल रिश्तों को
नाजुक डोर की
पक्की गाँठ से बाँधकर
स्वजनों के अहित,उनसे बिछोह की
कल्पनाओं के भय को
व्रत,उपवास के तप में गलाकर
अपनी आत्मा के शुद्ध स्पर्श से
नियति को विनम्रता से
साधने रखने का उपक्रम करती हैं
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
सृष्टि में ईश्वर का अस्तित्व।
तुलसी पूजती हैं
आँवला, पीपल,बड़ के तने पर
कच्चे सूत बाँधती हैं
जौ रोपती हैं
करम की डाल आँगन में रोपकर
पति,बच्चों,भाई के लिए
मंगलकामना करती है
नदियों को पूजती हैं
पत्थरों को पूजती हैं
सूरज, चाँद और सितारे पूजती है
वृक्ष, फल,फूल,नदियाँ,
खेत,माटी,पशु,पक्षी,पत्थर पूजती हैं
सूरज, चाँद और सितारे पूजती है
वृक्ष, फल,फूल,नदियाँ,
खेत,माटी,पशु,पक्षी,पत्थर पूजती हैं
सृष्टि के स्रष्टा के समक्ष नतमस्तक
अपनी भावनाओं की परिधि
में संजोए दुनिया की सुरक्षा के लिए
अपनी दिनचर्या में
प्रकृति की सच्ची साधिकाएँ
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
प्रकृति की सार्थकता।
अपनी भावनाओं की परिधि
में संजोए दुनिया की सुरक्षा के लिए
अपनी दिनचर्या में
प्रकृति की सच्ची साधिकाएँ
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
प्रकृति की सार्थकता।
बुद्धि और तर्क से रिक्त
समानता के अधिकारों से विरक्त
अंधविश्वास और अंधपरंपराओं के
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तटस्थ
पति और बच्चों में
एकाकार होकर
खुशियाँ मनाती हैं
नाचती,गाती पकवान बनाती हैं
सजती हैं, सजाती है
शुष्क जीवन को रंगों से भर देती हैं
पुरातन काल से आधुनिक
इतिहास की यात्रा में
सूचीबद्ध स्त्रियोंं और पुरुषों की
अनगिनत असहमतियों और असमानताओं की
क्रूर और असभ्य कहानियों के बावजूद
पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में
संस्कृतियों से भरे संदूक की
चाभियाँ सौंपती
साधारण स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है
लोकपरंपराओं का अस्तित्व।
------
-श्वेता सिन्हा
२९ सितंबर २०२१
जी मैम बिना प्रतिक्रिया के कोई भी लेख निष्प्राण सा लगता है। सत्य कहा -साधारण स्त्रियों ने ही सहेज रखीं है सारी परम्पराएं।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 सितंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteएक साधारण पुरूष असाधारण हो पाता है एक साधारण स्त्री के संसर्ग से ही ये भी एक प्रकृति का साधारण सत्य है |
इतिहास की यात्रा में
ReplyDeleteसूचीबद्ध स्त्रियोंं और पुरुषों की
अनगिनत असहमतियों और असमानताओं की
क्रूर और असभ्य कहानियों के बावजूद
पीढ़ी-दर-पीढ़ी विरासत में
संस्कृतियों से भरे संदूक की
चाभियाँ सौंपती
साधारण स्त्रियोंं ने जिलाए रखा है
लोकपरंपराओं का अस्तित्व।
लोकपरम्परा के अस्तित्व को बचाने की प्रक्रिया में भूल जाती है स्वास्तित्व । सच है कि एक साधारण स्त्री ही बचा पाती है अपनी संस्कृति । वरना आधुनिकता के जोश में सारी परंपराएं खत्म हो जाएँ ।
बहुत सुंदर और गहन प्रस्तुति ।
सस्नेह ।
साधारण स्त्रियों की असाधारण महिमा का बखूबी वर्णन किया है आपने,स्वेता दी।
ReplyDeleteस्नेहिल रिश्तों को
ReplyDeleteनाजुक डोर की
पक्की गाँठ से बाँधकर
स्वजनों के अहित,उनसे बिछोह की
कल्पनाओं के भय को
व्रत,उपवास के तप में गलाकर
अपनी आत्मा के शुद्ध स्पर्श से
नियति को विनम्रता से
साधने रखने का उपक्रम करती हैं
एकदम सटीक...चाहे इस तप में वे और उनका अस्तित्व हवन होता रहा है फिर भी....
सृष्टि के स्रष्टा के समक्ष नतमस्तक
अपनी भावनाओं की परिधि
में संजोए दुनिया की सुरक्षा के लिए
अपनी दिनचर्या में
प्रकृति की सच्ची साधिकाएँ
साधारण स्त्रियों ने जिलाए रखा है
प्रकृति की सार्थकता।
सही कहा बस स्त्रियों ने ही जिलाए रखा है पुरातनता में नवीनता को...
यथार्थ को बयां करता बहुत ही लाजवाब एवं उत्कृष्ट सृजन।
वाह!!!
प्रिय श्वेता जी आपकी कविता एक साधारण स्त्री की शक्तियों की अभिव्यंजना कर रही है,बड़ी पैनी दृष्टि से आपने उसके कर्तव्य और अहसास को शब्दों में पिरोया है,बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteबहुत खूब प्रिय श्वेता! साधारण स्त्रियों के योगदान को सदैव अनदेखा किया गया। उनके गुणों को दरकिनार कर उनके दायित्व बोध का उचित मूल्यांकन कभी नहीं किया गया। पर ममता, करुणा और संस्कारों की विरासत को सहेजती आम नारी अपने कर्तव्य पथ पर अग्रसर रही है। आम औरत की महिमा बढ़ाती सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteईश्वर कि साधारण सी रचना जो स्वयं में समस्त संसार को समेट कर असाधारण रूप धारण करती है । इस धरा पर प्रकृति जिनका स्त्री औरत नारी कैहकर संबोधन करती है ।
ReplyDeleteअति सुंदर अभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर एक एक शब्द मानसिक मंथन से बाहर आया है,
ReplyDeleteसाधारण कब असाधारण बन जाती है अपने कृत्यों से, त्याग से, उपादेयता से कि सृष्टि को ही थामें रखती है , ध्वंस होने से।
बहुत बहुत गहन अभिव्यक्ति।
साधुवाद।
सस्नेह।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन श्वेता दी।
ReplyDeleteसच औरतें बांधे रखती हैं रिश्तों की नाजुक डोर अपने तप से.. शब्द-शब्द अंतस में उतरता।
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति।
सादर
सुंदर प्रस्तुति। सुंदर शब्द संयोजन।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं, एक राय मेरी रचना पर भी
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