(१)
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भोर की पहली
किरण फूटने पर
छलकी थी
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद
जब-जब भावों की लहरें
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
हर पल को
सोंधा कर जाती है।
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किरण फूटने पर
छलकी थी
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद
जब-जब भावों की लहरें
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
हर पल को
सोंधा कर जाती है।
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(२)
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मेरे दिल से तुम्हारे मन तक
जो भावनाओं की नदी बहती है
निर्मल कल-कल,छल-छल,
जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
रह-रह कर छूती है
आत्मिक अनुभूति के
सुप्त किनारों को
सोचती हूँ
निर्बाध बहती जलधारा में
जो नेह के
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।
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-श्वेता सिन्हा
(उन दिनों)
वाह कितनी सुंदर भाव की नदी !!
ReplyDeleteउन दिनों की बात .....
ReplyDeleteसहेज रखी है
मन के समंदर में
यादों की लहरें
कब कौन से भाव
ले आती हैं
साहिल पर
अपनी एक उछाल से
और खिंच जाती है
स्मित रेखा
तुम्हारे चेहरे पर
साथ ही आंखों के कोर
हो जाते होंगे नम
याद करते हुए
पल पल वो क्षण ।
बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं मन के भाव , प्रेम पगे पल ।
सस्नेह ।
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteबहुत बहुत ही सुंदर सृजन श्वेता दी।
ReplyDeleteदोनों बंद लाजवाब।
निर्मल भावों की लहरों के साथ बहता मन।
प्रेम का बहुत ही खूबसूरत एहसास।
दिल से आपको हार्दिक बधाई।
सादर स्नेह।
जीवन के गर्म रेत पर
ReplyDeleteबिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
हर पल को
सोंधा कर जाती है।
वाह!प्रेम मग्न हृदय के बहुत ही सुंदर कोमल भावों को उकेरा है आपने श्वेता जी,लाज़बाब सृजन....सादर नमन आपको
वाह! नेह के भंवर और उसमें अवांछित भावों का विसर्जन
ReplyDeleteअद्भुत! भावों की अतुल्य गहराई कलछल चलता सुंदर सृजन।
सुंदर एवम भावपूर्ण कविता।
ReplyDeleteमेरे दिल से तुम्हारे मन तक
ReplyDeleteजो भावनाओं की नदी बहती है
निर्मल कल-कल,छल-छल,
जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
रह-रह कर छूती है
आत्मिक अनुभूति के
सुप्त किनारों को
सोचती हूँ
निर्बाध बहती जलधारा में
जो नेह के
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।
वाह! जितने सुंदर भाव उतने ही सुंदर शब्द क्या मिश्रण है दोनों का!जितनी तारीफ की जाए कम ही बहुत ही सुंदर रचना
जो नेह के
ReplyDeleteछोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।
प्रेम में एकाकार होने की तत्परता में आतुर मन के खूबसूरत भाव....
लाजवाब सृजन।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 26 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भावों का सहज संप्रेषण..
ReplyDeleteजीवन के सुंदर अहसासों और अनुभूतियों का खूबसूरत परिदृष्य दिखाती नयन कृति
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन
ReplyDeleteकोमल अहसासों की कल्पनाओं से ओत-प्रोत सृजन। आपको बहुत-बहुत बधाईयाँ।
ReplyDeleteप्रेम की सार्थकता ही इसमें है कि वो सदैव प्रेम,बना रहे !
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