Wednesday 22 September 2021

तुमसे प्रेम करते हुए-(२)



(१)

--------------------

भोर की पहली 
किरण फूटने पर 
छलकी थी 
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है 
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद 
जब-जब भावों की लहरें 
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
 हर पल को
सोंधा कर जाती है।
-----



(२)
-----
मेरे दिल से तुम्हारे मन तक
जो भावनाओं की नदी बहती है
निर्मल कल-कल,छल-छल,
जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
रह-रह कर छूती है
आत्मिक अनुभूति के 
सुप्त किनारों को
सोचती हूँ 
निर्बाध बहती जलधारा में
जो नेह के 
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें  
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।

------------



-श्वेता सिन्हा
(उन दिनों)

16 comments:

  1. वाह कितनी सुंदर भाव की नदी !!

    ReplyDelete
  2. उन दिनों की बात .....
    सहेज रखी है
    मन के समंदर में
    यादों की लहरें
    कब कौन से भाव
    ले आती हैं
    साहिल पर
    अपनी एक उछाल से
    और खिंच जाती है
    स्मित रेखा
    तुम्हारे चेहरे पर
    साथ ही आंखों के कोर
    हो जाते होंगे नम
    याद करते हुए
    पल पल वो क्षण ।

    बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं मन के भाव , प्रेम पगे पल ।
    सस्नेह ।

    ReplyDelete
  3. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
  4. बहुत बहुत ही सुंदर सृजन श्वेता दी।
    दोनों बंद लाजवाब।
    निर्मल भावों की लहरों के साथ बहता मन।
    प्रेम का बहुत ही खूबसूरत एहसास।
    दिल से आपको हार्दिक बधाई।
    सादर स्नेह।

    ReplyDelete
  5. जीवन के गर्म रेत पर
    बिखरकर इत्र-सा
    मुस्कान तुम्हारी
    हर पल को
    सोंधा कर जाती है।

    वाह!प्रेम मग्न हृदय के बहुत ही सुंदर कोमल भावों को उकेरा है आपने श्वेता जी,लाज़बाब सृजन....सादर नमन आपको

    ReplyDelete
  6. वाह! नेह के भंवर और उसमें अवांछित भावों का विसर्जन
    अद्भुत! भावों की अतुल्य गहराई कलछल चलता सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  7. सुंदर एवम भावपूर्ण कविता।

    ReplyDelete
  8. मेरे दिल से तुम्हारे मन तक
    जो भावनाओं की नदी बहती है
    निर्मल कल-कल,छल-छल,
    जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
    रह-रह कर छूती है
    आत्मिक अनुभूति के
    सुप्त किनारों को
    सोचती हूँ
    निर्बाध बहती जलधारा में
    जो नेह के
    छोटे-छोटे भँवर हैं
    उसमें
    प्रवाहित कर दूँ
    हमारे बीच के
    अजनबीपन,औपचारिकता
    की पोटलियों को।
    वाह! जितने सुंदर भाव उतने ही सुंदर शब्द क्या मिश्रण है दोनों का!जितनी तारीफ की जाए कम ही बहुत ही सुंदर रचना

    ReplyDelete
  9. जो नेह के
    छोटे-छोटे भँवर हैं
    उसमें
    प्रवाहित कर दूँ
    हमारे बीच के
    अजनबीपन,औपचारिकता
    की पोटलियों को।
    प्रेम में एकाकार होने की तत्परता में आतुर मन के खूबसूरत भाव....
    लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  10. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 26 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  11. भावों का सहज संप्रेषण..

    ReplyDelete
  12. जीवन के सुंदर अहसासों और अनुभूतियों का खूबसूरत परिदृष्य दिखाती नयन कृति

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुंदर सृजन

    ReplyDelete
  14. कोमल अहसासों की कल्पनाओं से ओत-प्रोत सृजन। आपको बहुत-बहुत बधाईयाँ।

    ReplyDelete
  15. प्रेम की सार्थकता ही इसमें है कि वो सदैव प्रेम,बना रहे !

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...