(१)
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भोर की पहली
किरण फूटने पर
छलकी थी
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद
जब-जब भावों की लहरें
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
हर पल को
सोंधा कर जाती है।
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किरण फूटने पर
छलकी थी
तुम्हारी मासूम मुस्कान की
शीतल बूँदें
जो अटकी हैं अब भी
मेरी पलकों के भीतरी तह में
बड़े जतन से
रख दिया है
साँसों के समुंदर में
तुम्हारे जाने के बाद
जब-जब भावों की लहरें
छूती है मन के किनारों को
जीवन के गर्म रेत पर
बिखरकर इत्र-सा
मुस्कान तुम्हारी
हर पल को
सोंधा कर जाती है।
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(२)
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मेरे दिल से तुम्हारे मन तक
जो भावनाओं की नदी बहती है
निर्मल कल-कल,छल-छल,
जिसकी शीतल,मदिर धाराएँ
रह-रह कर छूती है
आत्मिक अनुभूति के
सुप्त किनारों को
सोचती हूँ
निर्बाध बहती जलधारा में
जो नेह के
छोटे-छोटे भँवर हैं
उसमें
प्रवाहित कर दूँ
हमारे बीच के
अजनबीपन,औपचारिकता
की पोटलियों को।
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-श्वेता सिन्हा
(उन दिनों)