माँ
इस सृष्टि का सबसे कोमल,स्नेहिल, पवित्र, शक्तिशाली ,सकारात्मक एवं ऊर्जावान भाव,विचार या स्वरूप है।
सूर्य,चंद्र,अग्नि,वायु,वरूण,यम इत्यादि देवताओं जो प्रकृति में स्थित जीवनी तत्वों के अधिष्ठाता हैं, के अंश से उत्पन्न देवी का आह्वान करने से तात्पर्य मात्र विधि-विधान से मंत्रोच्चार पूजन करना नहीं अपितु अपने अंतस के विकारों को प्रक्षालित करके दैवीय गुणों के अंश को दैनिक आचरण में जागृत करना है।
सूर्य,चंद्र,अग्नि,वायु,वरूण,यम इत्यादि देवताओं जो प्रकृति में स्थित जीवनी तत्वों के अधिष्ठाता हैं, के अंश से उत्पन्न देवी का आह्वान करने से तात्पर्य मात्र विधि-विधान से मंत्रोच्चार पूजन करना नहीं अपितु अपने अंतस के विकारों को प्रक्षालित करके दैवीय गुणों के अंश को दैनिक आचरण में जागृत करना है।
मानवता,प्रेम,करुणा, परोपकार, क्षमा और सहनशीलता जैसे संसार के सबसे कोमल भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती माँ खड्ग,चक्र,त्रिशूल, कृपाण,तलवार ढाल से सुशोभित
है,जो सिंह को वश में करती है, जो आवश्यकता होने पर फूलों की कोमलता त्यागकर ज्वालामुखी का रूप धारण कर शत्रुओं को भस्म करती है।
व्रत का अर्थ अपनी वृत्तियों को संतुलित करने का प्रयास और उपवास का अर्थ है अपने इष्ट का सामीप्य।
अपने व्यक्तित्व की वृत्तियों रजो, तमो, सतो गुण को संतुलित करने की प्रक्रिया ही दैवीय उपासना है।
देवी के द्वारा वध किये दानव कुवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे-
महिषासुर शारीरिक विकार का द्योतक है
चंड-मुंड मानसिक विकार,
रक्तबीज वाहिनियों में घुले विकार,
ध्रूमलोचन दृश्यात्मक वृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है,
शुम्भ-निशुम्भ भावनात्मक एवं अध्यात्मिक।
व्रत का अर्थ अपनी वृत्तियों को संतुलित करने का प्रयास और उपवास का अर्थ है अपने इष्ट का सामीप्य।
अपने व्यक्तित्व की वृत्तियों रजो, तमो, सतो गुण को संतुलित करने की प्रक्रिया ही दैवीय उपासना है।
देवी के द्वारा वध किये दानव कुवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे-
महिषासुर शारीरिक विकार का द्योतक है
चंड-मुंड मानसिक विकार,
रक्तबीज वाहिनियों में घुले विकार,
ध्रूमलोचन दृश्यात्मक वृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है,
शुम्भ-निशुम्भ भावनात्मक एवं अध्यात्मिक।
प्रकृति के कण-कण की महत्ता को आत्मसात करते हुए
ऋतु परिवर्तन से सृष्टि में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा का संचयन करना और शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक विकारों का नाश करना नवरात्रि का मूल संदेश है।
ऋतु परिवर्तन से सृष्टि में उत्पन्न सकारात्मक ऊर्जा का संचयन करना और शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक विकारों का नाश करना नवरात्रि का मूल संदेश है।
इस साधना से आत्मबल इतना मजबूत बने कि हम दैनिक जीवन के संघर्षों में किसी भी परिस्थिति पर संयम और प्रयास से विजय प्राप्त कर सके,अभीष्ट की प्राप्ति कर सकें।
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सभी विकारों का नाश करना ही इसका अभीष्ट है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय श्वेता। मां शब्द अपने आप में सम्पूर्ण सृष्टि और अनंत छांव का परिचायक है। मां के वात्सल्य और आत्मीयता का संसार में कोई सानी नहीं। सम्पूर्ण विश्व जननी और पालनकर्ता के रूप में, मां जगदम्बा की आराधना और उपासना की जाती है। नवरात्रे के रूप में नवदिवस अपने आप में सम्पूर्ण शक्ति जागरण के लिए विशेष माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है, इनमें आध्यात्मिक दृष्टि से भी और वैज्ञानिक आधार पर भी आंतरिक और बाह्य शक्ति संचयन की क्षमता का विस्तार होता है। त्रिगुणात्मक वृतियों को संतुलित करने की प्रक्रिया को बल मिलता है। तुमने बहुत गहनता से चिन्तन कर नवरात्री को बखूबी परिभाषित किया है। नवरात्री पर तुम्हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं🌷🌷❤️🌷
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०९-१०-२०२१) को
'अविरल अनुराग'(चर्चा अंक-४२१२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 10 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteनवरात्रि का बहुत सुंदर तरीके से परिभाषित किया है आपने, स्वेता दी।
ReplyDeleteसुंदर, सार्थक रचना !........
ReplyDeleteब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बेहतरीन और सार्थक रचना प्यारी श्वेता। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं ❤️
ReplyDeleteमाँ के साथ, मानवीय गुणों और मनुज की कमजोरियों पर माँ के हाथों दमन, सुंदर विवेचना करती सार्थक पोस्ट। विचार प्रवाह आकर्षित करते से सत्यका भान करवाते से।
ReplyDeleteसस्नेह बधाई श्वेता।
सुंदर, शुभकामनाएं|
ReplyDeleteVery nicely Written. Keep it up.
ReplyDeleteChandra
ReplyDeleteदेवी मां की शक्तियों का वृहद और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteभावपूर्ण ...
ReplyDeleteमाँ के चरणों में वंदन ...
Very nicely Written
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