5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर फिर से एक बार प्रभावशाली स्लोगन जोर-जोर से चिल्लायेगे,पेड़ों के संरक्षण के भाषण,बूँद-बूँद पानी की कीमत पहचानिये..और भी न जाने क्या-क्या लिखेगे और बोलेगे। पर सच तो यही है अपनी सुविधानुसार जीवन जीने की लालसा में हम अपने हाथों से विकास की कुल्हाड़ी लिये प्रकृति की जड़ों को काट रहे हैं। आधुनिकता की होड़ ने हमें दमघोंटू हवाओं में जीने को मजबूर कर दिया है और इन सबके जिम्मेदार सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारी असंतुलित,अव्यवस्थित आरामदायक जीवन शैली है।
प्रकृति की ऐसी दुर्दशा देख कर बस यही सवाल खुद से पूछती हूँ...कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम ये कैसी धरोहर संजो रहे हैं?
🌸🌸🌸🌸🌸
बदलते मौसम की सुगबुगाहट
तपती किरणों की चिलचिलाहट
सूखने लगे बाग के फूल सारे
कटते पेड़ों में मची कुलबुलाहट
गिरगिट सा रंग बदले मौसम
प्राणियों में होने लगी घबराहट
सूखते सोते जलाशयों में,
कंठों में बूँदों की अकुलाहट
पार्कों की जगह मॉल बन रहे
प्रकृति भी देख रही बदलाहट
कुदरत से खिलवाड दोस्तोंं
जीवन में मौत की बुलाहट
संतुलित रखो पर्यावरण को,
वरना सुनो विनाश की मौन आहट
---श्वेता सिन्हा