जबसे साँसों ने
तुम्हारी गंध पहचानानी शुरु की है
तुम्हारी खुशबू
हर पल महसूस करती हूँ
हवा की तरह,
ख़ामोश आसमां पर
बादलों से बनाती हूँ चेहरा तुम्हारा
और घनविहीन नभ पर
काढ़ती हूँ तुम्हारी स्मृतियों के बेलबूटे
सूरज की लाल,पीली,
गुलाबी और सुनहरी किरणों के धागों से,
जंगली फूलों पर मँडराती
सफेल तितलियों सी बेचैन
स्मृतियों के पराग चुनती हूँ,
पेड़ो से गिरती हुई पत्तियों से
चिड़ियों के कलरव में
नदी के जल की खिलखिलाहट में
बस तुम्हारी बातें ही सुनती हूँ
अनगिनत पहचाने चेहरों की भीड़ में
तन्हा मैं
हँसती, मुस्कुराती,बतियाती यंत्रचालित,
दुनिया की भीड़ में अजनबी
बस तुम्हें ही सोचती हूँ
शाम की उदासियों में
तारों की मद्धिम टिमटिमाहट में
रजत कटोरे से टपकती
चाँदी की डोरियों में
बाँधकर सारा प्रेम
लटका देती हूँ मन के झरोखे से
पवनघंटियों की तरह
जिसकी मधुर रुनझुन
विस्मृत कर जीवन की सारी कड़वाहट
खुरदरे पलों की गाँठों में
घोलती रहे
सुरीला प्रेमिल संगीत।
---श्वेता सिन्हा
तारों की मद्धिम टिमटिमाहट में
ReplyDeleteरजत कटोरे से टपकती
चाँदी की डोरियों में
बाँधकर सारा प्रेम
लटका देती हूँ मन के झरोखे से....
वाह!!! अद्भुत अप्रतिम भाव!!! बधाई और आभार!!!!
वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत उपमाओं से अलंकृत रचना ।
ReplyDeleteचाँदी की डोरियों में
ReplyDeleteबाँधकर सारा प्रेम
लटका देती हूँ मन के झरोखे से
पवनघंटियों की तरह
जिसकी मधुर रुनझुन ---
अद्भुत !!!!!!!वाह और सिर्फ वाह प्रिय श्वेता | माँ सरस्वती लेखनी को बुरी नजर से बचाए | मेरा प्यार बस |
वाह बेहद खूबसूरत लाजवाब सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर नमन दीदी जी
सुप्रभात 🙇
संदल सा महका हवाओं मे खुशबू उडी फिजाओं मे
ReplyDeleteये पहली चाहता का संगीत है मन की वीणा पर झंकार देता अम्बर शीश पर महा अनुगूंज बन बिखर गया।
वाह वाह बस आत्म भ्रमित सी वाह वाह श्वेता ।
वाव्व...श्वेता, प्रेम से परिपूर्ण बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteतारों की मद्धिम टिमटिमाहट में
ReplyDeleteरजत कटोरे से टपकती
चाँदी की डोरियों में
बाँधकर सारा प्रेम
लटका देती हूँ मन के झरोखे से
पवनघंटियों की तरह
जिसकी मधुर रुनझुन
विस्मृत कर जीवन की सारी कड़वाहट
मन को छू लेने वाली खूबसूरत रचना ।
प्रेम भाव का जैसे कोई केनवस रंगों और भावनाओं से रंग दिया हो ... प्रेम में डूबे मन मयूर को झंकृत करती रचना ... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteसुरीला प्रेमिल संगीत
ReplyDeleteप्रेम पर मनमोहक रचना
अनुपम
चाँदी की डोरियों में
ReplyDeleteबाँधकर सारा प्रेम
लटका देती हूँ मन के झरोखे से
पवनघंटियों की तरह
जिसकी मधुर रुनझुन
विस्मृत कर जीवन की सारी कड़वाहट
खुरदरे पलों की गाँठों में
घोलती रहे
सुरीला प्रेमिल संगीत।
बेहद खूबसूरत प्रेममयी ,लाजवाब प्रस्तुति
वाह!!!
जब दिल की गहराई में किसी का बेहद इंतजार हो और उसकी कमी महसूस हो तब ऐसी बैचेनी "खिलती" है,मन किसी भी आकृति को उसी की आकृति समझ लेता है..अनेकों यादें उगती है..और ये भटकन जारी रहती है.
ReplyDeleteउम्दा रचना
भाव पूर्ण ...
जंगली फुल पर सफेद तितली बैचेन ....ये तो हद्द है.
वाह
अत्यंत खूबसूरती से खींचा गया शब्दचित्र
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