जब तुम उग आते हो
मेरे भीतर गहरी जड़े लिये
काँटों सी चुभती छटपटाहटों में भी
फैल जाती है भीनी भीनी
सुर्ख गुलाब की मादक सुगंध
आँखों में खिल जाते है
गुच्छों से भरे गुलमोहर
दूर तक पसर जाती है रंगीनियाँ
तुम्हारे एहसास में
सुगबुगाती गर्म साँसों से
टपक पड़ती है
बूँदें दर्द भरी
अनंत तक बिखरे
ख्वाहिशों के रेगिस्तान में
लापता गुम होती
कभी भर जाते है लबालब
समन्दर एहसास के
ठाठें मारती उदास लहरें
प्यासे होंठों को छूकर कहती है
अबूझे खारेपन की कहानी
कभी ख्यालों को जीते तुम्हारे
संसार की सारी सीमाओं से
परे सुदूर कहीं आकाश गंगा
की नीरवता में मिलते है मन
तिरोहित कर सारे दुख दर्द चिंता
हमारे बीच का अजनबीपन
शून्य में भर देते है खिलखिलाहट
असंख्य स्वप्न के नन्हे बीज
जिसके रंगीन फूल
बन जाते है पल पल को जीने की वजह
तुम्हारी एक मुस्कान से
इंन्द्रधनुष भर जाता है
अंधेरे कमरे में
चटख लाल होने लगती है
जूही की स्निग्ध कलियाँ
लिपटने लगती है हँसती हवाएँ
मैं शरमाने लगती हूँ
छुप जाना चाहती हूँ
अपनी हरी चुड़ियों
और मेंहदी के बेलबूटे कढ़े
हथेलियों के पीछे
खींचकर परदा
गुलाबी दुपट्टे का
छुपछुप कर देखना चाहती हूँ
तन्हाई के उसपल में
चुरा कर रख लेना चाहती हूँ तुम्हें
बेशकीमती खज़ाने सा
तुम्हे समेटकर अपनी पलकों पर
सहेजकर हर लम्हें का टुकड़ा
बस तुम्हें पा लेना चाहती हूँ
कभी न खोने के लिए।
#श्वेता🍁
बेहद खूबसूरत भावों को शब्दों में समेटा है आपने श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteबहुत खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteअपनी हरी चुड़ियों
ReplyDeleteऔर मेंहदी के बेलबूटे कढ़े
हथेलियों के पीछे
क्या बात है ...बहुत ही नाजुक सा ख्याल आपने
जिसे शब्दों में ढाल दिया है पंक्ति बना के ..लाजवाब ...।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी। तहेदिल से।
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/08/31.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका राकेश जी, ये कविता व्यक्तिगत तौर से मुझे प्रिय है आपने इसे लिंक किया मानो कोई मनचाहा ईनाम दे दिया हो आपने हम बहुत खुश।बहुत आभार दिल से आपका।
Deleteखुशी और दर्द मिश्रित एक अनुपम रचना जो दिलो दिमाग को शांति देती है।
ReplyDeleteजी,बहुत बहुत आभार आपका।
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