Thursday, 17 August 2017

तन्हाई के पल


तन्हाई के उस लम्हें में
जब तुम उग आते हो 
मेरे भीतर गहरी जड़े लिये
काँटों सी चुभती छटपटाहटों में भी
फैल जाती है भीनी भीनी
सुर्ख गुलाब की मादक सुगंध
आँखों में खिल जाते है
गुच्छों से भरे गुलमोहर
दूर तक पसर जाती है रंगीनियाँ
तुम्हारे एहसास में
सुगबुगाती गर्म साँसों से
टपक पड़ती है 
बूँदें दर्द भरी 
अनंत तक बिखरे 
ख्वाहिशों के रेगिस्तान में
लापता गुम होती
कभी भर जाते है लबालब
समन्दर एहसास के
ठाठें मारती उदास लहरें
प्यासे होंठों को छूकर कहती है
अबूझे खारेपन की कहानी
कभी ख्यालों को जीते तुम्हारे
संसार की सारी सीमाओं से
परे सुदूर कहीं आकाश गंगा
की नीरवता में मिलते है मन
तिरोहित कर सारे दुख दर्द चिंता
हमारे बीच का अजनबीपन
शून्य में भर देते है खिलखिलाहट
असंख्य स्वप्न के नन्हे बीज
जिसके रंगीन फूल
बन जाते है पल पल को जीने की वजह
तुम्हारी एक मुस्कान से
इंन्द्रधनुष भर जाता है 
अंधेरे कमरे में
चटख लाल होने लगती है 
जूही की स्निग्ध कलियाँ
लिपटने लगती है हँसती हवाएँ
मैं शरमाने लगती हूँ
छुप जाना चाहती हूँ 
अपनी हरी चुड़ियों
और मेंहदी के बेलबूटे कढ़े 
हथेलियों के पीछे 
खींचकर परदा 
गुलाबी दुपट्टे का 
छुपछुप कर देखना चाहती हूँ
तन्हाई के उसपल में
चुरा कर रख लेना चाहती हूँ तुम्हें
बेशकीमती खज़ाने सा
तुम्हे समेटकर अपनी पलकों पर
सहेजकर हर लम्हें का टुकड़ा
बस तुम्हें पा लेना चाहती हूँ
कभी न खोने के लिए।


#श्वेता🍁

10 comments:

  1. बेहद खूबसूरत भावों‎ को शब्दों में समेटा है आपने श्वेता जी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।

      Delete
  2. बहुत खूबसूरत कविता

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

      Delete
  3. अपनी हरी चुड़ियों
    और मेंहदी के बेलबूटे कढ़े
    हथेलियों के पीछे
    क्‍या बात है ...बहुत ही नाजुक सा ख्‍याल आपने
    जिसे शब्‍दों में ढाल दिया है पंक्ति बना के ..लाजवाब ...।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी। तहेदिल से।

      Delete
  4. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/08/31.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका राकेश जी, ये कविता व्यक्तिगत तौर से मुझे प्रिय है आपने इसे लिंक किया मानो कोई मनचाहा ईनाम दे दिया हो आपने हम बहुत खुश।बहुत आभार दिल से आपका।

      Delete
  5. खुशी और दर्द मिश्रित एक अनुपम रचना जो दिलो दिमाग को शांति देती है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी,बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...