आज़ादी का जश्न मनाने
के पहले एक नज़र देखिये
कंधे पर फटकर झूलती
मटमैली धूसर कमीज
चीकट हो चुके धब्बेदार
नीली हाफ पैंट पहने
जूठी प्यालियों को नन्ही
मुट्ठियों में कसकर पकड़े
इस मेज से उस मेज दौड़ता
साँवले चेहरे पर चमकती
पीली आँख मटकाता
भोर पाँच बजे ही से
चाय समोसे की दुकान पर
नन्हा दुबला मासूम सा 'छोटू'
किसी की झिड़की किसी
का प्यार किसी की दया
निर्निमेष होकर सहता
पापा के साथ दुकान आये
नन्हें हम उमर बच्चों को
टुकुर टुकुर हसरत से ताकता
मंगलवार की आधी छुट्टी में
बस्ती के बेफ्रिक्र बच्चों संग
कंचे, गिट्टू, फुटबॉल खेलता
नदी में जमकर नहाता
बेवजह खिलखिलाता
ठुमकता फिल्मी गाने गाता
अपने स्वाभिमानी जीवन से
खुश है या अबोधमन बचपना
वक्त की धूप सहना सीख गया
रोते रोते गीला बचपन
सूख कर कठोर हो गया है
सूरज के थक जाने के बाद
चंदा के संग बतियाता
बोझिल शरीर को लादकर
कालिख सनी डेगची और
खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
पतले सूखे हाथों से घिसता
मटमैली धूसर कमीज
चीकट हो चुके धब्बेदार
नीली हाफ पैंट पहने
जूठी प्यालियों को नन्ही
मुट्ठियों में कसकर पकड़े
इस मेज से उस मेज दौड़ता
साँवले चेहरे पर चमकती
पीली आँख मटकाता
भोर पाँच बजे ही से
चाय समोसे की दुकान पर
नन्हा दुबला मासूम सा 'छोटू'
किसी की झिड़की किसी
का प्यार किसी की दया
निर्निमेष होकर सहता
पापा के साथ दुकान आये
नन्हें हम उमर बच्चों को
टुकुर टुकुर हसरत से ताकता
मंगलवार की आधी छुट्टी में
बस्ती के बेफ्रिक्र बच्चों संग
कंचे, गिट्टू, फुटबॉल खेलता
नदी में जमकर नहाता
बेवजह खिलखिलाता
ठुमकता फिल्मी गाने गाता
अपने स्वाभिमानी जीवन से
खुश है या अबोधमन बचपना
वक्त की धूप सहना सीख गया
रोते रोते गीला बचपन
सूख कर कठोर हो गया है
सूरज के थक जाने के बाद
चंदा के संग बतियाता
बोझिल शरीर को लादकर
कालिख सनी डेगची और
खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
पतले सूखे हाथों से घिसता
थककर निढाल सुस्त होकर
बगल की फूस झोपड़ी में
अंधी माँ की बातें सुनते
हाथ पैर छितराये सो जाता।
अंधी माँ की बातें सुनते
हाथ पैर छितराये सो जाता।
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteकटु यथार्थ का सुन्दर चित्रण .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteछोटू उन लाखों करोड़ों बच्चों का प्रतीक है जो बाल मजदूरी करने को विवश हैं ! बहुत सारी समस्याएँ कानूनी होने से बढ़कर सामाजिक हैं । जिन हाथों में कलम और कापी होनी चाहिये उन हाथों में मजदूर के औजार हैं । दुखद है ! दुर्भाग्यपूर्ण है ! बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति । बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteजी, सर आपने सही विवेचना की ।रचना का मर्म समझने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आभार आपका।
Deleteसत्य का अनावरण करती आपकी बेहद मार्मिक रचना ,लिखते रहिए शुभकामनायें आभार ,"एकलव्य"
ReplyDeleteजी, बहुत बहुत आभार आपका एकलव्य जी,आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदय से धन्यवाद।
Deleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका दी।
ReplyDeleteछोटू के मजबूत कंधे उठाते फिर रहे हैं परिवार की जिम्मेदारी !!
ReplyDeleteजी,बिल्कुल।
Deleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका आदरणीय गगन जी।
छोटू एक शब्दचित्र है जिसमें समाज में व्याप्त घोर असमानता को मार्मिकता की इतनी गहराई दे दी गयी कि हमारी सोई हुई संवेदना ऐसे करोड़ों छोटुओं के प्रति जाग उठे और हम इस चित्र को बदलने में अपनी भूमिका तलाशने लगें। बहुत -बहुत आभार और बधाई श्वेता जी जिनका कोई नहीं उनकी व्यथा को शाब्दिक अभिव्यक्ति में ढालकर समाज को सोचने पर विवश करने के लिए।
ReplyDeleteजी, रवींद्र जी बहुत बहुत आभार ए्वं शुक्रिया आपका तहेदिल से काफी दिनों बाद आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पढ़कर मन प्रसन्न हुआ। आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत आभार।
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteहमारे समाज का कटु सत्य बयां करती....
लाजवाब प्रस्तुति ।
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।
Deleteहृदय तल से धन्यवाद आपका।
ऐसे कितने ही छोटू प्रतिदिन हमारी नजरों के सामने से गुजरते हैं ।
ReplyDeleteअपने स्वाभिमानी जीवन से
खुश है या अबोधमन बचपना
वक्त की धूप सहना सीख गया....
ये रचना सचमुच एक शब्दचित्र की तरह छोटू की तस्वीर हमारी आँखों के सामने ले आई है !
जी, बहुत बहुत स्नेहिल आभार एवं हार्दिक धन्यवाद आपका मीना जी। आपने सराहनीय प्रतिक्रिया और अच्छा लिखने को प्रेरित करती है।
Deleteमर्मस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteहाथों में जिनके,
जूठे गिलास - प्लेटें हैं ||
वो भी तो आखिर,
भारत मां के बेटे हैं ||
जी, विनोद जी, बिल्कुल सही लिखा आपने
Deleteबहुत सुंदर 👌👌
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका विनोद जी।
जी, बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका राकेश जी मेरी रचना को मान देने के लिए।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और दिल छू लेने वाली रचना|
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका अर्चना जी, तहेदिल से आभार आपका।
Deleteसूरज के थक जाने के बाद
ReplyDeleteचंदा के संग बतियाता
बोझिल शरीर को लादकर
कालिख सनी डेगची और
खरकटे पतीलों में मुँह घुसाये
पतले सूखे हाथों से घिसता.... अद्भुत शब्द शिल्प, श्वेताजी! बधाई!!!
बहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्रेरणा देती है और अच्छा लगता लिखने को। तहेदिल से आभार।
Deleteबहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ।
ReplyDeleteजी, संजय जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका तहेदिल से।
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