Sunday, 6 August 2017

आवारा चाँद

दूधिया बादलों के
मखमली आगोश में लिपटा
माथे पर झूलती
एक आध कजरारी लटों को
अदा से झटकता
मन को खींचता मोहक चाँद
झुककर पहाड़ों की
खामोश नींद से बेसुध वादियों के
भीगे दरख्तो के
बेतरतीब कतारों में उलझता
डालकर अपनी चटकीली
काँच सी चाँदनी बिखरा
ओस की बूँदों पर छनककर
पत्तों के ओठों को चूमता
मदहोश लुभाता चाँद
ठंडी छत के आँगन से होकर
झाँकता झरोखें से
हौले हौले पलकों को छूकर
सपनीले ख्वाब जगाता चाँद
रात रात भर भटके
गली गली क्या ढ़ूँढता जाने
ठहरकर अपलक देखे
मुझसे मिलने आता हर रोज
जाने कितनी बातें करता
आँखों में मुस्काता
वो पागल आवारा चाँद

    #श्वेता🍁


10 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना

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  2. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  3. बहुत ख़ूबसूरत शब्द चित्र...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  4. वाह ! ,बेजोड़ पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार "एकलव्य"

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी।

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  5. वाह ! शब्दों का बड़ा ही सुंदर संयोजन है । बार बार पढ़ा । बहुत खूबसूरत रचना ।

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    1. खूब सारा स्नेहिल आभार मीना जी।

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  6. Replies
    1. बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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