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Monday, 30 November 2020
Monday, 11 September 2017
चाँद
*चित्र साभार गूगल*
मुक्तक
चाँद आसमान से बातें करता ऊँघने लगा
अलसाकर बादलों के पीछे आँखें मूँदने लगा
नीरवता रात की मुस्कुरायी सितारों को चूमकर
ख्वाबों मे हुई आहट फिजां में संगीत गूँजने लगा
*********************************
अलसाकर बादलों के पीछे आँखें मूँदने लगा
नीरवता रात की मुस्कुरायी सितारों को चूमकर
ख्वाबों मे हुई आहट फिजां में संगीत गूँजने लगा
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चाँदनी रातों को अक्सर छत पे चले जाते है
वो भी देखते होगे चंदा सोच सोच मुस्कुराते है
पलकों के पिटारे मे बंद कर ख्वाब नशीले
वो भी देखते होगे चंदा सोच सोच मुस्कुराते है
पलकों के पिटारे मे बंद कर ख्वाब नशीले
रेशमी यादों के आगोश में गुम हम सो जाते है
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झर झर झरती चाँदनी मुझसे है बतियाए
वो बैठा तेरे छाँव तले चँदनियाँ उसको भाए
गुन गुन करते पवन झकोरे तन मेरा छू जाए
उसकी याद की मीठी सिहरन मन मेरा बौराए
झर झर झरती चाँदनी मुझसे है बतियाए
वो बैठा तेरे छाँव तले चँदनियाँ उसको भाए
गुन गुन करते पवन झकोरे तन मेरा छू जाए
उसकी याद की मीठी सिहरन मन मेरा बौराए
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चाँदनी के धागों से स्याह आसमान पे पैगाम लिखा है
दिल की आँखों से पढ़ लो संदेशा एक खास लिखा है
पी लो धवल चाँद का रस ख्यालों के वरक लपेटकर
सुनहरे ख्वाब मे मुस्कुराने को अपने एहसास लिखा है
दिल की आँखों से पढ़ लो संदेशा एक खास लिखा है
पी लो धवल चाँद का रस ख्यालों के वरक लपेटकर
सुनहरे ख्वाब मे मुस्कुराने को अपने एहसास लिखा है
#श्वेता🍁
Tuesday, 5 September 2017
इंतज़ार
स्याह रात के
तन्हा दामन में
लम्हा लम्हा
सरकता वक्त,
बादलों के ओठों पर
धीमे धीमें मुस्कुराता
स्याह बादल के कतरों
के बीच शफ्फाक
हीरे की कनी सा
आँखों को लुभाता
शरमीला चाँद,
खामोश ताकते
सितारों की महफिल से
छिटक कर गिरते
ख्वाहिशों के टुकड़े
एक एक कर चुनती
समेटती मुट्ठियों में
अनदेखे ख्वाब,
भीगती सारी रात
चाँदनी की बारिश में
जुगनुओं से खेलती लुका छिपी
काँच की बोतलों में
भरकर ऊँघते चाँद की खुशबू
थक गयी हटाकर
बादलों के परदे
एक झलक भोर के
इंतज़ार में,
लंबी रात की पल पल गिनती
बैठी हूँ आज फिर
अपने आगोश मे
दरख्तों को लेकर सोये
झील के खामोश किनारे पर।
#श्वेता🍁
तन्हा दामन में
लम्हा लम्हा
सरकता वक्त,
बादलों के ओठों पर
धीमे धीमें मुस्कुराता
स्याह बादल के कतरों
के बीच शफ्फाक
हीरे की कनी सा
आँखों को लुभाता
शरमीला चाँद,
खामोश ताकते
सितारों की महफिल से
छिटक कर गिरते
ख्वाहिशों के टुकड़े
एक एक कर चुनती
समेटती मुट्ठियों में
अनदेखे ख्वाब,
भीगती सारी रात
चाँदनी की बारिश में
जुगनुओं से खेलती लुका छिपी
काँच की बोतलों में
भरकर ऊँघते चाँद की खुशबू
थक गयी हटाकर
बादलों के परदे
एक झलक भोर के
इंतज़ार में,
लंबी रात की पल पल गिनती
बैठी हूँ आज फिर
अपने आगोश मे
दरख्तों को लेकर सोये
झील के खामोश किनारे पर।
#श्वेता🍁
Sunday, 6 August 2017
आवारा चाँद
दूधिया बादलों के
मखमली आगोश में लिपटा
माथे पर झूलती
एक आध कजरारी लटों को
अदा से झटकता
मन को खींचता मोहक चाँद
झुककर पहाड़ों की
खामोश नींद से बेसुध वादियों के
भीगे दरख्तो के
बेतरतीब कतारों में उलझता
डालकर अपनी चटकीली
काँच सी चाँदनी बिखरा
ओस की बूँदों पर छनककर
पत्तों के ओठों को चूमता
मदहोश लुभाता चाँद
ठंडी छत के आँगन से होकर
झाँकता झरोखें से
हौले हौले पलकों को छूकर
सपनीले ख्वाब जगाता चाँद
रात रात भर भटके
गली गली क्या ढ़ूँढता जाने
ठहरकर अपलक देखे
मुझसे मिलने आता हर रोज
जाने कितनी बातें करता
आँखों में मुस्काता
वो पागल आवारा चाँद
#श्वेता🍁
मखमली आगोश में लिपटा
माथे पर झूलती
एक आध कजरारी लटों को
अदा से झटकता
मन को खींचता मोहक चाँद
झुककर पहाड़ों की
खामोश नींद से बेसुध वादियों के
भीगे दरख्तो के
बेतरतीब कतारों में उलझता
डालकर अपनी चटकीली
काँच सी चाँदनी बिखरा
ओस की बूँदों पर छनककर
पत्तों के ओठों को चूमता
मदहोश लुभाता चाँद
ठंडी छत के आँगन से होकर
झाँकता झरोखें से
हौले हौले पलकों को छूकर
सपनीले ख्वाब जगाता चाँद
रात रात भर भटके
गली गली क्या ढ़ूँढता जाने
ठहरकर अपलक देखे
मुझसे मिलने आता हर रोज
जाने कितनी बातें करता
आँखों में मुस्काता
वो पागल आवारा चाँद
#श्वेता🍁
Sunday, 21 May 2017
आकाश झील
दिन भर की थकी किरणें
नीले आकाश झील के
सपनीले आगोश से
लिपटकर सो जाती है
स्याह झील के आँगन में
हवा के नाव पर सवार
बादल सैर को निकलते है
असंख्य ख्वाहिशों की कुमुदनी
में खिले सितारों की झालर
झील के पानी में जगमगाते है
शांत झील के एक कोने में
श्वेत दुशाला डाले तन्हा चाँद
आधा कभी पूरा मुख दिखलाता
जाने किस सोच में गुम उदास
निःशब्द बर्फ के शिलाखंड से
बूँद बूँद चाँदनी पिघला कर
मन को उजास की बारिश में
भिंगोकर शीतल करता है
निर्मल विस्तृत आकाश झील
हृदय के जलती बेचैनियों को
अपने सम्मोहन में बाँधकर
खींच लेता है अपनी ओर
और पलकों में भरकर स्वप्न
समा लेता है अपने गहरे संसार में।
#श्वेता🍁
नीले आकाश झील के
सपनीले आगोश से
लिपटकर सो जाती है
स्याह झील के आँगन में
हवा के नाव पर सवार
बादल सैर को निकलते है
असंख्य ख्वाहिशों की कुमुदनी
में खिले सितारों की झालर
झील के पानी में जगमगाते है
शांत झील के एक कोने में
श्वेत दुशाला डाले तन्हा चाँद
आधा कभी पूरा मुख दिखलाता
जाने किस सोच में गुम उदास
निःशब्द बर्फ के शिलाखंड से
बूँद बूँद चाँदनी पिघला कर
मन को उजास की बारिश में
भिंगोकर शीतल करता है
निर्मल विस्तृत आकाश झील
हृदय के जलती बेचैनियों को
अपने सम्मोहन में बाँधकर
खींच लेता है अपनी ओर
और पलकों में भरकर स्वप्न
समा लेता है अपने गहरे संसार में।
#श्वेता🍁
Tuesday, 9 May 2017
ख्वाब
खामोश रात के दामन में,
जब झील में पेड़ों के साये,
गहरी नींद में सो जाते हैंं
उदास झील को दर्पण बना
अपना मुखड़ा निहारता,
चाँद मुस्कुराता होगा,
सितारों जड़ी चाँदनी की
झिलमिलाती चुनरी ओढ़कर
डबडबाती झील की आँखों में
मोतियों-सा बिखर जाता होगा
पहर-पहर रात को करवट
बदलती देख कर,
दिल आसमां का,
धड़क जाता होगा
दूर अपने आँगन मेंं बैठा
मेरे ख़्यालों में डूबा "वो"
हथेलियों में रखकर चाँद
आँखों में भरकर मुहब्बत
मेरे ख़्वाब सजाता तो होगा।
#श्वेता सिन्हा
जब झील में पेड़ों के साये,
गहरी नींद में सो जाते हैंं
उदास झील को दर्पण बना
अपना मुखड़ा निहारता,
चाँद मुस्कुराता होगा,
सितारों जड़ी चाँदनी की
झिलमिलाती चुनरी ओढ़कर
डबडबाती झील की आँखों में
मोतियों-सा बिखर जाता होगा
पहर-पहर रात को करवट
बदलती देख कर,
दिल आसमां का,
धड़क जाता होगा
दूर अपने आँगन मेंं बैठा
मेरे ख़्यालों में डूबा "वो"
हथेलियों में रखकर चाँद
आँखों में भरकर मुहब्बत
मेरे ख़्वाब सजाता तो होगा।
#श्वेता सिन्हा
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मैं से मोक्ष...बुद्ध
मैं नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता मेरा हृदयपरिवर...