दिन भर की थकी किरणें
नीले आकाश झील के
सपनीले आगोश से
लिपटकर सो जाती है
स्याह झील के आँगन में
हवा के नाव पर सवार
बादल सैर को निकलते है
असंख्य ख्वाहिशों की कुमुदनी
में खिले सितारों की झालर
झील के पानी में जगमगाते है
शांत झील के एक कोने में
श्वेत दुशाला डाले तन्हा चाँद
आधा कभी पूरा मुख दिखलाता
जाने किस सोच में गुम उदास
निःशब्द बर्फ के शिलाखंड से
बूँद बूँद चाँदनी पिघला कर
मन को उजास की बारिश में
भिंगोकर शीतल करता है
निर्मल विस्तृत आकाश झील
हृदय के जलती बेचैनियों को
अपने सम्मोहन में बाँधकर
खींच लेता है अपनी ओर
और पलकों में भरकर स्वप्न
समा लेता है अपने गहरे संसार में।
#श्वेता🍁
नीले आकाश झील के
सपनीले आगोश से
लिपटकर सो जाती है
स्याह झील के आँगन में
हवा के नाव पर सवार
बादल सैर को निकलते है
असंख्य ख्वाहिशों की कुमुदनी
में खिले सितारों की झालर
झील के पानी में जगमगाते है
शांत झील के एक कोने में
श्वेत दुशाला डाले तन्हा चाँद
आधा कभी पूरा मुख दिखलाता
जाने किस सोच में गुम उदास
निःशब्द बर्फ के शिलाखंड से
बूँद बूँद चाँदनी पिघला कर
मन को उजास की बारिश में
भिंगोकर शीतल करता है
निर्मल विस्तृत आकाश झील
हृदय के जलती बेचैनियों को
अपने सम्मोहन में बाँधकर
खींच लेता है अपनी ओर
और पलकों में भरकर स्वप्न
समा लेता है अपने गहरे संसार में।
#श्वेता🍁
वाह ! क्या कहने है ! लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 28 मई 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका ध्रुव बहुत सारा।मेरी रचना को मान देंने के लिए।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 28 मई 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteकिरणें भी थक जाती हैं, यह भी एक कवि मन ही समझ सकता है। पीड़ा का अविस्मरणीय विवरण बहुत ही प्रभावकारी बन पड़ा है। धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका P.K ji
Deleteकिरणें भी थक जाती है यह एक कवि मन ही समझ सकता है। पीड़ा का भावपरक विवरण अत्यन्त प्रभावशाली रूप से किया है आपने। धन्यवाद। आपकी लेखनी और भी प्रशस्त हो
ReplyDeleteआपकी हार्दिक शुभकामनाओं के लिए हृदय तल से आभार P.K ji
Deleteश्वेत दुशाला डाले तन्हा चाँद
ReplyDeleteआधा कभी पूरा मुख दिखालाता
जाने किस सोच में गुम उदास....
वाह!!!
बहुत सुन्दर....
बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।
Deleteप्राकृतिक बिम्बों और प्रतीकों के सुन्दर समायोजन से जीवन के रहस्य को उकेरती रचना। नई कविता का माधुर्य लिए प्रस्तुत हुई है मोहक रचना। बधाई श्वेता जी।
ReplyDeleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया और मेरी कविता के भ व समझने के लिए शुक्रिया आभार आपका रवींद्र जी।
Deleteवाह ! क्या कहने है ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत शुक्रिया आभार राजेश जी।
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