उनींदी पलकों को खोलकर देखे
भोर से मिलता अलसाता सूरज
घटाओं के झुरमुट से झाँककर
स्मित मुस्कान बिखराता सूरज
पर्वतशिख के बाहुपाश में बँध
सुधबुध सर्वस्व बिसराता सूरज
मस्त पवन के अमृत प्याले पीकर
हर फूल कली को रिझाता सूरज
चूमकर धरा की धानी चुनरिया
लता वन कानन दुलराता सूरज
नदी तड़ाग का जल सोना करके
सागर में छककर नहाता सूरज
नियत समय पर मिलने है आता
दिनभर कितना बतियाता सूरज
बादल से आँख मिचौली खेलता
रूप बदलकर दिखलाता सूरज
सप्त अश्व रथ में बैठकर चलता
सुबह और शाम बतलाता सूरज
#श्वेता🍁
भोर से मिलता अलसाता सूरज
घटाओं के झुरमुट से झाँककर
स्मित मुस्कान बिखराता सूरज
पर्वतशिख के बाहुपाश में बँध
सुधबुध सर्वस्व बिसराता सूरज
मस्त पवन के अमृत प्याले पीकर
हर फूल कली को रिझाता सूरज
चूमकर धरा की धानी चुनरिया
लता वन कानन दुलराता सूरज
नदी तड़ाग का जल सोना करके
सागर में छककर नहाता सूरज
नियत समय पर मिलने है आता
दिनभर कितना बतियाता सूरज
बादल से आँख मिचौली खेलता
रूप बदलकर दिखलाता सूरज
सप्त अश्व रथ में बैठकर चलता
सुबह और शाम बतलाता सूरज
#श्वेता🍁
बहुत ही उम्दा तुलनात्मक कृति.....
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका P.K ji
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