ठिठुरती रात, झरती ओस की चुनरी लपेटे खटखटा रही है बंद द्वार का साँकल।
साँझ से ही छत की अलगनी से टँगा झाँक रहा है शीशे के झरोखे से उदास चाँद तन्हाई का दुशाला ओढ़े।
नभ के नील आँचल से छुप-छुपकर झाँकता आँखों की ख़्वाबभरी अधखुली कटोरियों की सारी अनकही चिट्ठियों की स्याही पीकर बौराया बूँद-बूँद टपकता मन के उजले पन्नों पर धनक एहसास की कविताएँ रचता चाँद।
शांत झील की गोद में लहराती चाँदनी की लटें, पहाड़ी की बाहों में बेसुध बादलों की टोलियाँ वृक्षों की शाखों पर उनींदे पक्षियों की सरसराहटें हवाओं की धीमी फुसफुसाहटें और... ठंड़ी रात की नीरवता के हरपल में चाँद के मद्धिम आँच में धीमे-धीमे खदबदाती कच्चे रंगों में स्वप्नों की बेरंग चुन्नियाँ ...।
आदरणीया मैम, प्रणाम। बहुत ही सुंदर रचना फिर से। वैसे मैं अधिकतर इतनी रात नहीं जगती पर आज हम सब को देर हो गई बिस्तर पर जाने में, अच्छा है आपकी रचना पढ़ने को मिल गयी। प्रकृति से जुड़ी एक सुंदर कविता सदा की तरह जिस में प्रेम कविता के भी भाव हैं। आज देर हो गयी, माँ और नानी को कल पढ़ कर सुनाऊँगी। मुझे भी पूर्णिमा का चांद देखना बहुत अच्छा लगता है, बहुत शांति मिलती है। आज देखिये पूर्णिमा है पर चंदा मामा दर्शन ही नहीं दिए।आपको पुनः प्रणाम।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
आदरणीया मैम, प्रणाम। आज आपकी कविता फिर से पढ़ी। माँ और नानी को भी पढ़ाया। आपकी यह कविता पढ़ते ही रात के काले आकाश में चमकते एकाकी चांद और एक पारदर्शी झील में उसकी परछाई और उस झील का किनारा जहाँ एकांत ही एकांत हो, सारी छवि मन में आ गयी। पर एक कारण और है जो मुझे बहुत खुशी है, आज फाई बार मैं ने सच में आपका रचनाकार रूप देखा। आपने अंत की पँक्तियों में फेर बदल कर दी, पूरा अर्थ बदल गया। आपको पुनः प्रणाम।
बहुत ही भावभीनी रचना प्रिय श्वेता। चाँद और मन का योग किसी से छुपा नहीं। यूँ चाँद सबका चहेता है, पर जब चाँद को एक कवि मन निहारता है तो उसकी बात ही कुछ और होती है। उसकी चाँदनीके साथ अनेक यादें जुडी होती हैं😊वह मन को आनंद से भरती है तो विरह की पीड़ा भी देती हैं । भावभीना काव्य चित्र् जो तुम्हारे लेखन की विशेषता है। बहुत अच्छा लगा । पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!
शांत झील की गोद में लहराती चाँदनी की लटें, पहाड़ी की बाहों में बेसुध बादलों की टोलियाँ वृक्षों की शाखों पर उनींदे पक्षियों की सरसराहटें हवाओं की धीमी फुसफुसाहटें कमाल के बिम्बों से सजाती हैं आप अपनी कविताएं आँखों की ख़्वाबभरी अधखुली कटोरियाँ !!!! वाह!!!! बहुत ही लाजवाब श्वेता जी!मंत्रमुग्ध कर देती हैं आपकी रचनाएं...। बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
आदरणीया मैम, प्रणाम। बहुत ही सुंदर रचना फिर से। वैसे मैं अधिकतर इतनी रात नहीं जगती पर आज हम सब को देर हो गई बिस्तर पर जाने में, अच्छा है आपकी रचना पढ़ने को मिल गयी। प्रकृति से जुड़ी एक सुंदर कविता सदा की तरह जिस में प्रेम कविता के भी भाव हैं। आज देर हो गयी, माँ और नानी को कल पढ़ कर सुनाऊँगी। मुझे भी पूर्णिमा का चांद देखना बहुत अच्छा लगता है, बहुत शांति मिलती है।
ReplyDeleteआज देखिये पूर्णिमा है पर चंदा मामा दर्शन ही नहीं दिए।आपको पुनः प्रणाम।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-12-2020) को "रवींद्र सिंह यादव जी को बिटिया के शुभ विवाह की हार्दिक बधाई" (चर्चा अंक-3903) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
वाह
ReplyDeleteआदरणीया मैम, प्रणाम। आज आपकी कविता फिर से पढ़ी। माँ और नानी को भी पढ़ाया। आपकी यह कविता पढ़ते ही रात के काले आकाश में चमकते एकाकी चांद और एक पारदर्शी झील में उसकी परछाई और उस झील का किनारा जहाँ एकांत ही एकांत हो, सारी छवि मन में आ गयी। पर एक कारण और है जो मुझे बहुत खुशी है, आज फाई बार मैं ने सच में आपका रचनाकार रूप देखा। आपने अंत की पँक्तियों में फेर बदल कर दी, पूरा अर्थ बदल गया। आपको पुनः प्रणाम।
ReplyDeleteबहुत ही भावभीनी रचना प्रिय श्वेता। चाँद और मन का योग किसी से छुपा नहीं। यूँ चाँद सबका चहेता है, पर जब चाँद को एक कवि मन निहारता है तो उसकी बात ही कुछ और होती है। उसकी चाँदनीके साथ अनेक यादें जुडी होती हैं😊वह मन को आनंद से भरती है तो विरह की पीड़ा भी देती हैं । भावभीना काव्य चित्र् जो तुम्हारे लेखन की विशेषता है। बहुत अच्छा लगा । पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशांत झील की
ReplyDeleteगोद में लहराती
चाँदनी की लटें,
पहाड़ी की बाहों में बेसुध
बादलों की टोलियाँ
वृक्षों की शाखों पर
उनींदे पक्षियों की
सरसराहटें
हवाओं की धीमी
फुसफुसाहटें
कमाल के बिम्बों से सजाती हैं आप अपनी कविताएं
आँखों की ख़्वाबभरी अधखुली कटोरियाँ !!!!
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब श्वेता जी!मंत्रमुग्ध कर देती हैं आपकी रचनाएं...।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDelete