Tuesday, 8 August 2017

मोह है क्यूँ तुमसे

                                चित्र साभार गूगल
मोह है क्यूँ 
तुमसे बता न सकूँगी
संयम घट
मन के भर भर रखूँ
पाकर तेरी गंध
मन बहका जाये 
लुढकी भरी
नेह की गगरी ओर तेरे
छलक पड़ी़ बूँद 
भीगे तृषित मन लगे बहने
न रोकूँ प्रवाह 
खुद को मैं
और अब समझा न सकूँगी
ज्ञात अज्ञात 
सब समझूँ सब जानूँ
ज्ञान धरा रहे
जब अंतर्मन में आते हो तुम
टोह न मिले तेरी
आकुल हिय रह रह तड़पे
हृदय बसी छवि
अब भुला न सकूँगी
दर्पण तुम मेरे सिंगार के
नयनों में तेरी
देख देख संवरूँ सजूँ पल पल
सजे सपन सलोने
तुम चाहो तो भूल भी जाओ
साँस बाँध ली
संग साँसों के तेरे
चाहूँ फिर भी
तुमको मैं बिसरा न सकूँगी

      #श्वेता🍁

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन श्वेता जी .

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी,आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर। हृदय से धन्यवाद आपका।

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  2. क्या बात
    बेहतरीन रचना

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    1. बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार। "एकलव्य"

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका ध्रुव जी।

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  4. तुम चाहो तो भूल भी जाओ
    साँस बाँध ली
    संग साँसों के तेरे
    चाहूँ फिर भी
    तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
    बहुत बढ़िया।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।

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  5. बहुत सुंदर लिखा है श्वेताजी।

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    1. सस्नेह आभार आपका मीना जी।

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  6. Replies
    1. जी, बहुत आभार आपका।

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  7. If God is all-knowing, did he know that we were going to sin before he created us?

    https://www.quora.com/If-God-is-all-knowing-did-he-know-that-we-were-going-to-sin-before-he-created-us

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  8. सुन्दर सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका विनोद जी।

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  9. संग साँसों के तेरे
    चाहूँ फिर भी
    तुमको मैं बिसरा न सकूँगी
    बहुत बढ़िया।

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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