साँझ की राहदारी में
क्षितिज की स्याह आँखों में गुम
ख़्यालों की सीढियों पर बैठी
याद के क़दमों की आहट टटोलती है।
आसमां की ख़ामोश बस्ती में
उजले फूलों के वन में भटकती
पलकों के भीतर डूबती आँखों से
पिघलते चाँद की तन्हाईयाँ सुनती है।
पागल समुंदर की लहरें
चाँद की उंगलियां छूने को बेताब
साहिल पर सीपियाँ बुहारती चाँदनी संग
रेत पर खोये क़दमों के निशां चुनती है।
मन की मरीचिका में
तपती मरुभूमि में दिशाहीन भटकते
बूँदभर चाहत लिए उम्र की पगडंडियों पर
बिछड़े क़दमों को ढूँढती नये ख़्वाब बुनती है।
---श्वेता सिन्हा
प्रकृति के साथ अपने मन की संवेदनाओं का बेहतर शब्द संयोजन शुभकामनाएं स्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा प्रिय श्वेता जी
ReplyDeleteमुझे प्रकृति लिखने के लिए कभी आकर्षित नही करती
पर ये आप की रचना की ख़ूबसूरती है
जो उसे इतनी ख़ूबसूरती से सजाती है
की दिल दो पल के लिए ही सही
पर उस एहसास को जीता है
जिस एहसास में डूबकर आप ने इस रचना को लिखा
वाह!श्वेता ,बहुत सुंदर ! लाजवाब शब्द संयोजन ...आपकी हर रचना बहुत ही खूबसूरत होती है ।
ReplyDeleteमन की मरीचिका में
ReplyDeleteतपती मरुभूमि में दिशाहीन भटकते
बूँदभर चाहत लिए उम्र की पगडंडियों पर
बिछड़े क़दमों को ढूँढती नये ख़्वाब बुनती है...
मन के भावों को व्यक्त करती बेहतरीन रचना
सुन्दर!
ReplyDeleteसुन्दर शब्दचित्र.
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें.
वाह...
ReplyDeleteकल रविवार की प्रस्तुति की शोभा बढ़ाएगी ये कविता
सादर
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 15 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयही ज़िन्दगी है । सूंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteमन और प्रकृति का अद्भुत संगम
ReplyDeleteबेहद उम्दा
खूबसूरत रचना 👌👌
वाव्व स्वेता, प्रकृति का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने।
ReplyDeleteख़्यालों की सीढियां, पिघलते चाँद की तन्हाई,चाँद की उँगलियाँ ,उम्र की पगडंडियाँ....
ReplyDeleteवाह!श्वेता जी क्या कमाल लिखती हैं आप.....समांं सजीव हो उठता है पाठक के मन में...लाजवाब शब्दविन्यास...
वाह!!!!
प्रकृति के प्रति असीम अनुराग संजोये बड़ी सुन्दर कदमों की आहट 😊
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteBahut sundar kavita. I like your nature poetry. Excellent.
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ReplyDeleteपागल समुंदर की लहरें
चाँद की उंगलियां छूने को बेताब
साहिल पर सीपियाँ बुहारती चाँदनी संग
रेत पर खोये क़दमों के निशां चुनती है-- प्रिय श्वेता अत्यंत सुकोमल भावों से गुंथा अप्रितम लेखन!!!!!!!!!! सस्नेह ---
यादें तनहाइयाँ और प्रेम में डूबी साँझ ...
ReplyDeleteबीते क़दमों की तलाश बहुत दूर तक ले जाती है जहाँ प्रेम का गहरा समु डर होता है इंतज़ार करता ...
गहरी रचना ...