ताखा पर
बरसों से
जोड़-जोड़कर रखा
अधनींदी और
स्थगित इच्छाओं से
भरा गुल्लक
मुँह चिढ़ा रहा है
अबके बरस भी...।
खेत से पेट तक
मीलों लंबा सफ़र
शून्य किलोमीटर
के शिलापट्ट पर
टिका रह जायेगा
अबके बरस भी...।
सोंधी स्मृतियों पर
खोंसे गये
पीले फूलों की सुगंध में,
अधपके, खट्टमीट्ठे
फलियों और अमिया
पकने के बाद के
सपनें टँके लाल दुपट्टे
संदूकची में सहेजकर
रख दी जायेगी
अबके बरस भी...।
महामारी की कुदृष्टि से
छिपकर उगी
उम्मीद के बीज,
बेमौसम.बारिश से
बदरंग हुई
गलने के बाद
बची तोरई,भिंड़ी
अरबी,बैंगन,बाजरा
की फसल
कुछ नन्हें फल
हाट तक नहीं पहुँचेगे
अबके बरस...।
भयभीत,व्यग्र आँखें
बेबसी से देख रही हैं
शिवालिक की श्रृंखलाओं
को पार कर आई
मीलों आच्छादित
भूरे-काले उड़ते,
निर्मम बादलों से
बरसती विपदा,
हरे सपनों के बाग को
पलभर में चाटकर
ठूँठ करती
सपनों, उम्मीदों को
तहस-नहस कर
लील रही हैं
निर्दयी,निष्ठुर
स्वार्थी टिड्डियाँ
अबके बरस...।
फसल बीमा,
राहत घोषणाएँ
बैंक के चक्कर
सियासी पेंच में
उलझकर
सियासी पेंच में
उलझकर
सूखेंगे खलिहान
गुहार और आस को
टोहते,कलपते बीत जायेगा
अबके बरस भी...।
©श्वेता सिन्हा
३० मई २०२०
very beautiful composition. describing todays period . great.
ReplyDeleteप्रिय श्वेता,हर नया साल अपने साथ। उम्मीदों की गठरी लेकर आता है,पर साल बीतते ना बीतते सब कुछ धूमिल हो यादों में सिमटकर रह जाता है । सच में, अधूरी आशाऎं और सरकारी झूठी घोषणायें जीवन में गहन वेदना का कारक बनती हैं ।मार्मिक रचना जो संवेदनशीलता से अधूरी अव्यवस्थाओं का आईना है। सस्नेह
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteगजब!!श्वेता बिखरती उम्मिदों पर एक हृदय स्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteअभिनव, अप्रतिम।
अबके बरस तो और भी ज्यादा मुश्किलें हैं ....
ReplyDeleteसारी उम्मीदें और मुश्किलें छटपटाहटें और निराशाएं बहुत ही लाजवाब बिम्बों के साथ बखूबी पिरोई हैं आपने....
लाजवाब!!!!!
समसामयिक मार्मिक शब्दचित्रण ...
ReplyDeleteबढ़िया!
ReplyDeleteबहुत मार्मिक और सार्थक।
ReplyDeleteपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
वाह समसामयिक और मार्मिक सृजन सखी
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत खूब!इस बरस तो जैसे मुसीबतों की बाढ आ गई हो ...। हृदयस्पर्शी चित्रण वर्तमान का .
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteइतने शीघ्र उत्तर के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।अपना स्नेह व आशीष बनाये रखियेगा।
मेरे एक अनुरोध से आप मेरे ब्लॉग पर आ भी गयीं और मेरा मार्गदर्शन भो किया। आपकी इस उदारता के लिए हृदय से आभार।
आशा है कि आप अक्सर ही आएँगी और मेरा मार्गदर्शन करती रहेंगी।
ब्लॉग पर मेरी एक कविता और है - जब हनुमान जी स्वयँ बोले। इस कविता में भगवान श्री हनुमान जी हमें अपने विराट स्वरूप के दर्शन कराते हैं। कृपया वह भी पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें। एक और सहायता,कृपया बता सकतीं है कि फॉलोवर गैजेट कैसे लगाते हैं और कौनसा सबसे अच्छा होगा?
दिल को छू लेने वाली कविता। मैम,आपने किसानों की पीड़ा को सजीव कर दिया। एक एक पंक्ति में गरीब किसानों की सूखी पथराई आंखें आंखों के आगे घूम जातीं हैं। यह दुखद है कि हमारे किसानों के पास प्राकृतिक आपदाओं से बचने का कोई संसाधन नहीं है। यहाँ तक की अपर्याप्त वर्षा के समय अपने खेतों को सींचने के लिए कृत्रिम जल स्रोत की भी उचित व्यवस्था नहीं। कितनी दुखद बात है कि अन्नदाता कहे जाने वाले किसान स्वयँ अपना पेट नहीं भर सकते।
ReplyDeleteवाह बेजोड़ बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteवाह बेजोड़ बेहतरीन सृजन
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