Tuesday, 26 May 2020

व्याकुल मीन


रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
अंतर्मन अकुलाता है।
मौन अबूझ संकेतों की,
भाषा पढ़-पढ़ बौराता है।

प्रश्नों की खींचातानी से
मितवा आँखें जाती भीग,
नेह का बिरवा सूखे न
मनवा तू अंसुवन से सींच,
साँस महक कस्तूरी-सी , 
अब गंध जीया नहीं जाता है। 

रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
अंतर्मन अकुलाता है।

दिन-दिनभर कूहके कूहू
विरह वेदना लहकाती,
भीतर-भीतर सुलगे चंदन
स्वप्न भभूति लिपटाती,
संगीत बना उर का रोदन
जोगी मन तुम्हें मनाता है।

रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
अंतर्मन अकुलाता है।

जग का खारापन पीती रही
स्वाति बूँद की आस लिए,
जीवन लहरों-सा जीती रही
सीप मोती की प्यास लिए,
व्याकुल मीन नेहसिक्त मलंग
चिरशांति समाधि चाहता है।

रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
अंतर्मन अकुलाता है।

©श्वेता सिन्हा

18 comments:

  1. रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
    अंतर्मन अकुलाता है।

    रूठे-रूठे पिया.. कोरा कागज की प्रसिद्ध गीत की याद दिलाती सुन्दर गीत है

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    1. जी आपका स्नेह है दी।
      सादर आभार 🙏
      बहुत शुक्रिया दी।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है"   (चर्चा अंक-3714)    पर भी होगी। 
    --
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. बहुत खूब प्रिय श्वेता !! प्रियतम से आकंठ अनुरागरत मन की करूण मनुहार और गुहार !! बहुत दिनों के बाद प्रेम की सुगंध से महकती बहुत प्यारी रचना , वो भी तुम्हारी अपनी चिरपरिचित शैली की। 👌👌👌👌अपनी पुरानी डायरी और खंगालो और अपनी प्रेम को जीवंत
    करती रचनाओं के माध्यम से नये पाठकों को अपनी मूल शैली से अवगत कराओ। भले जीवन की विद्रूपताओं के बीच प्रेम अप्रसंगिक - सा हो जाता है पर नीरस जीवन में अंततः प्रेम ही रंग भरता है। सुंदर मधुर गीत के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनायें👌👌🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐

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  4. रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
    अंतर्मन अकुलाता है।
    मौन अबूझ संकेतों की,
    भाषा पढ़-पढ़ बौराता है।

    प्रश्नों की खींचातानी से
    मितवा आँखें जाती भीग,
    नेह का बिरवा सूखे न
    मनवा तू अंसुवन से सींच,
    साँस महक कस्तूरी-सी ,
    अब गंध जीया नहीं जाता है।
    वाह!!!! 👌👌👌👌👌🌹🌹

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  5. वाह मदमस्त अठखेलियां करती पी के संग रंगरेलियां करती रूठे रूठे ना रहो मौन शब्दों की अभुझ मेरी पहेलियों को समझ जाओ..
    वाह दी एक अलग ही कलेवर में सजी मत मस्त रचना वाकई में मजा आ गया

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  6. दिन-दिनभर कूहके पीहू
    विरह वेदना लहकाती,
    भीतर-भीतर सुलगे चंदन
    स्वप्न भभूति लिपटाती,
    बेहतरीन पंक्तियों के समावेश किया है आपने।बहुत बढ़िया।

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  7. प्रिय यदि रुठ जाए तो प्रियतमा पर क्या बीतती हैं इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने, श्वेता दी।

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  8. प्रिय भी क्या करें घर में बन्द हो गये हैं :) रूठना ही सही कोई मनायेगा तो।

    सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  9. रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
    अंतर्मन अकुलाता है।
    अहा... प्रेमनिवेदन👌👌👌

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  10. बहुत ही शानदार/दमदार/जानदार/ सौंदर्य-बौध
    पर अभिव्यक्ति 👍👌💐 दिलखुश हो गया 😊

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  11. कूहु की कूहुक भी हूक उठाती है, जब अंतर्मन में विरहा विचरती है , संवेदनशील मन की हृदय स्पर्शी विरह पुकार ।
    बहुत सुंदर अप्रतिम श्रृंगार गीत श्वेता।

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  12. अप्रतिम सृजन प्रिय श्वेता।

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  13. प्रश्नों की खींचातानी से
    मितवा आँखें जाती भीग...
    वाह ! बहुत सुंदर रचना।

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  14. आहा! कितनी सुंदर पंक्तियाँ हैं,कितने सुंदर भाव हैं। वाह! यह शृंगार रस से अलंकृत सुंदर रचना सीधे पाठकों के हृदय ने पढ़ी है। जग का खारापन पीती हुई,स्वाति बूँद की आस लिए अपने प्रिय को मनाती वह निश्छल दीवानी और उसका प्रेम दोनों ही पावन। आपकी अद्भुत लेखनी और आपको मेरा कोटिशः प्रणाम आदरणीया दीदी जी।शुभ रात्रि।

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  15. प्रश्नों की खींचातानी से
    मितवा आँखें जाती भीग,
    नेह का बिरवा सूखे न
    मनवा तू अंसुवन से सींच,
    साँस महक कस्तूरी-सी ,
    अब गंध जीया नहीं जाता है। बेहद खूबसूरत गीत 👌👌

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  16. दिन-दिनभर कूहके कूहू
    विरह वेदना लहकाती,
    भीतर-भीतर सुलगे चंदन
    स्वप्न भभूति लिपटाती,
    संगीत बना उर का रोदन
    जोगी मन तुम्हें मनाता है।
    रूठे-रूठे न रहो प्रिय,
    अंतर्मन अकुलाता है।
    वाह!!!
    प्रेम के भाव अनुभावों को इतना मनोहारी रूप देना कोई आपसे सीखे....
    लाजवाब सृजन।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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