अदृश्य मादक सुगंध
की भाँति
प्रेम ढक लेता है
चैतन्यता,
मन की शिराओं से
उलझता प्रेम
आदि में
अपने होने के मर्म में
"सर्वस्व"
और सबसे अंत में
"कुछ भी नहीं"
होने का विराम है।
कदाचित्
सर्वस्व से विराम के
मध्य का तत्व
जीवन से निस्तार
का संपूर्ण शोध हो...
किंतु
प्रकृति के रहस्यों का
सूक्ष्म अन्वेषण,
"आत्मबोध"
विरक्ति का मार्ग है
गात्रधर सासांरिकता
त्याज्य करने से प्राप्त।
प्रेम असह्य दुःख है!
तो क्या "आत्मबोध"
व्रणमुक्त
संपूर्ण आनंद है?
गुत्थियों को
सुलझाने में
आत्ममंथन की
अनवरत यात्रा
जो प्रेम की
निश्छलता के
बलिदान पर
ज्ञान की
परिपक्वता है।
©श्वेता सिन्हा
अच्छाी मंथन किया है आपने।
ReplyDeleteव्वाहहहहह
ReplyDeleteगहन मंथन
बढ़ रही है परिपक्वता
सादर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 23 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमंथन के प्रभंजन में विचारों का विखंडन हो रहा है। निश्छलता का बलिदान अज्ञान के अहंकार का विष-पान है। प्रेम और ज्ञान की परिपक्वता में दंभ का कोई आकाश या अवकाश नहीं!
ReplyDeleteऐसी यात्रा सबके जीवन में आनी चाहिए। परिपक्वता जरूरी है....माध्यम कुछ भी हो। "सर्वस्व" से "कुछ भी नहीं" के एहसास बाद ही वाकई यात्रा सफल रहा।
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना आपके द्वारा। सराहनीय।
अहंकार सिमट जाता है.
ReplyDeleteप्रेम अपरिचित फैल जाता है.
गंध/महक/सुगंध जस्
परिपक्वता के फल ...
शानदार श्वेता जी ������
लेखनी निशब्द करती है छूटकी
ReplyDeleteसाधुवाद
अब आप दार्शनिकता की ओर मुड़ गई हैं, मुझे तो आपकी सीधी सरल शैली ज्यादा भाती है प्रिय श्वेता !!!
ReplyDeleteप्रेम असह्य दुःख है!
ReplyDeleteतो क्या "आत्मबोध"
व्रणमुक्त
संपूर्ण आनंद है?
गुत्थियों को
सुलझाने में
आत्ममंथन की
अनवरत यात्रा
जो प्रेम की
निश्छलता के
बलिदान पर
ज्ञान की
परिपक्वता है।
आत्मबोध से प्रेम के असह्य दुख से निजात मिल सकती है....? या आत्मबोध के बाद प्रेम का महत्वहीन हो जाता है? या एक प्रेमी को प्रेम को उसी असह्य दुख के साथ ही आनन्द आता है
विचार मंथन करती भावोत्तेजक लाजवाब रचना
वाह!!!